छत्तीसगढ़: जवानों पर गंभीर आरोप
सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, रायपुर - बुधवार, 23 मार्च, 2011
छत्तीसगढ़ के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले दंतेवाड़ा जिले में पिछले 14 मार्च को अर्धसैनिक बलों के जवानों द्वारा कथित रूप से आदिवासियों के घरों को जलाए जाने और कुछ महिलाओं से दुर्व्यवहार करने के आरोपों की जांच शुरू हो गई है.
सुरक्षाबलों पर आरोप है कि उन्होंने पांच ग्रामीणों को नक्सली बताते हुए "ठंडे दिमाग" (Cold Blood) से मार गिराया है, लगभग तीन सौ झोपड़ियों में आग लगाई और तीन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया है.
ये घटना दंतेवाड़ा के उस चिंतलनार इलाके की है जहाँ पिछले साल छह अप्रैल को माओवादियों ने घात लगाकर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के 76 जवानों को मार गिराया था. बुधवार को ये मामला छत्तीसगढ़ विधानसभा में उठा. कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल ने सदन में ध्यानार्कषण प्रस्ताव पेश किया. विधानसभा अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक ने आश्वासन दिया है कि वे सरकार से इस विषय पर जवाब मांगेंगे और विधानसभा में अलग से चर्चा भी होगी.
घटना
चिंतलनार के पुलिस कैंप के बीस किलोमीटर की परिधि में घने जंगलों की श्रंखला के बीच कई आदिवासी गांव हैं और 14 मार्च की सुबह अचानक नाकेबंदी करते हुए अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों नें इस पूरे इलाके को घेर लिया. पुलिस का दावा था कि उन्हें गुप्त सूचना मिली थी कि मोरापल्ली के इलाके में बड़े माओवादी कमांडरों का जमावड़ा है और इस इलाके में नक्सलियों की हथियार बनाने की मशीन भी लगी हुई है. मगर यहाँ पुलिस को कुछ नहीं मिला. खबरें हैं की सुरक्षा बलों की टुकड़ी नें लौटते वक़्त पास के ही तिमापुरम में पड़ाव डाला जहाँ उनकी माओवादियों के साथ मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में तीन जवान मारे गए थे जबकि 9 जवान घायल हुए थे.
कहा जा रहा है कि उसके बाद जो कुछ हुआ उसने पुलिस और अर्धसैनिक बलों को कटघरे में खड़ा कर दिया है. सुरक्षाबलों पर आरोप है कि बौखलाहट में उन्होंने तीन गांव में जमकर तांडव मचाया. कहा जा रहा है कि पटेलपाड़ा गाँव में जब सुरक्षा बलों नें धावा बोला तो गाँव का ही एक माडवी चूला पेड़ पर चढ़ कर इमली तोड़ रहा था. आरोप है कि उसको वही गोली मार दी गई.
जांच के आदेश
दंतेवाड़ा के कलेक्टर आर प्रसन्ना नें बीबीसी से बात करते हुए कहा, "हमें भी खबरें मिलीं हैं कि कुछ आदिवासियों के घरों में आग लगा दी गई है. अब ये आग किसने लगाई है इसका पता नहीं चला है. आग सुरक्षाबलों के जवानों ने लगाई या माओवादियों नें यह स्पष्ट नहीं है."
प्रसन्ना कहते हैं कि कि गांववाले आरोप लगा रहे हैं कि तीन महिलाओं के साथ सुरक्षाबलों के जवानों नें दुर्व्यवहार किया है और कुछ ग्रामीणों को गोली भी मारी है. प्रसन्ना ने बीबीसी को बताया, "अभी तक किसी गांव वाले नें आगे आकर इसके बारे में कोई लिखित शिकायत नहीं की है."
दंतेवाड़ा के कलेक्टर ने मामले की जांच करने के लिए तहसीलदार के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है. उनका कहना है इस समिति में एक महिला अधिकारी को भी रखा गया है. फ़िलहाल दंतेवाड़ा ज़िला प्रशासन नें मुआवज़े की घोषणा भी की है. प्रसन्ना का कहना है जिनके घर जले हैं उन्हें पचास हज़ार रुपए बतौर मुआवजा मिलेगा मगर जांच पूरी होने के बाद.
पहली घटना नहीं
ये पहला मौका नहीं है जब सुरक्षाबलों पर इस तरह का आरोप लगा हो.
बस्तर के नारायणपुर, जगदलपुर, बीजापुर और कांकेर जिलों में पिछले दो सालों में ऐसी कई वारदातें हुईं हैं जिसने सुरक्षा बलों को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
पिछले साल नारायणपुर के ओंग्नार में भी सुरक्षा बलों पर इसी तरह के आरोप लगे थे. वहां गांव की अपनी झोपडी में खाना पका रही एक लड़की को गोली मारने का आरोप भी पुलिस पर लगा है.
हालांकि सभी मामले प्रकाश में आए और प्रशासन ने जांच के आश्वासन भी दिए मगर दोषियों के ख़िलाफ़ कभी कोई कार्रवाई नहीं होने से जनता और सरकार के बीच अविश्वास की खाई और बढ़ गयी है.
सामजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के अनुसार 18 मार्च वर्ष 2008 में माथवाड़ा के सलवा जुडूम के कैंप के पास तीन आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी.
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