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Monday, March 28, 2011

POLICE BRUTALITIES IN DANTEWADA, SWAMI AGNIVESH & JOURNALISTS NOT ALLOWED TO VISIT & PROVIDE RELIEF TO VICTIMS

The Hindu : A Hindu investigation reveals the horrific aftermath of a five day anti-Maoist operation in which security forces assaulted three women, killed three men and left hundreds homeless in Chhattisgarh's Dantewada district. File photo: Aman Sethi

Swami Agnivesh, journalists attacked in Dantewada

Aman Sethi

A large group comprising Special Police Officers (SPOs) of the Chhattisgarh police and members of the Salwa Judum attacked social activist Swami Agnivesh on Saturday as he attempted to deliver relief to a village allegedly torched by security forces in Chhattisgarh's Dantewada district.

On March 23, The Hindu published reports and photographs alleging that SPOs had torched about 300 homes, granaries and wood-sheds, killed three men and sexually assaulted three women during a five-day anti-Maoist operation in the villages of Tarmetla, Timapuram and Morpalli.

Since then, the district police had sealed off the three villages and intimidated journalists who tried to visit them.

On Saturday, Mr. Agnivesh was to deliver clothes, blankets and other relief materials to the affected villagers when he was attacked twice in six hours by a mob at the Salwa Judum camp at Dornapal.

(The ‘Salwa Judum' refers to a controversial tribal vigilante group, armed, trained and assisted by the Chhattisgarh government in its battle against the banned Communist Party of India (Maoist). A public interest litigation, currently being heard by the Supreme Court, holds Judum members responsible for 537 murders, 99 rapes and 103 acts of arson.)

“Relief material seized”

In a telephone interview, Mr. Agnivesh said the first attack occurred early in the morning when a crowd of SPOs and Judum members surrounded his vehicle, pelted him with raw eggs, knocked off his turban and pushed him around. Reporters at the spot were also manhandled by the crowd. In a dispatch filed from the spot, Joseph John of the Indian Express reported that the crowd accused Mr. Agnivesh of turning a blind eye to the plight of victims of Maoist violence.

“They seized all the relief material intended for Tarmetla,” said Mr. Agnivesh, adding that he then returned to Sukma and telephoned Chief Minister Raman Singh for assistance.

In February this year, Mr. Agnivesh was instrumental in securing the release of five policemen kidnapped by Maoists.

Sources in the security establishment told The Hindu that the 150th Battalion of the CRPF was called in to protect Mr. Agnivesh.

The CRPF was in place by afternoon, when Mr. Agnivesh attempted to visit the affected villages once more. “Despite security assurances by the Chief Minister, we were attacked by a crowd engineered by the Salwa Judum and SPOs,” said Mr. Agnivesh, adding that his vehicle was stoned and he was forced to return.

Reporters at the site said a crowd of nearly 2,000 people at Dornapal attacked mediapersons and broke several cameras. Eyewitnesses said Naresh Mishra of the television channel Zee 24 was among those beaten.

“The police have created a Frankenstein's monster that they cannot control,” said Mr. Agnivesh. “This was an attack on the administration by an unaccountable lynch mob.”

Reacting to the events of the past three days, the Chhattisgarh police transferred S.R.P. Kalluri from his post as the Dantewada Senior Superintendent of Police. “Mr. Kalluri was transferred to allow for an independent inquiry into the recent allegations,” said Director-General of Police Vishwa Ranjan, “He will take up duty as Deputy Inspector General, Surguja.”

Mahasamund Superintendent of Police Ankit Garg shall take over as Dantewada SP.

The spokesperson for the Chief Minister, N. Bajinder Kumar, confirmed that Dantewada Collector R. Prasanna has also been transferred. “Mr. Prasanna shall take over as Municipal Commissioner Raipur. “The existing Commissioner, O.P. Chaudhury, shall replace him,” Mr. Kumar said.

“Mr. Kalluri has lost the moral, legal and constitutional right to remain in his post,” said Ajit Jogi, Congress MLA from Marwahi and former Chief Minister of Chhattisgarh.

The Hindu Raipur,

Sunday, March 27, 2011

PARA MILTARY FORCES RUN AMUCK IN DANTEWADA, COMMIT RAPE, MURDER, HOUSE BURNING

A House damaged by CRPF in a Dantewada village

गांव वालों का कहना है कि उनके घरों में सुरक्षाबलों ने आग लगाई

छत्तीसगढ़: जवानों पर गंभीर आरोप

सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, रायपुर - बुधवार, 23 मार्च, 2011

छत्तीसगढ़ के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले दंतेवाड़ा जिले में पिछले 14 मार्च को अर्धसैनिक बलों के जवानों द्वारा कथित रूप से आदिवासियों के घरों को जलाए जाने और कुछ महिलाओं से दुर्व्यवहार करने के आरोपों की जांच शुरू हो गई है.

सुरक्षाबलों पर आरोप है कि उन्होंने पांच ग्रामीणों को नक्सली बताते हुए "ठंडे दिमाग" (Cold Blood) से मार गिराया है, लगभग तीन सौ झोपड़ियों में आग लगाई और तीन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया है.

ये घटना दंतेवाड़ा के उस चिंतलनार इलाके की है जहाँ पिछले साल छह अप्रैल को माओवादियों ने घात लगाकर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के 76 जवानों को मार गिराया था. बुधवार को ये मामला छत्तीसगढ़ विधानसभा में उठा. कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल ने सदन में ध्यानार्कषण प्रस्ताव पेश किया. विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक ने आश्वासन दिया है कि वे सरकार से इस विषय पर जवाब मांगेंगे और विधानसभा में अलग से चर्चा भी होगी.

घटना

चिंतलनार के पुलिस कैंप के बीस किलोमीटर की परिधि में घने जंगलों की श्रंखला के बीच कई आदिवासी गांव हैं और 14 मार्च की सुबह अचानक नाकेबंदी करते हुए अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों नें इस पूरे इलाके को घेर लिया. पुलिस का दावा था कि उन्हें गुप्त सूचना मिली थी कि मोरापल्ली के इलाके में बड़े माओवादी कमांडरों का जमावड़ा है और इस इलाके में नक्सलियों की हथियार बनाने की मशीन भी लगी हुई है. मगर यहाँ पुलिस को कुछ नहीं मिला. खबरें हैं की सुरक्षा बलों की टुकड़ी नें लौटते वक़्त पास के ही तिमापुरम में पड़ाव डाला जहाँ उनकी माओवादियों के साथ मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में तीन जवान मारे गए थे जबकि 9 जवान घायल हुए थे.

कहा जा रहा है कि उसके बाद जो कुछ हुआ उसने पुलिस और अर्धसैनिक बलों को कटघरे में खड़ा कर दिया है. सुरक्षाबलों पर आरोप है कि बौखलाहट में उन्होंने तीन गांव में जमकर तांडव मचाया. कहा जा रहा है कि पटेलपाड़ा गाँव में जब सुरक्षा बलों नें धावा बोला तो गाँव का ही एक माडवी चूला पेड़ पर चढ़ कर इमली तोड़ रहा था. आरोप है कि उसको वही गोली मार दी गई.

जांच के आदेश

दंतेवाड़ा के कलेक्टर आर प्रसन्ना नें बीबीसी से बात करते हुए कहा, "हमें भी खबरें मिलीं हैं कि कुछ आदिवासियों के घरों में आग लगा दी गई है. अब ये आग किसने लगाई है इसका पता नहीं चला है. आग सुरक्षाबलों के जवानों ने लगाई या माओवादियों नें यह स्पष्ट नहीं है."
प्रसन्ना कहते हैं कि कि गांववाले आरोप लगा रहे हैं कि तीन महिलाओं के साथ सुरक्षाबलों के जवानों नें दुर्व्यवहार किया है और कुछ ग्रामीणों को गोली भी मारी है. प्रसन्ना ने बीबीसी को बताया, "अभी तक किसी गांव वाले नें आगे आकर इसके बारे में कोई लिखित शिकायत नहीं की है."

दंतेवाड़ा के कलेक्टर ने मामले की जांच करने के लिए तहसीलदार के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है. उनका कहना है इस समिति में एक महिला अधिकारी को भी रखा गया है. फ़िलहाल दंतेवाड़ा ज़िला प्रशासन नें मुआवज़े की घोषणा भी की है. प्रसन्ना का कहना है जिनके घर जले हैं उन्हें पचास हज़ार रुपए बतौर मुआवजा मिलेगा मगर जांच पूरी होने के बाद.

पहली घटना नहीं

ये पहला मौका नहीं है जब सुरक्षाबलों पर इस तरह का आरोप लगा हो.

बस्तर के नारायणपुर, जगदलपुर, बीजापुर और कांकेर जिलों में पिछले दो सालों में ऐसी कई वारदातें हुईं हैं जिसने सुरक्षा बलों को कटघरे में खड़ा कर दिया है.

पिछले साल नारायणपुर के ओंग्नार में भी सुरक्षा बलों पर इसी तरह के आरोप लगे थे. वहां गांव की अपनी झोपडी में खाना पका रही एक लड़की को गोली मारने का आरोप भी पुलिस पर लगा है.

हालांकि सभी मामले प्रकाश में आए और प्रशासन ने जांच के आश्वासन भी दिए मगर दोषियों के ख़िलाफ़ कभी कोई कार्रवाई नहीं होने से जनता और सरकार के बीच अविश्वास की खाई और बढ़ गयी है.
सामजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के अनुसार 18 मार्च वर्ष 2008 में माथवाड़ा के सलवा जुडूम के कैंप के पास तीन आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी.

Saturday, March 19, 2011

23 ਮਾਰਚ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ

ਤੁਹਾਡੇ ਸ਼ਹੀਦ ਤੁਹਾਡੇ ਅੰਗ ਸੰਗ ਤੁਹਾਥੋਂ ਕੁਝ ਆਸ ਰੱਖਦੇ ਹਨ

23 ਮਾਰਚ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਿਵਸ
23 ਮਾਰਚ 1931ਸ਼ਹੀਦੀ, ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਰਾਜਗੁਰੂ ਸੁਖਦੇਵ
23 ਮਾਰਚ 1988 ਸ਼ਹੀਦੀ, ਅਵਤਾਰ ਪਾਸ਼

ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਦੇਣ ਲਈ 23 ਮਾਰਚ, 2011 ਨੂੰ ਸਵੇਰੇ 7.00 ਵਜੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ
ਸਿੰਘ ਚੌਂਕ, ਬਠਿੰਡਾ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚੋ

ਆਓ, ਸਾਮਰਾਜਵਾਦ, ਜਗੀਰੂ ਦਾਬੇ, ਅਖੌਤੀ ਸੁਧਾਰਵਾਦ ਤੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਂ ਥੱਲੇ ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਤੇ ਵਿੱਢੇ ਹਮਲੇ, ਜਾਤ-ਪਾਤ ਤੇ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਵਿਰੁੱਧ ਜੱਦੋ-ਜਹਿਦ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਣ ਦਾ ਪ੍ਰਣ ਕਰੀਏ

LOK MORCHA PUNJAB- Bathinda Unit.

Friday, March 18, 2011

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ...

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ...

by Shashi Samundra on Friday, March 18, 2011 at 5:38am

23 ਮਾਰਚ ਪਾਸ਼ ਦਾ ਯਾਦਗਾਰੀ ਦਿਨ ਹੈ | ਸਿਰਫ਼, 23 ਮਾਰਚ ਹੀ ਕਿਓਂ ? ਪੂਰਾ ਮਹੀਨਾ ਕਿਓਂ ਨਹੀਂ ? ਨਹੀਂ, ਪੂਰਾ ਸਾਲ ਹੀ ਕਿਓਂ ਨਹੀਂ ? ਪਾਸ਼ ਨੂੰ ਯਾਦ ਨਾ ਰਖਣਾ ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਨੂੰ ਭੁਲਾਉਣਾ ਹੈ | ਪਾਸ਼ ਨੇ ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਦੀ ਸਾਂਝ ਲਈ ਜਾਣ ਦਿੱਤੀ | 23 ਮਾਰਚ 1988 ਦੀ ਸਵੇਰ ਓਹਨੂੰ ਸਾਥੀ ਹੰਸ ਰਾਜ ਸਮੇਤ ਓਹਦੇ ਪਿੰਡ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਨਫ਼ਰਤ ਦੇ ਅਨਸਰਾਂ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ |

ਮੇਰੀ ਇਹ ਕਵਿਤਾ ਪਾਸ਼ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਹੈ | ਮੈਂ ਫ਼ਿਲਹਾਲ ਪਾਸ਼ ਦੇ ਪਿੰਡ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਾਂਗੀ ਪਰ, ਮੇਰੀ ਖਾਹਿਸ਼ ਹੈ ਕਿ ਓਸ ਦਿਨ ਓਥੇ ਲੱਗਦੇ ਮੇਲੇ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਇਹ ਕਵਿਤਾ ਪੜ੍ਹੇ ...

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ ਕਿਓਂਕਿ :

ਮੈਂ ਤੁਰਨਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਗਲੀਆਂ ਵਿੱਚ

ਜਿਥੇ ਨਿੱਕੇ ਹੁੰਦਿਆਂ

ਪਾਸ਼ ਆੜੀਆਂ ਨਾਲ ਗੁੱਲੀ-ਡੰਡਾ ਤੇ ਲੁਕਣ-ਮੀਚੀ ਖੇਡਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ |

ਮੈਂ ਦੇਖਣਾ ਹੈ ਓਹ ਘਰ

ਓਹ ਕਮਰੇ, ਓਹ ਕੰਧਾਂ , ਓਹ ਵੇਹੜਾ , ਓਹ ਛੱਤ

ਜਿਹੜੇ ਹਨ ਓਹਦੇ ਬਚਪਨ ਤੇ ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਗਵਾਹ

ਓਹਦੇ ਹਾਸੇ, ਜਿਦਾਂ, ਰੋਸਿਆਂ ਦੇ ਗਵਾਹ |

ਮੈਂ ਦੇਖਣਾ ਹੈ ਓਹ ਭੋਰਾ

ਜਿਥੇ ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਮਾਓ ਤੇ ਹੋ ਚੀ ਮਿਨ ਦੇ ਕੈਲੰਡਰ ਲਾ

ਸਿਆਣਿਆਂ 'ਚ ਬੈਠਾ ਓਹ ਮੁੰਡਾ

ਵੱਡੇ ਸੁਪਨੇ ਲੈਂਦਾ ਸੀ |

ਮੈਂ ਜਾਣਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ

ਜਿਥੇ ਰੁਖ ਹਾਲੇ ਵੀ ਓਹਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਹੋਣਗੇ :

ਗਰਮੀਆਂ ਦੀ ਰੁੱਤੇ, ਅਕਸਰ, ਐਥੇ ਓਹ ਖਾਲ 'ਚ ਪੈਰ ਪਾ ਬੈਠਾ

ਘੰਟਿਆਂ ਬਧੀ ਕੁਝ ਪੜ੍ਹਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ

ਜਾ, ਕੁਝ ਸੋਚਦਾ, ਗੰਨਾ ਚੂਪਦਾ ਤੁਰਿਆ ਜਾਂਦਾ...

ਤੇ ਦੇਖਣਾ ਹੈ ਓਹ ਟੀਊਬਵੈੱਲ

ਜੋ ਓਹਦੇ ਕਤਲ ਦਾ ਗਵਾਹ ਹੈ |

ਤੇ ਆਪਣੇ ਪੋਟਿਆਂ ਨਾਲ ਛੂਹ ਕੇ ਦੇਖਣੀ ਹੈ ਮੈਂ ਓਹ ਧਰਤੀ

ਜਿਥੇ ਓਹਦਾ ਖ਼ੂਨ ਡੁੱਲਿਆ ਹੈ

ਤੇ ਜਿਥੇ ਹੁਣ, ਓਹ ਕਾਈ, ਫੁੱਲ ਬੂਟੇ ਤੇ ਫ਼ਸਲ ਬਣ ਕੇ ਉੱਗਿਆ ਹੈ |

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ

ਜਿਥੇ ਪਾਸ਼ ਜੰਮਿਆਂ-ਇੱਕ ਰੋਹ ਦਾ ਦਰਿਆ

ਇੱਕ ਬੁਲੰਦ ਆਵਾਜ਼

ਜੋ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਹੁਣ ਸਮੁਚੀ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼

ਮਜ਼ਲੂਮਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼

ਗਰੀਬਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼

ਸਚ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ |

ਮੈਂ ਉਸ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਨਤਮਸਤਕ ਹੋਣ ਜਾਣਾ ਹੈ

ਸੱਜਦਾ ਕਰਨ ਜਾਣਾ ਹੈ |

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ

ਮੈਂ ਤਲਵੰਡੀ ਸਲੇਮ ਜਾਣਾ ਹੈ...

-ਸ਼ਸ਼ੀ ਸਮੁੰਦਰਾ | ਲਿਖਣ ਸਮਾਂ : 1 / 25 / 2011

Saturday, March 5, 2011

ਚਾਰ ਵਾਰ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਬਣੇ ਬਾਦਲ ਦੇ ਜੱਦੀ ਪਿੰਡ ਬਾਦਲ ਦੇ ਨੇੜਲੇ ਪਿੰਡ ਫਤੂਹੀਵਾਲਾ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਦਰਦਨਾਕ ਹਾਲਤ ਦੀ ਕਹਾਣੀ

ਕੰਮੀਆਂ ਦੇ ਵਿਹੜੇ ਦੀ ਲਾਲੀ 'ਤੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਪ੍ਰਛਾਵਾਂ

"ਯਹ ਦੁਨੀਆ ਅਗਰ ਮਿਲ ਭੀ ਜਾਏ ਤੋ ਕਿਆ ਹੈ.. . . . . . . ."

Dalit landless labourers' suicides in Punjabਚਾਰ ਵਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਰਹੇ ਚੁੱਕੇ ਸ਼੍ਰੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੇ ਪਿੰਡ ਬਾਦਲ,ਜਿਲ੍ਹਾ ਮੁਕਤਸਰ ਤੋਂ ਵਲ 6 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਪਿੰਡ ਫਾਤੂਹੀਵਾਲਾ ਵਿੱਚ ਕਰਜ਼ੇ ਕਾਰਣ ਖ਼ੁਦਕੁਸੀਆਂ ਕਰ ਗਏ ਕਿਰਤੀਆਂ ਦੀਆਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ ਅਤੇ ਯਤੀਮ ਬੱਚਿਆਂ ਦਾ ਇਕੱਠ ਤੁਹਾਡਾ ਸਵਾਗਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਬੇਆਸ, ਨਿਰਾਸ਼, ਸੁੰਨੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਕੋਲ ਪੁੱਜੇ ਪਰ ਆਦਮੀ ਵੱਲ ਕਿਸੇ ਉਮੀਦ ਦੀ ਆਸ ਨਾਲ ਤੱਕਦੀਆਂ ਹਨ। ਪਿੱਛਲੇ ਡੇਢ ਦਹਾਕੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਭਾਰ ਕਾਰਣ 15 ਦੇ ਕਰੀਬ ਇਕੱਲੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਜਾਨਾਂ ਦੇ ਦਿੱਤੀਆਂ। ਇੱਕ-ਦੋ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਬਾਕੀਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਚੜ੍ਹਦੀ ਜਵਾਨੀ ਵਾਲੀ 22 ਸਾਲ ਤੋਂ 28 ਸਾਲ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਹੈ , ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਚਾਰ ਅਜੇ ਕੁਆਰੇ ਹੀ ਸਨ ਅਤੇ 5 ਤੋਂ 7 ਅਜਿਹੇ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਆਹਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕੁਝ ਮਹੀਨੇ ਜਾਂ 1 ਤੋਂ 3 ਸਾਲ ਹੀ ਹੋਏ ਸਨ। ਲੰਬੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਭਰ ਦਾ ਰਾਡੇਂਪਾ, ਉੱਤੋਂ ਅਥਾਹ ਗਰੀਬੀ ਵਿੱਚ ਦੋ ਡੰਗ ਲਈ ਚੁੱਲਾ ਤੱਪਦਾ ਰੱਖਣਾ ਵੀ ਮੁਹਾਲ ਅਤੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਨਾਗ ਦੇ ਢੰਗ ਹਰ ਕਦਮ-ਕਦਮ 'ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਚਣੌਤੀ ਹੈ, ਵਿਧਵਾਵਾਂ ਕੋਲ ਗੱਲ ਛੇੜਨ ਦੀ ਹੀ ਲੋੜ ਸੀ ਫਿਰ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਹੰਝੂ ਨਹੀਂ ਰੁਕਦੇ। ਕਰਜ਼ੇ ਕਾਰਣ ਸਲਫ਼ਾਸ ਨਿਘਲ ਜਾਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਪੁੱਤਰ-ਪੁੱਤਰੀਆਂ ਜਾਂ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮਾਵਾਂ ਦੀ ਬੁੱਕਲ ਵਿੱਚ ਸਨ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੇਟ ਵਿੱਚ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਨੂੰ ਵਿਰਾਸਤ ਵਿੱਚ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਢੇਰ ਅਤੇ ਗਰੀਬੀ ਤੋਂ ਸਿਵਾਏ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਮਿਲਿਆ। ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਜਾਲ ਵਿੱਚ ਫਸੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬੱਚੇ ਅਨਪੜ੍ਹ, ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਮਹੀਨਿਆਂ ਲਈ ਦਿਹਾੜੀਦਾਰ, ਮਾਨਸਿਕ ਤਣਾਓ ਵਿੱਚ ਜਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਧੱਕੇ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਕੋਲ ਨਾ ਜਿੰਦਗੀ ਦਾ ਕੋਈ ਉਦੇਸ਼ ਹੈ, ਨਾ ਜਿੰਦਗੀ ਜਿਉਂਣ ਲਈ ਬੁਨਿਆਦੀ ਜਰੂਰਤਾਂ ਹਨ। ਬੱਸ ਜੇ ਹੈ ਤਾਂ ਵਿਰਾਸਤ ਵਿੱਚ ਮਿਲਿਆ ਕਰਜ਼ਾ ਜੋ ਅਮਰਵੇਲ ਵਾਂਗ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵੱਧਦਾ ਹੀ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹੁਣ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਕਾਲੇ ਦੈਂਤ ਨੇ ਕੰਮਿਆਂ ਦੇ ਵਿਹੜੇ ਵਿੱਚੋਂ ਮੱਘਦੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲਾਲੀ 'ਤੇ ਕਾਲਾ ਪ੍ਰਛਾਵਾ ਪਾਇਆ ਹੈ।
ਅਠਾਰਾ-ਉਨੀ ਸਾਲ ਦੀ ਨੌਜਵਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੀ ਧੀ ਸੰਦੀਪ ਕੌਰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਮਾਂ ਬਲਜੀਤ ਕੌਰ ਦੋ ਡੰਗ ਚੁੱਲੇ ਵਿੱਚ ਅੱਗ ਪਾਉਣ ਲਈ ਜਦੋ-ਜਹਿਦ ਕਰ ਰਹੀਆਂ, ਸੰਦੀਪ ਕੌਰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮਾਂ ਦੇ ਪੇਟ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸੀ ਜਦੋਂ ਉਸ ਦਾ ਪਿਤਾ ਪਵਨ ਸਿੰਘ ਪੁੱਤਰ ਗੁਰਬਖ਼ਸ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਸਾਲ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਭਰ ਜੁਵਾਨੀ ਵਿੱਚ 20 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰਜ਼ੇ ਕਾਰਣ ਫਾਹਾ ਲੈ ਗਿਆ। ਬਲ+ਜੀਤ ਆਪਣੇ ਬਲ ਨਾਲ ਜਿੰਦਗੀ ਜਿੱਤ ਨਹੀਂ ਸਕਦੀ, ਉਸ ਦਾ ਸਭ ਕੁਝ ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਦਰਿੰਦਗੀ ਨੇ ਹੜ੍ਹੱਪ ਕਰ ਲਿਆ। ਪਰਿਵਾਰ ਸਿਰ 40-50 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਸੀ। ਜਿੰਦਗੀ ਲੀਂਹ 'ਤੇ ਲੈ ਕੇ ਆਉਂਣ ਖਾਤਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣਾ 5-6 ਤੋਲਾ ਸੋਨੇ ਦਾ 20 ਕੁ ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ ਵੇਚਿਆ ਪਰ ਅਖੀਰ ਇਸ ਕਰਜ਼ੇ ਨੇ 10 ਮਾਰਚ 1992 ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਸੁਹਾਗ ਦੀ ਬਲੀ ਲੈ ਲਈ। ਹੁਣÎ ਵੀ ਇਹ ਪਰਿਵਾਰ 20-25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਈ ਹੈ।

ਸੁਖਵਿੰਦਰ ਕੌਰ ਆਪਣੀਆਂ ਤਿੰਨ ਬੇਟੀਆਂ ਸਮੇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਜਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਅਤੇ ਵਾੜਿਆਂ ਦਾ ਗੋਹਾ-ਕੂੜਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਪੇਟ ਦੀ ਅੱਗ ਬੁਝਾਉਂਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵਿੱਚ ਹੈ। 50-60 ਹਜ਼ਾਰ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਅਜੇ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿੱਛਾ ਨਹੀਂ ਛੱਡ ਰਿਹਾ। ਵਿਰਾਸਤ ਵਿੱਚ ਕਰਜ਼ਈ ਹੋਈਆਂ ਇਹ ਗੁੱਡੀਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਚਪਨ ਵਿੱਚ ਹੀ ਮਸਤ ਸਨ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਰਾਜੂ ਸਿੰਘ 25 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸੰਨ 2000 ਵਿੱਚ ਡੇਢ ਲੱਖ ਦੇ ਕਰੀਬ ਕਰਜ਼ਾ ਨਾ ਦੇਣ ਕਰਕੇ ਕੀਟ ਨਾਸਕ ਦਵਾਈ ਨਿਘਲ ਗਿਆ, ਉਹ ਅੱਠ ਦਿਨ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿੱਚ ਜਿੰਦਗੀ ਮੌਤ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ, ਤੜ੍ਹਫਤਦਾ ਰਿਹਾ, ਉਸ ਦੇ ਇਲਾਜ਼ 'ਤੇ ਲੱਗਿਆ ਦੋ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਨੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਗਰਾਫ਼ ਹੋਰ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ, ਅਖੀਰ ਮੌਤ ਜਿੱਤ ਗਈ । ਸੁਖਵਿੰਦਰ ਨੇ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਕਦੇ ਸੁੱਖ ਨਾ ਪਾਇਆ ਉਹ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਬਾਕੀ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ ਅਤੇ ਬੱਚੀਆਂ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ ਅੱਗੇ ਵੀ ਹਨੇਰ ਤੋਂ ਸਿਵਾਏ ਕੱਖ ਨਹੀਂ ਹੈ।

''ਇਸ ਜਿੰਦਗੀ ਨਾਲੋਂ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਮੈਂਨੂੰ ਵੀ ਜ਼ਹਿਰ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਤਾਂ ਕੰਮ ਨਿਬੜ ਜਾਂਦਾ।'' ਆਪਣੇ ਝੁਰੜੀਆਂ ਵਾਲੇ ਚਿਹਰੇ, ਖਿਲਰੇ ਵਾਲਾਂ 'ਤੇ ਬਿਆਈਆਂ ਵਾਲੇ ਫਟੇ ਹੱਥ ਫੇਰਦੀ ਇਸ ਪਿੰਡ ਫਤੂਹੀਵਾਲ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਿੰਦਰ ਕੌਰ ਦੇ ਬੋਲ ਹਨ। ਉਸ ਦੇ ਪਤੀ ਜੱਗਾ ਸਿੰਘ ਉਮਰ 34 ਸਾਲ ਨੇ ਜਿੰਦਗੀ ਬਿਹਤਰ ਬਣਾਉਂਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇੱਕ ਕੁਝ ਕਰਜ਼ਾ ਦੁਕਾਨ ਅਤੇ ਮਕਾਨ ਲਈ ਲਿਆ ਸੀ ਜੋ ਵੱਧਦਾ-ਵੱਧਦਾ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਤੱਕ ਪੁੱਜ ਗਿਆ, ਦੇਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀਆਂ ਨਿੱਤ-ਦਿਨ ਦੀਆਂ ਧਮਕੀਆਂ ਅਤੇ ਝਿੜਕਾਂ ਤੋਂ ਤੰਗ ਆ ਕੇ ਉਸ ਨੇ 18 ਅਪ੍ਰੈਲ 2006 ਵਿੱਚ ਸਲਫ਼ਾਸ ਖਾ ਲਈ। ਵਿਧਵਾ, ਉਸ ਦੀ ਤੇਰ੍ਹਾਂ ਸਾਲ ਦੀ ਬੇਟੀ ਅਤੇ 17 ਸਾਲ ਦੇ ਲੜਕੇ ਨੂੰ ਗੁੜਤੀ ਹੀ ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਮਿਲੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਹੁਣ ਉਹ ਦਿਹਾੜੀ ਆਦਿ 'ਤੇ ਜਾਦੇ ਹਨ।
Dalit landless labourers' suicides in Punjab ਸਿੰਦੋ ਕੌਰ, ਤਿੰਨ ਜਵਾਨ ਕੁੜੀਆਂ ਅਤੇ ਇੱਕ ਮੁੰਡੇ ਨੂੰ ਵਿਰਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਜੇ ਕੁਝ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਜਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ। ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਬੇਟੀਆਂ ਘਰਾਂ ਵਿੱਚ ਗੋਹਾ ਕੁੜਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਮੁੰਡਾ ਦਿਹਾੜੀ 'ਤੇ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਸਿੰਦੋ ਰੋਂਦੀ ਹੋਈ ਆਪਣਾ ਦੁੱਖ ਦੱਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਦਾ ਪਤੀ ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ 48-49 ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ 35 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਨਾ ਮੋੜਨ ਕਰਕੇ ਸੰਨ 1990 ਵਿੱਚ ਰੇਲ ਗੱਡੀ ਅੱਗੇ ਛਾਲ ਮਾਰ ਕੇ ਜਾਨ ਦੇ ਗਿਆ ਸੀ। ਕਰਜ਼ਾ ਲਾਉਂਣ ਖਾਤਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਨੂੰ 5 ਮਰਲੇ ਥਾਂ ਦੇ ਵੀ ਵੇਚੇ ਪਰ ਇਹ ਘੱਟਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਵੱਧਦਾ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਦਹਾਕਿਆਂ ਮਰਗੋਂ ਵੀ 35 ਹਜ਼ਾਰ ਦੇ ਕਰੀਬ ਬਾਕੀ ਹੈ।
''ਜਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਦੇ ਖ਼ੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਦਸ ਸਾਲ ਦਿਨ ਰਾਤ ਘੱਟਾ ਢੋਹਣ 'ਤੇ ਵੀ ਇਹ ਕਰਜ਼ਾ ਵੱਧਦਾ ਹੀ ਗਿਆ ਅਤੇ ਅਖ਼ੀਰ ਮਾੜੇ ਕਰਮਾਂ ਵਾਲੇ ਦੀ ਜਾਨ ਲੈ ਲਈ ਪਰ ਇਹ ਸਾਡਾ ਖਹਿੜਾ ਹੁਣ ਵੀ ਨਹੀਂ ਛੱਡ ਰਿਹਾ। ਇਹ 13 ਤੇ 15 ਸਾਲ ਦੇ ਦੋ ਮੁੰਡੇ ਨੇ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜੰਮਦਿਆਂ ਹੀ ਕਰਜ਼ੇ ਨੇ ਜਾਲ ਵਿੱਚ ਫਸਾ ਲਿਆ। ਵੱਡੀ ਕੁੜੀ 17 ਸਾਲ ਦੀ ਵਿਆਹ ਦਿੱਤੀ ਹੈ।'' ਸੰਖੇਪ ਜਿਹੀ ਗੱਲ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣੇ ਦੁੱਖ ਬਿਆਨ ਕਰਦੀ ਵਿਧਵਾ ਮਜ਼ਦੂਰ ਛਿੰਦਰ ਕੌਰ ਦਾ ਰੋਣਾ ਨਹੀਂ ਠੱਲਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ। ਉਸ ਦੇ ਪਤੀ ਸੁੱਚਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਸੁੱਚਾਪਣ ਨਾ ਚੱਲਿਆ। ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਦਸ ਸਾਲ ਮਗਰੋ ਹੀ 35 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ 40-45 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਕਰਜ਼ਾ ਨਾ ਲਹਿਣ ਕਾਰਣ ਉਸ ਨੇ ਘਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਫ਼ਾਹਾ ਲੈ ਲਿਆ, ਹਲਾਂਕਿ ਉਹ ਲਗਾਤਾਰ ਦਸ ਸਾਲ ਉਸ ਕਿਸਾਨ ਦੇ ਖ਼ੇਤਾਂ ਦਾ ਪੁੱਤ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਗਰੀਬ ਪਰਿਵਾਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਦਿਹਾੜੀ ਆਦਿ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਛਿੰਦਰ ਹੋਰਨਾਂ ਕਿਰਤੀ ਔਰਤਾਂ ਵਾਂਗ ਹੀ ਗੋਹਾ- ਕੂੜਾ ਢੋਂਹਦੀ ਹੈ।
ਰਾਣੀ ਕੌਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ 'ਚ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦਾ ਗੋਹਾ-ਮੁਤਰਾਲ ਸਿਰ 'ਤੇ ਢੋਹ ਰਹੀ ਹੈ। ਤਿੰਨੋਂ ਬੱਚੇ ਗਰੀਬੀ ਕਾਰਣ ਅਨਪੜ੍ਹ ਰਹੇ ਗਏ ਹਨ। ਸੁੱਖਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇਸ ਪਰਿਵਾਰ 'ਤੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦੇ ਪਹਾੜ ਹਨ। ''ਇਹ ਰੰਡੇਪੇ ਵਾਲਾ ਦੁੱਖ, ਕੰਗਾਲੀ, ਕਰਜ਼ਾ, ਘੋਰ ਗਰੀਬੀ ਅਜਿਹੀ ਜਿੰਦਗੀ ਨਾਲੋਂ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਰੱਬ ਮੌਤ ਦੇ ਦੇਵੇ।'' ਆਪਣੇ ਅੱਥਰੂ ਪੂੰਝਦੀ ਹੋਈ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਉਸ ਦਾ ਪਤੀ ਸੁੱਖਾ ਸਿੰਘ 28 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਅਜ਼ਾਦੀ ਵਾਲੇ ਮਹੀਨੇ 31 ਤਾਰੀਖ 1995 ਨੂੰ ਜ਼ਹਿਰ ਪੀ ਕੇ ਆਪਣੇ ਜਿੰਦਗੀ ਮੌਤ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਗਿਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਿਰ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਡੇਢ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਸਿਰ ਸੀ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਆਹ ਨੂੰ 12 ਸਾਲ ਹੀ ਹੋਏ ਸਨ ਕਿ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਛੁਰੇ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਸਭ ਕੁਝ ਉਜਾੜ ਦਿੱਤਾ।
ਮਾਪਿਆਂ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਲਾਡ ਨਾਲ ਨਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਿੰਘ ਰੱਖਿਆ ਪਰ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਦੈਂਤ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਬਣ ਕੇ ਜਿਉਂਣ ਦਿੱਤਾ ਨਾ ਕੁਝ ਹੋਰ, ਇਸੇ ਪਿੰਡ ਫਾਤੂਹੀਵਾਲਾ ਦਾ ਅੰਗਰੇਜ 26 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ 1994 ਵਿੱਚ ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਆਤਮ ਘਾਤ ਕਰ ਗਿਆ। ਵਿਧਵਾ ਬੰਸੋ ਕੌਰ ਦੱਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਕੇਵਲ 5 ਸਾਲ ਹੀ ਹੋਏ ਸਨ। ਉਸ ਨੇ ਸਿਰ 50-60 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਸੀ ਜੋ ਉਸ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਕਾਰਣ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ। ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਦਲਦਲ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਪਰਿਵਾਰ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਜਾਲ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਣ ਲਈ 3-4 ਮੱਝਾਂ ਅਤੇ ਝੋਟੀਆਂ ਵੀ 10 ਤੋਂ 15 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਤੱਕ ਵਿੱਚ ਵੇਚੀਆਂ ਪਰ ਇਹ ਕਰਜ਼ਾ ਵੱਧਦਾ ਗਿਆ।
ਡੇਢ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ 8 ਕਨਾਲਾਂ ਜਗਾ ਵੇਚਣ ਨਾਲ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨ ਗੁਰਜੰਟ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਰਜ਼ੇ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਨਾ ਮਿਲੀ। ਕਰਜ਼ਾ, ਗਰੀਬੀ, ਕਬੀਲਦਾਰੀ, ਮਾਨਸਿਕ ਤਣਾਓ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ 25 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸੰਨ 1998 ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਅੱਗ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਹ ਕਰਜ਼ਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਵੀ ਸੀ। ਕਰਜ਼ਾ ਵੱਧਦਾ ਗਿਆ ਤਾਂ ਵਿਧਵਾ ਦਲਿਤ ਔਰਤ ਆਪਣੇ ਕਰਜ਼ਈ 4 ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਚੁੱਪ-ਚੁਪੀਤੇ ਹੀ ਪਿੰਡ ਛੱਡ ਗਈ। ਮ੍ਰਿਤਕ ਦਾ ਭਰਾ ਮਜ਼ਦੂਰ ਗੁਰਚਰਨ ਸਿੰਘ ਸੋਚ ਕੇ ਅਤੇ ਹਾਉਂਦਾ ਭਰ ਕੇ ਆਖਦਾ ਹੈ ਕਿ ਭਾਈ ਕਰਜ਼ਾ ਤਾਂ ਪਿੰਡ ਨਹੀਂ ਛੱਡਦਾ ਨਾ ਹੀ ਘਰ ਛੱਡਦਾ ਹੈ।
''ਸਾਡੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਕੋਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋ ਹੱਥਾਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਵੇਚਣ ਤੋਂ ਸਿਵਾਏ ਹੋਰ ਕੀ ਹੈ? ਇਹ ਵੀ ਜੇ ਵਿਕ ਗਈ ਤਾਂ ਰੋਟੀ ਖਾ ਲਈ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਫਿਰ….. . . .!'' ਵਿਧਵਾ ਦਲਿਤ ਔਰਤ ਗੁਰਦੀਪ ਕੌਰ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚ ਇਹ ਵਾਕ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਗੋਂਲਾ-ਧੰਦਾ ਕਰਕੇ ਵੇਲਾ-ਪੁਰਾ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਖ਼ੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਰਮਾ ਚੁਗਦੀ ਅਤੇ ਕਣਕ ਵੱਢਦੀ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਪਤੀ ਦੀ ਵਿਰਾਸਤ ਵਿੱਚ ਮਿਲਿਆ 30-40 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਬਰਕਰਾਰ ਹੈ। ਉਸ ਦਾ ਪਤੀ ਲੱਛਮਣ ਸਿੰਘ 21 ਸਤੰਬਰ 1998 ਨੂੰ ਆਪਣੀ 32 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਇੱਕ ਦਹਾਕਾ ਬਾਅਦ ਹੀ ਜ਼ਹਿਰ ਪੀ ਕੇ ਖ਼ੁਦਕੁਸੀ ਕਰ ਗਿਆ ਸੀ। ਵਿਧਵਾ ਨੇ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਕਿਰਤ ਵੇਚਣ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਆਪਣੀਆਂ ਦੋ ਮੱਝਾਂ ਵੀ 25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ ਵੇਚੀਆਂ ਪਰ ਕਰਜ਼ਾ ਵੱਧਦਾ ਗਿਆ।
ਭਾਗ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਕਿਉਂ ਭਾਗ ਫੁੱਟੇ? ਜਦੋਂ ਸਾਰਾ ਪਰਿਵਾਰ ਦਿਨ ਰਾਤ ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਕਮਾ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਸਾਰਾ ਪਰਿਵਾਰ ਕਿੱਥੇ ਹੈ? ਕੁਝ ਪਤਾ ਨਹੀਂ, ਕੁਝ ਕੁ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਡੱਬਵਾਲੀ ਦਿਹਾੜੀ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਉਸ ਦੇ ਛੋਟੇ ਮੁੰਡੇ ਬਾਰੇ ਪਿੰਡ ਵਾਲੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ''ਬਈ, ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਦੀ ਮੌਤ 'ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੁੱਖ ਨੇ ਪਾਗਲ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ।'' 24 ਸਾਲ ਦੀ ਭਰ ਜੁਵਾਨੀ ਵਿੱਚ ਸੁਲੱਖਣ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਵਿਆਹ ਤੋਂ 4 ਸਾਲ ਬਾਅਦ ਸੰਨ 2002 ਵਿੱਚ ਜ਼ਹਿਰ ਪੀ ਗਿਆ। ਪੀੜ੍ਹਤ ਪਰਿਵਾਰ 'ਤੇ 80 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਸੀ, ਜੋ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰ 'ਤੇ ਬਰਕਰਾਰ ਹੈ।
ਤਰਸੇਮ 35-36 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸੰਨ 2000 ਵਿੱਚ ਬੈਂਕ ਦਾ 50 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਕਰਜ਼ਾ ਨਾ ਮੋੜ੍ਹਨ ਕਾਰਣ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਵਸ ਜ਼ਹਿਰ ਪੀ ਗਿਆ। ਮਜ਼ਦੂਰ ਪਰਿਵਾਰ ਸਿਰ ਹੁਣ ਵੀ 30 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਹੈ।
ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਦਬਾਅ ਕਾਰਣ ਪਿੰਡ ਕੁਆਰੇ ਨੌਜਵਾਨ ਵੀ ਮੌਤ ਦੀ ਬੁੱਕਲ ਵਿੱਚ ਸਮਾ ਗਏ। ਲਗਾਤਾਰ ਦਸ ਸਾਲ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਖ਼ੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ, ਖ਼ੇਤਾਂ ਦਾ ਅਸਲੀ ਪੁੱਤ ਬਿੰਦਰ ਖਾਨ ਪੁੱਤਰ ਹਬੀਬ ਖਾਨ ਕਿਸਾਨ ਦਾ 25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਨਾ ਮੋੜ੍ਹਨ ਕਰਕੇ 1995 ਵਿੱਚ ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਆਤਮ ਹੱਤਿਆ ਕਰ ਗਿਆ। ਇਸ ਵਕਫੇ ਦੌਰਾਨ ਇਸ ਮਜ਼ਦੂਰ ਪਰਿਵਾਰ ਨੇ 5 ਮਰਲੇ ਦੀ ਥਾਂ ਵੀ 35 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ ਵੇਚੀ, ਪਰ ਅਜੇ ਵੀ 25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਭੂਤ ਦਨਦਨਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬੂਟਾ ਖਾਨ ਦੇ ਮੂੰਹੋਂ ਕੇਵਲ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਨਿਕਲਦੇ ਹਨ, ''ਮਜੂ'ਰ ਦੀ ਵੀ ਕੋਈ ਜਿੰਦਗੀ ਹੈ!''
22 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਦਾ ਕੁਆਰਾ ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਪੁੱਤਰ ਕਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਜਦੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਨਾ ਉਤਰਿਆ ਤਾਂ 11 ਮਈ ਨੂੰ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਗਲ ਰੱਸਾ ਪਾਉਣ ਦਾ ਇੱਕੋਂ ਇੱਕ ਰਾਹ ਚੁਣਿਆ। ਹੁਣ ਕਰਜ਼ਾ ਕਿੰਨ੍ਹਾ ਹੈ ਇਹ ਪੁੱਛਣ 'ਤੇ, ਉਸ ਦੀ ਮਾਂ ਰੋਂਦੀ ਹੋਈ ਹੱਥ ਮਾਰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਚੰਦਰੇ ਦਾ ਕੋਈ 'ਸਾਬ ਨ੍ਹੀ ਏ। ਇਸ ਅਰਸੇ ਦੌਰਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਰਜ਼ੇ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਂਣ ਲਈ 15-15 ਹਜ਼ਾਰ ਦੀਆਂ ਦੋ ਮੱਝਾਂ ਵੀ ਵੇਚੀਆਂ। ਪਰ ਕਰਜ਼ਾ ਜਿਉਂ ਦੀ ਤਿਉਂ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਹੈ।Dalit landless labourers' suicides in Punjabਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਹਨੇਰਾ ਹੀ ਸੀ। ਇਸ ਦੀ ਮਾਤਾ ਭਾਗਵੰਤੀ ਅਤੇ ਪਿਓ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਲਾਲ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਦਿਹਾੜੀ ਕਰਕੇ ਆਪਣਾ ਸਮਾਂ ਬਤੀਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ ਦੀਆਂ ਲੱਤਾਂ ਖੜ੍ਹਨ 'ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਇਲਾਜ਼ ਲਈ ਕਰਜ਼ਾ ਲਿਆ। ਬਿਮਾਰੀ ਅਤੇ ਕਰਜ਼ਾ ਇਕੱਠ ਹੀ ਵੱਧਦੇ ਗਏ ਤਾਂ ਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ ਨੇ ਇੱਕ ਨਵੰਬਰ 2003 ਨੂੰ ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਆਪਣੀ ਜੀਵਨ ਲੀਲਾ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਲਈ। ਕਰਜ਼ੇ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਂਣ ਲਈ ਪਰਿਵਾਰ ਨੇ 3 ਮੱਝਾਂ 20-25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦੀਆਂ ਵੇਚੀਆਂ ਪਰ ਇਹ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧਦਾ ਹੀ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਇਸੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਦਲਿਤ ਨੌਜਵਾਨ ਤਰਸੇਮ ਸਿੰਘ 13 ਨਵੰਬਰ 2008 ਨੂੰ ਫਾਹਾ ਲੈ ਕੇ ਆਤਮ ਹੱਤਿਆ ਕਰ ਗਿਆ। ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦੀ ਉਮਰ 20 ਸਾਲ ਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਕੁਆਰਾ ਹੀ ਸੀ। ਉਸ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਅਤੇ ਕਰਜ਼ਾ ਨਾਲੋਂ-ਨਾਲ ਵੱਧਦੇ ਗਏ। ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ 5 ਮਰਲੇ ਥਾਂ 7 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਇੱਕ ਮੱਝ 8 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਵਿੱਚ ਵੇਚੀ। ਮ੍ਰਿਤਕ ਦੀ ਮਾਤਾ ਸਿੰਦਰਪਾਲ ਕੌਰ ਦੱਸਦੀ ਹੈ ਕਿ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਕੋਈ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਹੀ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ।
ਪਿੰਡ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਗੂ ਸੁੱਖਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਕਿਰਤੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਦਿਨ ਰਾਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਕਰਜ਼ੇ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਭਿਆਨਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਉਹ ਸਰਕਾਰ 'ਤੇ ਦੋਸ ਦਿੰਦੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇੱਥੋਂ 5-4 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਪਿੰਡ ਹੈ, ਜੋ ਸੂਬੇ ਦੀ ਯੁਰਪ ਦੇ ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਅਤੇ ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਤੁਲਨਾ ਕਰਦਾ ਨਹੀਂ ਥੱਕਦਾ ਪਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਵਿਹੜੇ ਦੀ ਨਿਘਰਦੀ ਹਾਲਤ ਅਤੇ ਲੁੱਟ ਬਾਰੇ ਚੁੱਪ ਧਾਰੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਚਾਹ ਪੀਕੇ ਜਦੋਂ ਸੁੱਚਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਘਰੋਂ ਉੱਠਣ ਲੱਗਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀ ਕੰਧ 'ਤੇ ਲੱਗੇ ਇੱਕ ਪੋਸਟਰ ਤੋਂ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਨਜ਼ਰੀ ਪੈਂਦੇ ਹਨ:

ਮੇਰੀਆਂ ਸੋਚਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਬੇਕਰਾਰੀ ਹੈ ਅਜੇ।
ਜਿੰਦਗੀ ਤੁਰਦੀ ਪਈ, ਪਰ ਜੰਗ ਜਾਰੀ ਹੈ ਅਜੇ।

ਵਲੋਂ: ਬਲਜਿੰਦਰ ਕੋਟਭਾਰਾ

Wednesday, March 2, 2011

A BRIEF NOTE ON GODHRA VERDICT

ਭਾਰਤੀ ਰਾਜ ਦੇ 'ਸੈਕੁਲਰਵਾਦ' ਦਾ ਔਰੰਗਜੇਬੀ ਦੌਰ
Advocate Sudeep Singh

ਪਹਿਲੀ ਮਾਰਚ ਨੂੰ "ਕਾਫਲਾ' ਦੇ ਵਿੱਚ ਦਲੀਪ ਡ'ਸੂਜ਼ਾ ਦੀ ਗੋਧਰਾ ਫੈਸਲੇ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਦਿਲਚਸਪ ਟਿੱਪਣੀ ਛਪੀ ਹੈ। ਉਹ ਕੰਹਿਦਾ ਹੈ ਕਿ " ਫਰਵਰੀ 28,2002 ਨੂੰ ਗੋਧਰਾ 'ਚ ਇੱਕ ਗੱਡੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾਏ ਜਾਣ ਕਾਰਣ 59 ਵਿਅਕਤੀ ਮਾਰੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। 90 ਤੋਂ ਜਿਆਦਾ ਵਿਅਕਤੀ ਗਿਰਫਤਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, 9 ਸਾਲ ਕੇਸ ਚਲਦਾ ਹੈ, ਜਮਾਨਤਾਂ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਤੇ ਨੌਂ ਸਾਲਾਂ ਬਾਅਦ 63 ਵਿਅਕਤੀ ਬਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ 31 ਦੋਸ਼ੀ ਠਹਿਰਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿਹਨਾਂ 'ਚੋਂ ਵੀਹਾਂ ਨੂੰ ਉਮਰ ਕੈਦ ਤੇ 11 ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਫਰਵਰੀ 29 ਨੂੰ (ਅਗਲੇ ਦਿਨ), ਗੁਲਬਰਗ ਸੁਸਾਇਟੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਾ ਕੇ 69 ਵਿਅਕਤੀ ਮਾਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਪਾਠਕ ਨੂੰ ਖਾਲੀ ਥਾਵਾਂ ਭਰਨ ਨੂੰ ਕੰਹਿਦਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿੰਨੇ ਗਿਰਫਤਾਰ ਹੋਏ, ਕਿੰਨਿਆਂ ਦੀਆਂ ਜਮਾਨਤਾਂ ਰੱਦ ਹੋਈਆਂ, ਕਿੰਨਿਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ ਆਦ। ਇਸਦਾ ਜੁਆਬ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ। ਫੇਰ ਲੇਖਕ 1984, 1991 ਤੇ ਹੋਰ ਹਕੂਮਤੀ ਥਾਪੜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਮੂਹਕ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਕੇ ਇਹੀ ਸਵਾਲ ਦੁਹਰਾਉਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸਦਾ ਜਵਾਬ ਵੀ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ।

ਤੁਸੀਂ ਪੂਰਾ ਲੇਖ ਇੱਥੇ ਪੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹੋ:

http://kafila.org/2011/03/01/you-fill-in-the-rest-dilip-dsouza-on-godhra-verdict/

ਗੋਧਰਾ ਸਮੇਤ ਗੁਜਰਾਤ 'ਚ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਭਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਨਸਾਫ ਹੀ ਸੱਚੀ ਹਮਦਰਦੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਗੋਧਰਾ ਫੈਸਲਾ ਇਨਸਾਫ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਸਿਆਸਤ ਤੋਂ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੈ। ਗੋਧਰਾ ਫੈਸਲਾ ਵਿਵਾਦਤ ਤੇ ਨਿਰਮੂਲ ਸਬੂਤਾਂ ਦੇ ਅਧਾਰ ਤੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਜਮਹੂਰੀ ਕਾਰਕੰਨਾਂ ਤੇ ਪੀੜ੍ਹਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਕਰਮ ਆਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਹਨ।

http://www.thaindian.com/newsportal/uncategorized/godhra-case-should-be-re-investigated-prashant-bhushan_100508795.html
http://www.thaindian.com/newsportal/uncategorized/godhra-sentencing-based-on-dubious-evidence-swami-agnivesh_100508733.html
http://www.thaindian.com/newsportal/politics/godhra-verdict-vindicates-governments-stand-minister_100505951.html
http://www.outlookindia.com/article.aspx?270626

ਕਿਹਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸਨੇ ਗੁਜਰਾਤ ਫਸਾਦਾਂ ਬਾਰੇ ਮੋਦੀ ਦੀ ਲਾਈਨ 'ਤੇ ਠੱਪਾ ਲਾਇਆ ਹੈ। ਜਿਸ " ਸਾਜਿਸ਼ ਥਿਊਰੀ" ਦੇ ਅਧਾਰ 'ਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਸੁਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਕਈ ਸਰਕਾਰੀ ਕਮੇਟੀਆਂ ਤੇ ਕਮੀਸ਼ਨਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲੋਂ ਹੀ ਰੱਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਹੇਠਲੇ ਲਿੰਕ ਤੇ ਪੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹੋ।

http://www.hinduonnet.com/fline/fl2213/stories/20050701003303800.htm

ਨਿਰੋਲ ਫੈਸਲੇ ਬਾਰੇ ਭਰਵੀਂ ਟਿੱਪਣੀ, ਫੈਸਲੇ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਸਾਹਮਣੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਪਰ ਗੱਲ ਦਲੀਪ ਡ'ਸੂਜ਼ਾ ਵਲੋਂ ਉਠਾਏ ਸਵਾਲਾਂ ਤੇ ਨਹੀਂ ਮੁੱਕਦੀ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਮਾਮਲਾ ਇੱਕਲਾ ਗੋਧਰਾ ਫੈਸਲੇ ਦਾ ਹੈ।

ਸਮਾਜਕ ਇਨਸਾਫ ਲਈ ਜੂਝਦੀਆਂ ਲੋਕ-ਲਹਿਰਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਜੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਵੀ ਛੱਡ ਦੇਈਏ ਤਾਂ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀਆਂ, ਦਲਿਤਾਂ ਤੇ ਕੌਮੀਅਤਾਂ ਦੇ, ਹਕੂਮਤੀ ਥਾਪੜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਮੂਹਕ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ, ਮੁਜ਼ਰਮਾਨਾਂ ਤੌਰ 'ਤੇ ਲੰਮੀਆਂ ਅਦਾਲਤੀ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵੇਖਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਭਾਰਤੀ ਨਿਆਂ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਦਾ ਮੁਜ਼ਰਮ ਹੋ ਨਿੱਬੜਿਆ ਹੈ। ਭਾਰਤੀ ਨਿਆਂ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਛੋਟ ਤੋਂ, ਪਿਛਲੇ ਸੱਠਾਂ ਸਾਲਾਂ 'ਚ, ਅੱਡ-ਅੱਡ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀਆਂ, ਦਲਿਤਾਂ ਤੇ ਕੌਮੀਅਤਾਂ ਖਿਲਾਫ ਨਿਯਮਤ ਅੰਤਰਾਲਾਂ 'ਚ ਵਾਪਰਦੇ ਰਹੇ, ਵਿਉਂਤਵੱਧ ਸਮੂਹਕ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ 'ਚ, ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸ਼ਾਮਲ ਰਾਜਸੀ ਧਿਰਾਂ, ਸਥਾਨਕ ਗੁੰਡਿਆਂ ਤੇ ਸਿੱਧੀ-ਅਸਿੱਧੀ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪੁਲਸ ਤੇ ਫੌਜੀ ਬਲਾਂ ਨੂੰ ਕਲੀਨ ਚਿੱਟ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਜਦਕਿ ਅਫ਼ਜਲ ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਾਮਲਾ, ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਅਦਾਲਤੀ ਰਵੱਈਏ ਤੇ ਕਨੂੰਨ ਦੀਆਂ ਨਜ਼ਰਾਂ ਵਿਚਲੇ ਟੀਰ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਖਿਲਾਫ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ 'ਤੇ ਹਮਲੇ 'ਚ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਦਾ ਕੋਈ ਸਬੂਤ ਨਾ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਨੇ ਮਹਿਜ਼ ਇਸ ਲਈ ਫਾਂਸੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਤਾਂ ਜੋ "ਮੁਲਕ ਦੀ ਸਾਂਝੀ ਆਤਮਾ" ਦੀ ਤਸੱਲੀ ਕਰਵਾਈ ਜਾ ਸਕੇ।

ਦਲੀਪ ਡ'ਸੂਜ਼ਾ ਦੀ ਲਿਖਤ 'ਚ ਜਿਕਰ ਅਧੀਨ ਆਏ ਸਮੂਹਕ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਦੇ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਦੇ ਮਾਮਲੇ 'ਚ ਅਸਫਲਤਾ, ਅਯੁਧਿਆ ਫੈਸਲੇ, ਅਫ਼ਜਲ ਗੁਰੂ ਦੀ ਫਾਂਸੀ ਤੇ ਅਜਿਹੇ ਹੋਰ ਫੈਸਲਿਆਂ ਨਾਲ ਭਾਰਤੀ ਨਿਆਂ ਦਾ ਜੋ ਰੁਖ਼ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਹੈ ਉਸਦੇ ਅਦਾਲਤੀ ਨਿਆਂ ਦੀ ਅਸਫਲਤਾ ਨਾਲੋਂ ਵੱਡੇ ਸਿੱਟੇ ਉਸ ਰਾਜਸੀ ਸੰਦੇਸ਼ 'ਚ ਸਮੋਏ ਹੋਏ ਹਨ ਜਿਸ ਨਾਲ ਅਦਾਲਤਾਂ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਕਤਲੇਆਮਾਂ ਦੀਆਂ ਜੁੰਮੇਵਾਰ ਮੁੱਖ-ਧਰਾਈ ਰਾਜਸੀ ਧਿਰਾਂ ਦੇ ਫਿਰਕੂ ਤਰਕ 'ਤੇ ਮੋਹਰ ਲਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਸਾਡਾ ਰਾਜਸੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਿਘਾਰ ਦੇ ਉਸ ਚਰਮ ਨੂੰ ਛੂਹ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਫਿਰਕੂ ਟਕਰਾਵਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲੇ 'ਚ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖਤਾ ਦਾ ਮੁਖੌਟਾ ਲੀਰੋ-ਲੀਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਹੁਣ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਮੇਤ ਇਹ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਫਿਰਕੂ ਟਕਰਾਵਾਂ 'ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਅਨਸਰ ਦਾ ਪ੍ਰਤਖ ਰੋਲ ਨਿਭਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਕੌਮੀ ਮੀਡੀਆ ਦੇ ਇਸ ਅਰਸੇ ਵਿਚਲੀ ਉਲਾਰੂ ਭੂਮਕਾ ਨੂੰ ਗਿਣ ਲਈਏ ਤਾਂ ਸਥਿਤੀ ਹੋਰ ਵੀ ਗੰਭੀਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਵੀ ਕੋਈ ਮੌਕਾ ਮੇਲ ਨਹੀਂ ਕਿ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਜਗਤ ਨੇ ਮੋਦੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲੋਂ ਹੀ ਓ.ਕੇ ਦਾ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਦਿੱਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ।

ਭਾਰਤੀ ਰਾਜ ਦੇ 'ਸੈਕੁਲਰਵਾਦ' ਦਾ 'ਅਕਬਰੀ ਦੌਰ' ਤਾਂ ਕਦੋਂ ਦਾ ਬੀਤ ਚੁੱਕਾ ਹੈ ਤੇ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਇਸਦੇ ਔਰੰਗਜੇਬੀ ਦੌਰ 'ਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਦਾਖਲ ਹੋ ਰਹੇ ਹਾਂ