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Tuesday, January 17, 2017

ਨਵ ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਵਿਕਾਸ ਮਾਡਲ ਗਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਹੋਰ ਗਰੀਬ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ

ਭਾਰਤ ਦੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਸਭ ਤੋਂ ਅਮੀਰ ਲੋਕ,
ਇਥੋਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਧਨ ਦੌਲਤ ਦੇ 58 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਹਿੱਸੇ ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰੀ ਬੈਠੇ ਹਨ !


ਸਾਮਰਾਜੀ ਹਿਤਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ, ਸੰਸਾਰੀਕਰਨ, ਉਦਾਰੀਕਰਨ ਅਤੇ ਨਿੱਜੀ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਨਵ ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਹੀਜ ਪਿਆਜ਼ ਬੁਰੀ ਤਰਾਂ ਨੰਗਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ | ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਇਹਨਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇਂ ਅਮੀਰ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਦਾ ਪਾੜਾ ਦਿਨੋ ਦਿਨ ਹੋਰ ਵਧਾਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਧਨ ਦੌਲਤ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸੋਮੇਂ ਚੰਦ ਕੁ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਚ ਸੰਭਾ ਦਿੱਤੇ ਹਨ |
ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਮਸਲਿਆਂ ਬਾਰੇ ਸਰਗਰਮ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਜਥੇਬੰਦੀ ਔਕਸਫੈਮ (OXFAM ) ਵੱਲੋਂ ਜਾਰੀ ਇੱਕ ਰਿਪੋਰਟ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅਮੀਰ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚਕਾਰ ਪਾੜਾ ਵਿਕਰਾਲ ਰੂਪ ਧਾਰ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ | ਇਸ ਰਿਪੋਰਟ ਅਨੁਸਾਰ :
* ਭਾਰਤ ਦੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਸਭ ਤੋਂ ਅਮੀਰ ਲੋਕ, ਇਥੋਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਧਨ ਦੌਲਤ ਦੇ 58 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਹਿੱਸੇ ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰੀ ਬੈਠੇ ਹਨ ;
* ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਿਰਫ 57 ਖਰਬਪਤੀਆਂ (Billionaires) ਕੋਲ ਇਨੀਂ ਦੌਲਤ ਹੈ ਜਿਨੀਂ ਇਥੋਂ ਦੇ ਹੇਠਲੀ ਪੱਧਰ ਦੇ 70 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਹੈ |
* ਸੰਸਾਰ ਪੱਧਰ ਤੇ ਸਿਰਫ 8 ਖਰਬਪਤੀਆਂ ਕੋਲ ਇਨੀਂ ਦੌਲਤ ਹੈ ਜਿੰਨੀਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਅੱਧੇ  ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਹੈ|
* ਭਾਰਤ ਦੇ 84 ਖਰਬਪਤੀਆਂ ਕੋਲ ਕੁੱਲ ਮਿਲਾ ਕੇ 284 ਖਰਬ ਅਮਰੀਕੀ ਡਾਲਰ ਮੁੱਲ ਦੀ ਦੌਲਤ ਹੈ | ਇਹਨਾਂ ਚੋ ਪਹਿਲੇ ਨੰਬਰ ਤੇ ਮੁਕੇਸ਼ ਅੰਬਾਨੀ ( 19.3 ਖਰਬ ਅਮਰੀਕੀ ਡਾਲਰ), ਦੂਜੇ ਨੰਬਰ ਤੇ ਦਲੀਪ ਸੰਘਵੀ (16.7 ਖਰਬ ਅਮਰੀਕੀ ਡਾਲਰ) ਅਤੇ ਤੀਜੇ ਨੰਬਰ ਤੇ ਅਜ਼ੀਮ ਪ੍ਰੇਮਜੀ (15 ਖਰਬ ਅਮਰੀਕੀ ਡਾਲਰ) ਆਉਂਦਾ ਹੈ |
* ਰਿਪੋਰਟ ਵਿਚ ਦਾਅਵਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਅਮੀਰ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਦੇ ਪਾੜੇ ਦਾ ਇਹ ਰੁਝਾਨ ਇਸੇ ਤਰਾਂ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਆਉਂਦੇ 20 ਸਾਲਾਂ ਚ 500 ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਮੀਰ ਲੋਕ, ਆਪਣੇ ਵਾਰਸਾਂ ਨੂੰ ਇਨੀਂ ਧਨ ਦੌਲਤ ਸੰਭਾ ਦੇਣਗੇ ਜੋ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੁੱਲ ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਹੋਵੇਗੀ |        

Saturday, January 15, 2011

Mass-protests against Black Laws


लूट,दमन, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने के संवैधानिक अधिकार को छीनने वाले पंजाब सरकार के दो नए काले कानूनों के खिलाफ साझे संघर्ष में शामिल हों!

20 जनवरी 2011, दिन वीरवार, सुबह 11 बजे डी. सी. कार्यालय, लुधियाना पर

विरोध-प्रदर्शन में पहुँचो!

इंसाफपसंद मज़दूर-मेहनतकश लोगो!

पंजाब विधानसभा ने दो ऐसे खतरनाक काले कानून पास किए हैं जिनके बारे में सुनकर हर इंसाफपसंद व्यक्ति चौंक उठता है, उसका मन रोष और गुस्से से भर उठता है। पंजाब सार्वजनिक और निजी जायदाद नुकसान (रोकथाम) कानून-2010 और पंजाब विशेष सुरक्षा कानून-2010 -- दो ऐसे काले कानून हैं जिनके जरिए लूट, शोषण, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनता के संवैधानिक अधिकारों को पंजाब सरकार छीनने के लिए कदम उठा चुकी है। ये कानून कहते हैं कि लोग सरकारी तंत्र से बिना आज्ञा अपने हक में एकजुट होकर गले से आवाज तक नहीं निकाल सकते! अगर आज्ञा नहीं ली गई तो कठोर सजा थोपी जाएगी। यहाँ तक कि इन कानूनों के जरिए हक, सच, इंसाफ के लिए संघर्ष करने वालों को देश-विरोधी, देश-द्रोही तक करार दिया जा सकता है।

मजदूरों-मेहनतकशों को बिना एकजुट संघर्ष के कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। आज के अंधेरे समय का यह नंगा सच है कि मजदूरों-मेहनतकशों की विशाल गरीब आबादी मुट्ठीभर पूँजीपति शक्तिशाली लोगों द्वारा भयंकर लूट-शोषण-अन्याय का शिकार है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों की दिन-रात सेवा में लगी सरकारों की घोर जनविरोधी नई आर्थिक नीतियाँ जनता को गरीबी-बदहाली के महासागर में डुबो रही हैं। ठेके, पीस रेट, दिहाड़ी पर कारखानों, खेतों-खलियानों, खदानों, निर्माण आदि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को गुलामों की तरह खटना पड़ रहा है। उनके पास कोई अधिकार नहीं है। सब कुछ पूँजीपतियों की मर्जी पर निर्भर हो गया है। मजदूरों पर बेहद कम वेतन पर कमरतोड़ मेहनत और भयंकर कंगाली-बदहाली का जीवन थोप दिया गया है। छोटे किसान, छोटे दुकानदार तथा अन्य सभी गरीब लोग, सब के सब भयंकर कंगाली का शिकार हैं। सारी धन-दौलत मुट्ठीभर पूँजीपतियों के पास जमा हो रही है। जनता में रोष लगातार बढ़ता जा रहा है और वह जुझारू आन्दोलनों की राह अपना रही है। उत्तर भारत की ही बात करें तो लुधियाना, गुड़गांव, दिल्ली, गोरखपुर आदि जगहों के औद्योगिक मजदूरों के आन्दोलन इस बात का सबूत हैं। पंजाब में मजदूरों तथा गरीबों-मेहनतकशों के आन्दोलनों में एक नया उभार पैदा हुआ है। पूँजीपति वर्ग व उनकी सरकार हुक्मरान अच्छी तरह जानते हैं कि यह सिलसिला अब थमने वाला नहीं है। वे आने वाले दिनों में फैलने वाले व्यापक जनाक्रोश व जनान्दोलनों से इतना भयभीत हैं कि जनता के संगठित होने व संघर्ष करने के संविधान में दर्ज नाकाफी से जनवादी अधिकार भी छीनने की तैयारी में हैं। हुक्मरान काले कानूनों व ताकत से जनान्दोलनों का दमन करना चाहते हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसे काले कानूनों से, जेल-लाठी-गोली की धमकियों से जनता की भावनाओं को, हक-सच-इंसाफ के लिए उनकी एकजुट, संगठित इच्छाशक्ति को हरगिज दबाया नहीं जा सकता। इतिहास मजदूरों-मेहनतकशों के गौरवशाली महान जनान्दोलनों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। जनता ने ही राजा-महाराजाओं-सामन्तों के बर्बर से बर्बर राजतंत्रों को मिट्टी में मिलाया। आठ घण्टे का कार्यदिवस लागू करवाने के मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़े गए संघर्ष को दबाने के लिए दुनिया के पूँजीपतियों ने क्या-क्या हथकण्डे नहीं अपनाए थे। अंग्रेजी साम्राज्‍यवाद को न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में जनता ने ही मुँह के बल गिराया था। शायद हुक्मरानों ने इतिहास से कुछ भी सबक नहीं लिया!

साथियो, आओ अब जरा विस्तार में जानें कि पंजाब विधानसभा द्वारा पास किए ये काले कानून क्या कहते हैं। पंजाब सार्वजनिक और निजी जायदाद नुकसान (रोकथाम) कानून-2010, कहता है कि किसी जनसंगठन, यूनियन आदि ने कोई प्रदर्शन, मार्च, या जुलूस आयोजित करना है तो पहले सरकारी तंत्र से पूछना होगा। पुलिस कमिशनर या डी.एम. की आज्ञा के बिना लोग एकजुट होकर शांतिपूर्ण ढंग से भी अपने गले से आवाज तक नहीं निकाल सकते। उनसे आज्ञा न मिलने पर आप दस दिनों के भीतर पंजाब सरकार के पास अर्जी दे सकते हैं लेकिन सरकार जवाब दे या न दे उसकी मर्जी। सरकार कहती है कि बिना अनुमति के शांतिपूर्ण जुलूस निकालने पर भी 5 वर्ष की सजा और 30,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। अगर आज्ञा मिल भी जाती है तो भी जुलूस किस रास्ते से गुजरेगा, नारे क्या लगेंगे, भाषण क्या होंगे, बैनरों पर क्या लिखा होगा आदि बातें पुलिस ही तय करेगी। झण्डों में डाले गए डण्डों को हथियार का नाम देकर प्रदर्शन-जुलूस में लेकर जाने पर पाबंदी होगी। लिखित आज्ञा के बावजूद अगर जुलूस में बाहर से घुस आए शरारती लोगों, गुण्डों या खुद पुलिस द्वारा भी कोई गड़बड़ होती है और निजी या सरकारी चीजों का कोई नुकसान होता है तो सारा दोष संघर्ष करने वालों का ही निकाला जाएगा और नुकसान के भुगतान सहित तीन वर्ष की कैद और बीस हजार रुपए जुर्माने की सजाएँ थोपी जा सकती हैं।

दूसरा कानून, पंजाब विशेष सुरक्षा कानून ग्रुप-2010, के तहत देश-विरोधियों को काबू करने के नाम पर हक-सच-इंसाफ के लिए संघर्षशील लोगों को कुचलने के लिए एक विशेष हथियारबंद ग्रुप बन रहा है। यह फौज जैसे अधिकारों वाली पुलिस होगी। यह कानून कहता है कि कोई भी गैरकानूनी काम करने वाला व्यक्ति देश-विरोधी है। इसका अर्थ है कि किसी भी तरह के गैरकानूनी काम का इलजाम लगाकर देश-विरोधी करार देकर संघर्षशील इंसाफपसंद लोगों का दमन होगा। सरकार के ये विशेष हथियारबंद व्यक्ति उन अमीरों को, जिन्हें बहुत खतरा है, को विशेष सुरक्षा देंगे। सुरक्षा के दौरान अगर ये विशेष हथियारबंद व्यक्ति किसी को गोली भी मार देते हैं तो उनपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। अगर किसी संगठन का कोई भी सदस्य व्यक्तिगत तौर पर किसी भी तरह के, चाहे कोई मामूली या गम्भीर जुर्म करता है तो उस पूरे संगठन को देश-विरोधी करार देकर पाबंदी लगाई जा सकती है। दोनों कानूनों को जरा जोड़कर देखिए। उदाहरण के लिए अगर लोग सरकार से बिना आज्ञा लिए वेतन बढ़ाने या महँगाई के मुद्दे पर या किसी पूँजीपति, नेता, अफसर या पुलिस द्वारा हुए अन्याय के खिलाफ, या ऐसे ही अन्य किसी मुद्दे पर एकजुट होकर प्रदर्शन करना चाहते हैं तो उन्हें सरकारी तंत्र से पहले आज्ञा लेनी होगी! अगर बिना लिखित आज्ञा लिए ऐसा किया जाएगा तो लोगों को देश-विरोधी तक करार दिया जा सकेगा!

पहले ही पुलिस कानूनी और उससे भी अधिक गैरकानूनी ढंग से जनता पर जो कहर बरपा करती रही है क्या वो कम था? पूंजीपतियों और पुलिस का गठबन्धन जगजाहिर है। मामूली से मामूली मसले से लेकर बड़ी से बड़ी समस्या तक के लिए लोगों को पुलिस से अन्याय ही सहना पड़ता है। लुधियाना के साइकिल, ऑटोपार्ट्स, वूलन सहित अन्य कारखानों के मजदूर अच्छी तरह जानते हैं कि उनके संघर्षों को कुचलने के लिए पुलिस मालिकों के गुण्डों के साथ मिलकर किस प्रकार मजदूरों का दमन करती रही है। इस कानून के इस्तेमाल से पूँजीपति पुलिस के रूप में भी कानूनी तौर पर गुण्डों को रख सकते हैं। ये कानून मजदूरों-मेहनतकशों पर हो रहे अत्याचारों, जोर-जुल्म, दमन को कानूनी जामा पहनाने के सिवा कुछ नहीं है।

पंजाब की जनता अपने लूट, शोषण, अन्याय के खिलाफ एकजुट आवाज बुलन्द करने के अपने अधिकार पर उपरोक्त कानूनों के जरिए बोले गए हमले को भी हरगिज बर्दाशत नहीं करने वाली। मजदूर साथियो, पंजाब के औद्योगिक, खेतिहर, निर्माण आदि क्षेत्र के मजदूरों के संगठनों सहित किसानों, बिजली व रोडवेज कर्मचारियों, स्कूल अध्यापकों आदि तबकों के तीन दर्जन से भी अधिक जनसंगठनों द्वारा पंजाब सरकार के इन काले कानूनों को रद्द करवाने के लिए साझा जुझारू संघर्ष छेड़ दिया गया है। यह संघर्ष इन काले कानूनों को रद्द करवाए बिना रुकने वाला नहीं। लुधियाना के मजदूरों-मेहनतकशों ने पहले भी अपने शानदार संघर्षों के जरिए बड़ी जीतें हासिल की हैं। हाल ही में पिछले वर्ष अगस्त-सितम्बर में चला टेक्सटाइल मजदूरों का शानदार संघर्ष, पूरे एक साल पहले ढण्डारी काण्ड के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए चले विजयी संघर्ष इसके दो बड़े उदाहरण हैं। अगर लुधियाना के मजदूर-मेहनतकश पूरे पंजाब की जनता के साथ एकजुट होकर जुझारू संघर्ष लड़ते हैं तो सरकार को मजबूर होना ही पड़ेगा कि वह इन कानूनों को रद्दी की टोकरी में फेंक दे। साझे संघर्ष के पहले बड़े कदम के तौर पर 20 जनवरी को पंजाब के सभी जिला हैडक्वाटरों पर विशाल विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। हमें पूरा भरोसा है कि लुधियाना के मजदूर-मेहनतकश न सिर्फ इस संघर्ष में हिस्सा लेंगे बल्कि अगली कतारों में मौजूद रहकर संघर्ष का झण्डा बुलंद करेंगे।

किसी कारणवश इस साझे संघर्ष में अभी तक शामिल न हुए जनसंगठनों से हमारी पुरजोर अपील है कि वे हुक्मरानों की इस बड़े हमले की नापाक कोशिशों को नाकाम करने के लिए हमारे साथ मिलकर संघर्ष करें।


अपीलकर्ता संगठन :
कारखाना मजदूर यूनियन (लखविन्‍दर - 99880-79240)
टेक्‍सटाइल मजदूर यूनियन (राजविन्‍दर - 98886-55663)
नौजवान भारत सभा (अजेपाल - 80540-567640)
मोल्‍डर एण्‍ड स्‍टील वर्कर्ज यूनियन, रजि. (हरजिन्‍दर सिहं - 94643-60755)
लाल झण्‍डा टेक्‍सटाइल एण्‍ड हौजरी मजदूर यूनियन (राम अवतार - 99158-39906)
लोक एकता संगठन (गल्‍लर चौहान - 98884-26986)
पंजाब निर्माण मजदूर यूनियन (लाल बहादूर - 93169-39703)
मोल्‍डर एण्‍ड स्‍टील वर्कर्ज यूनियन, रजि. (विजय नारायण - 04174-72095)
भारत निर्माण मजदूर यूनियन (हरदेव सिंह सनेत - 98141-51556)
मूल पर्वाह अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज (वासुदेव भट्टाराय)

Tuesday, July 6, 2010

ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀ ਦੀ ਮਾਰ ਹੇਠ ਘਰੇਲੂ ਸਨਅਤ

'ਪੰਜਾਬੀ ਟ੍ਰਿਬਿਊਨ' ਅੰਦਰ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਨਅਤ ਦੇ ਹਾਲਤਾਂ ਬਾਰੇ ਖਬਰਾਂ ਦੀ ਇਕ ਲੰਮੀ ਲੜੀ ਛਪੀ ਹੈ ਜੀਹਦੇ 'ਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਨਅਤ ਦੇ ਬਹੁਤ ਮੰਦੇ ਹਾਲੀਂ ਹੋਣ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਉਘੜਦੀ ਹੈ। ਬਹੁਤੇ ਕਾਰੋਬਾਰ ਬੰਦ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਤੇ ਰਹਿੰਦੇ ਵੀ ਘਾਟਾ ਸਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਬੰਦ ਹੋਣ ਦੀ ਤਿਆਰੀ 'ਚ ਹਨ। ਪੰਜਾਬ ਛੋਟੀਆਂ ਸਨਅਤਾਂ ਵਾਲਾ ਸੂਬਾ ਹੈ। ਚਮੜਾ, ਕੱਪੜਾ, ਹੈਂਡਲੂਮ, ਹੌਜਰੀ ਫਰਨੀਚਰ ਤੇ ਰਬੜ ਉਦਯੋਗ ਵਗੈਰਾ ਇਹਦੀ ਸਨਅਤ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਖੇਤਰ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਸਭਨਾਂ ਖੇਤਰਾਂ ਤੇ ਇਹਦੀਆਂ ਸਹਾਇਕ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਦੇ ਬੰਦ ਹੋਣ ਦਾ ਅਮਲ ਚਿੰਤਾ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਹੈ। ਖਬਰਾਂ ਦੱਸਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਰਬੜ ਦੇ ਖੇਤਰ 'ਚ 400 ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਹੁਣ ਲਗਭਗ 100 ਦੇ ਕਰੀਬ ਰਹਿ ਗਈ ਹੈ, ਬਾਕੀ ਦੀਆਂ ਦਮ ਤੋੜ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਬਟਾਲਾ ਵਰਗੇ ਸਨਂਅਤੀ ਸ਼ਹਿਰ ਅੰਦਰ ਕਦੇ ਛੋਟੇ ਵੱਡੇ ਸਨਅਤੀ ਯੂਨਿਟਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਦੇ 3000 ਹਜ਼ਾਰ ਹੋਇਆ ਕਰਦੀ ਸੀ ਜੋ ਘਟ ਕੇ 300 ਵੱਡੀਆਂ ਸਨਅਤਾਂ ਅਤੇ ਆਖਰੀ ਸਾਹਾਂ 'ਤੇ ਆਈਆਂ ਗਿਣਤੀ ਦੀਆਂ ਛੋਟੀਆਂ ਇਕਾਈਆਂ ਤੱਕ ਸੀਮਤ ਰਹਿ ਗਈ ਹੈ। ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ਦੀ ਧਾਗਾ ਫੈਕਟਰੀ 'ਚੋਂ ਸੈਂਕੜੇ ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਖੁੱਸਿਆ ਹੈ। ਰਾਜਪੁਰਾ ਦੀ ਸਨਅਤਾਂ ਬੰਦ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਦ ਉਥੋਂ ਹਜ਼ਾਰਾ ਕਾਮੇ ਵਿਹਲੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਗੁਰਾਇਆ ਦੀ ਸਨਅਤ 'ਚ ਕਦੇ ਦੋ ਢਾਈ ਸੌ ਯੂਨਿਟ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਹੁਣ 10-12 ਹੀ ਰਹਿ ਗਏ ਹਨ। ਪੂਰੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਸਨਅਤੀ ਖੇਤਰ ਦਾ ਇਹੀ ਆਲਮ ਹੈ। ਲੱਖਾਂ ਦੀ ਤਾਦਾਦ ਵਿਚ ਕਾਮੇ ਵਿਹਲੇ ਹੋ ਗਏ ਹਨ। ਕਿਸੇ ਸਮੇਂ ਪੈਦਾਵਾਰ ਦੇ ਖੇਤਰ 'ਚ ਜੁਟੇ ਲੋਕ ਹੁਣ ਛੋਟੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਤੇ ਸਮਾਨ ਵੇਚਣ ਤੱਕ ਸੀਮਤ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਏ ਹਨ।

ਇਹਨਾਂ ਸਮੁੱਚੀਆਂ ਖਬਰਾਂ ਅੰਦਰ ਛੋਟੀਆਂ ਸਨਅਤਾਂ ਦੀ ਅਜਿਹੀ ਮੰਦੀ ਹਾਲਤ ਦੇ ਜੋ ਕਾਰਨ ਉਭਰਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਜੋ ਸਨਅਤਕਾਰਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹੋਂ ਬਿਆਨੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਹ ਸਭਨਾਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਹੀ ਹਨ। ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦਾ ਬੇਹੱਦ ਮਹਿੰਗਾ ਹੋਣਾ, ਟੈਕਸਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਬੋਝ, ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਕਮੀ ਤੇ ਮਹਿੰਗਾਈ, ਮੰਡੀਕਰਨ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ, ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਮਾਨ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕਣਾ, ਸਨਅਤ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਕਮੀ ਤੇ ਸਨਅਤੀ ਉਦਮੀਆਂ ਲਈ ਸਸਤੇ ਕਰਜ਼ੇ ਮੁਹੱਈਆ ਨਾ ਹੋਣਾ ਆਦਿ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣਦੇ ਹਨ। ਸਭਨਾਂ ਛੋਟੇ ਸਨਅਤਕਾਰਾਂ ਦਾ ਇਹੀ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਪਿਛਲੇ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਕੱਚੇ ਧਾਗੇ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ 'ਚ 50 ਫੀਸਦੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਜੀਹਦਾ ਹੌਜ਼ਰੀ ਸਨਅਤ 'ਤੇ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਅਸਰ ਪਿਆ ਹੈ। ਇਉਂ ਹੀ ਰਬੜ ਉਦਯੋਗ 'ਚ ਵੀ ਕਿਸਾਨਾਂ ਕੋਲੋਂ 32 ਰੁ: ਪ੍ਰਤੀ ਕਿਲੋ ਦੇ ਹਿਸਾਬ ਨਾਲ ਖਰੀਦੀ ਰਬੜ ਮੈਨੂਫੈਕਚਰਾਂ ਲਈ 164 ਰੁ: ਪ੍ਰਤੀ ਕਿਲੋ ਦੇ ਰੇਟ ਤੱਕ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਹੀ ਹਾਲ ਲੋਹੇ ਤੇ ਸਟੀਲ ਦੇ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜੀਆਂ ਏਥੋਂ ਦੇ ਸਨਅਤਕਾਰਾਂ ਲਈ ਚੀਨ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ 20 ਫੀਸਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹਨ। ਇਹਤੋਂ ਬਾਅਦ ਟੈਕਸਾਂ ਦੇ ਭਾਰੀ ਬੋਝ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਰਬੜ ਦੇ ਸਮਾਨ 'ਤੇ ਸਾਢੇ ਪੰਜ ਫੀਸਦੀ ਵੈਟ ਲੱਗਦਾ ਹੈ। ਬਿਜਲੀ ਦੀਆਂ ਸਵਿਚਾਂ ਉਪਰ 13.2% ਵੈਟ ਲੱਗਦਾ ਹੈ। ਵੈਟ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਹੋਰ ਵੀ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਟੈਕਸ ਹਨ ਜੋ ਛੋਟੇ ਸਨਅਤਕਾਰਾਂ ਲਈ ਸਹਿਣਯੋਗ ਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਪਹਿਲਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਘਟਾਉਣ ਤੇ ਫਿਰ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਦੇ ਬੰਦ ਹੋਣ 'ਚ ਆਪਣਾ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ। ਭਾਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਵਾਰੋ-ਵਾਰੀ ਆਈਆਂ ਸਭਨਾਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਬਿਜਲੀ ਆਮ ਕਰਨ ਦੇ ਦਾਅਵੇ ਤੇ ਵਾਅਦੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਰਹੇ ਹਨ ਪਰ ਹਕੀਕਤ 'ਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਨਅਤ ਤੇ ਖੇਤੀ ਦੋਨੋਂ ਹੀ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਭਾਰੀ ਕਮੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਲੰਮੇ ਲੰਮੇ ਕੱਟਾਂ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ਠੱਪ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਬਿਜਲੀ ਦੀਆਂ ਦਰਾਂ ਬਹੁਤ ਉਚੀਆਂ ਹਨ ਜੋ ਵੱਡੇ ਖਰਚੇ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ। ਪਿਛਲੇ ਦਿਨਾਂ 'ਚ ਸਨਅਤਾਕਾਰਾਂ ਦੀ ਜਥੇਬੰਦੀ ਨੇ ਇਹ ਦਰਾਂ ਨਾ ਘਟਣ ਦੀ ਸੂਰਤ 'ਚ ਸਮੁੱਚਾ ਉਤਪਾਦਨ ਠੱਪ ਕਰਨ ਦੀ ਚਿਤਾਵਨੀ ਵੀ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਘਰੇਲੂ ਸਨਅਤੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਲਈ ਯਕੀਨੀ ਮੰਡੀ ਨਾ ਹੋਣਾ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਵੀ ਸਾਹਮਣਾ ਹੈ। ਲੁਧਿਆਣੇ ਦੇ ਹੌਜ਼ਰੀ ਸਨਅਤਾਕਾਰਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਬਾਹਰੋਂ ਆਰਡਰ ਮਿਲ ਗਿਆ ਤਾਂ ਠੀਕ ਹੈ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਹੱਥ 'ਤੇ ਹੱਥ ਧਰ ਕੇ ਬੈਠਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਜਲੰਧਰ ਦਾ ਚਮੜਾ ਉਦਯੋਗ ਵੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਮਾਨ ਦੇ ਆ ਜਾਣ ਨਾਲ ਮੰਦੇ ਦੇ ਦੌਰ 'ਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਖਬਰਾਂ ਦੀ ਇਸ ਪੂਰੀ ਲੜੀ ਦੌਰਾਨ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਨੂੰ ਦਰਪੇਸ਼ ਇਹਨਾਂ ਸਭਨਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਸਬੰਧ ਅਸਲ 'ਚ ਸਾਡੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਘਰੇਲੂ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਪ੍ਰਤੀ ਅਖਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਰਵੱਈਏ ਨਾਲ ਜੁੜਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿਸੇ ਲਾ-ਪ੍ਰਵਾਹੀ ਦਾ ਮਾਮਲਾ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਪ੍ਰਤੀ ਅਖਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਬਕਾਇਦਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਹੈ। ਮੁਲਕ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚੇ ਅੰਦਰ ਖੇਤੀ ਤੇ ਸਨਅਤ ਦੋ ਮੁੱਖ ਖੇਤਰ ਹਨ ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਲੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਆਰਥਿਕ ਸਰਗਰਮੀ ਘੁੰਮਦੀ ਹੈ। ਵਿਕਸਿਤ ਮੁਲਕਾਂ ਅੰਦਰ ਸਨਅਤ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹੈ ਪਰ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ 'ਚ ਬੇਂਅੰਤ ਮਨੁੱਖਾ ਸ਼ਕਤੀ ਬੇ-ਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ। ਕੰਮ ਕਾਜੀ ਉਮਰ ਦੀ ਆਬਾਦੀ ਦੇ ਅੱਧ ਤੋਂ ਵੀ ਘੱਟ ਹਿੱਸੇ ਨੂੰ ਹੀ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਹਾਸਲ ਹੈ। ਇਹਦੇ 'ਚ ਸਨਅਤੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚਲੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਗੂਣਾ ਹੈ। ਭਾਵੇ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਸਨਅਤ ਮੁਲਕ ਨੂੰ ਸਵੈ-ਨਿਰਭਰ ਵਿਕਾਸ ਦੀਆਂ ਲੀਹਾਂ 'ਤੇ ਤੋਰਨ ਤੋਂ ਅਸਮਰੱਥ ਰਹੀ ਹੈ।


1947 ਦੀ ਸੱਤਾ ਤਬਦੀਲੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਅੰਦਰ ਆਜ਼ਾਦ ਤੇ ਸਵੈ-ਨਿਰਭਰ ਕੌਮੀ ਸਨਅਤ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਲਈ ਕੋਈ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਜੁਟਾਈਆਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਗਈਆਂ। ਨਵੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਸਦਾ ਹੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ ਅਤੇ ਤਕਨੀਕ ਉਪਰ ਨਿਰਭਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਹੈ। ਜੀਹਨੇ ਸਾਡੀ ਸਵੈ-ਨਿਰਭਰ ਕੌਮੀ ਸਨਅਤ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਰੋਕੀ ਰੱਖਿਆ ਹੈ। ਭਾਵ ਇਹ ਕਿ ਰੁਜ਼ਗਾਰ-ਮੁਖੀ, ਔਸਤ ਤਕਨੀਕ 'ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ, ਮੁਲਕ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ 'ਚੋਂ ਉਪਜੀ ਸਨਅਤ ਨੂੰ ਸਦਾ ਹੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਤਕਨੀਕ ਤੇ ਪੂੰਜੀ ਉਪਰ ਨਿਰਭਰ ਸਨਅਤ ਦੇ ਮਾਤਹਿਤ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ।

ਹੁਣ 1991 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਰਥਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦੇ ਲਾਗੂ ਹੋਣ ਦੇ ਦੌਰ 'ਚ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜੀ ਸਾਮਰਾਏ ਦੀ ਹਰ ਖੇਤਰ 'ਚ ਸਰਦਾਰੀ ਨੂੰ ਹੀ ਸਨਅਤੀ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਮਾਰਗ ਮੰਨਿਆ ਹੈ ਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ ਨੂੰ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਖੇਤਰ 'ਚ ਆਉਣ ਦੀਆਂ ਖੁੱਲ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਇਉਂ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਸਨਅਤ ਉਪਰ ਬਹੁਕੌਮੀ ਸਾਮਰਾਜੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਉਪਰ ਨਿਰਭਰ ਵੱਡੇ ਭਾਰਤੀ ਸਰਮਾਏਦਾਰਾਂ ਦਾ ਗਲਬਾ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਰਲ ਕੇ ਤਕਨੀਕੀ ਫੀਸਾਂ, ਰਾਇਲਟੀਆਂ, ਭਾਰੀ ਵਿਆਜ-ਰਕਮਾਂ ਤੇ ਅਥਾਹ ਟੈਕਸ ਛੋਟਾਂ ਤੇ ਰਿਆÂਤੀ ਸ਼ੇਅਰ ਬਟੋਰਨ ਦੀਆਂ ਖੁੱਲ੍ਹਾਂ ਮਾਣ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹ ਕਾਰਪੋਰੇਸ਼ਨਾਂ ਅਤਿ ਮਹਿੰਗੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਤੇ ਪੂੰਜੀ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਸਪਲਾਈ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰੀ ਮੁਨਾਫੇ ਕਮਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬੁਲਾਵਾ ਦੇਣ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਵੱਡੇ ਮੁਨਾਫਿਆਂ ਦੀ ਗਾਰੰਟੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਜਦੋਂ ਐਨਰੋਨ ਕੰਪਨੀ ਨੂੰ ਮਹਾਂਰਾਸ਼ਟਰ ਵਿਚ ਦਭੋਲ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਲਈ ਸੱÎਦਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹਨੂੰ 16 ਫੀਸਦੀ ਮੁਨਾਫੇ ਦੀ ਗਾਰੰਟੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਇਹਨਾਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ 'ਚ ਪ੍ਰਮਾਣੂੰ ਪਲਾਂਟ ਲੱਗਣ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਚੱਲਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਇਹਦੇ 'ਚ ਵਰਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਰਿਐਕਟਰ ਤੇ ਕੱਚਾ ਮਾਲ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਆਉਣਾ ਹੈ ਜੀਹਦੇ ਰਾਹੀਂ ਇਹਨਾਂ ਮੁਲਕਾਂ ਦੀ ਵਾਧੂ ਪਈ ਸਨਅਤੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਨੂੰ ਅਰਬਾਂ-ਖਰਬਾਂ ਦੀ ਕਮਾਈ ਹੋਣੀ ਹੈ।

ਹਾਕਾਂ ਮਾਰ ਕੇ ਸੱਦੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ ਤੇ ਮਹਿੰਗੇ ਭਾਅ ਕਰਜ਼ੇ ਲੈ ਕੇ ਬਾਹਰੋਂ ਮੰਗਵਾਈ ਮਹਿੰਗੀ ਤਕਨੀਕ ਤੇ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਨੇ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਨੂੰ ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਅਜਿਹੀ ਜਿੱਲਣ 'ਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਬੱਜਟ 'ਚ ਅੱਜ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਕਰਜ਼ੇ ਉਪਰਲੇ ਵਿਆਜ ਦੇ ਭੁਗਤਾਣ ਲਈ ਰੱਖਿਆ ਪੈਸਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਕਰਜ਼ਾ ਆਏ ਦਿਨ ਵਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਅਗਾਂਹ ਸੰਸਾਰ ਬੈਂਕ, ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮੁਦਰਾ ਕੋਸ਼ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਵਪਾਰ ਸੰਸਥਾ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮੰਨਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨਵੀਆਂ ਆਰਥਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦੀ ਗਤੀ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ ਕਰਨ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ ਭਾਵ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜੀ ਪੂੰਜੀ ਹੋਰ ਖੁੱਲਾਂ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ।

ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ ਦੀ ਇਹ ਮਹਿੰਗੀ ਤਕਨੀਕ ਅਤੇ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ ਅਜਿਹੀ ਸਨਅਤ ਹੈ ਜੋ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਗੂਣਾ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ਜਦੋਂ ਕਿ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਬੇ-ਸ਼ੁਮਾਰ ਦੌਲਤ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਭੇਜਦੀ ਹੈ। ਇਹਦੀਆਂ ਪੈਦਾਵਾਰੀ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਮੰਡੀ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਉਪਰਲਾ ਅਮੀਰ ਤਬਕਾ ਹੀ ਬਣਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਐਸ਼ੋ ਇਸ਼ਰਤ ਵਾਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੀ ਕਰਦੀ ਹੈ।

ਪਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਵਿਸ਼ਾਲ ਬਹੁਗਿਣਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਿਸਾਨ ਜਨਤਾ ਦੀਆਂ ਨਿਤ ਪ੍ਰਤੀ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਸਾਡੀ ਦੇਸੀ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਹੈ ਜੋ ਇਹਨਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਮਾਰ ਹੰਢਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਔਸਤ ਤਕਨੀਕ ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ ਇਹ ਸਨਅਤ ਰੁਜ਼ਗਾਰਮੁਖੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹਦੇ 'ਚ ਬਹੁਤੇ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਪੂੰਜੀ ਦੀ ਥੁੜ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ 'ਚ ਇਹ ਸਨਅਤ ਬੇਅੰਤ ਮਨੁੱਖਾ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਅਮੀਰੀ ਨੂੰ ਵਰਤੋਂ 'ਚ ਲਿਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਇਹਦੇ 'ਚ ਵਰਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਮਾਨ ਨਾਲ ਪਿੱਛੇ ਛੋਟੀਆਂ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਦੀ ਇਕ ਪੂਰੀ ਲੜੀ ਹਰਕਤ 'ਚ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਅਗਾਂਹ ਹੋਰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸਾਧਨ ਬਣਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਅਜਿਹੀ ਸਨਅਤ ਹੈ ਜੋ ਆਪਣੇ ਮੁਲਕ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਤੇ ਕੁੱਲ ਵਸੀਲਿਆਂ ਭਾਵ ਮਨੁੱਖਾ ਸ਼ਕਤੀ ਤੇ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਨੂੰ ਵਰਤੋਂ 'ਚ ਲਿਆ ਕੇ ਉਸਾਰਦੀ ਹੈ।

ਪਰ ਸਾਡੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਕਰਕੇ ਇਹਦਾ ਦਮ ਘੁੱਟ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਇਹਨਾਂ ਸਨਅਤਾਂ ਦੀ ਇਹ ਕਹਾਣੀ ਸਿਰਫ ਕੇਂਦਰ ਦੀਆਂ ਹੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਨਹੀਂ ਹੈ ਸਗੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਅਕਾਲੀ ਭਾਜਪਾ ਸਰਕਾਰ ਵੀ ਬਰਾਬਰ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਇਹਦੇ ਵੱਲੋਂ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਉਪਰ ਪੂਰੀ ਸਹਿਮਤੀ ਹੈ। ਪਿਛਲੇ 60 ਵਰਿਆਂ 'ਚ ਬਦਲ ਬਦਲ ਕੇ ਆਈਆਂ ਸਭਨਾਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਏਸੇ ਰਾਹ ਤੇ ਹੀ ਅੱਗੇ ਕਦਮ ਵਧਾਏ ਹਨ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਨਅਤ ਦੀ ਅੱਜ ਏਥੇ ਪਹੁੰਚੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਏਸੇ ਪ੍ਰਸੰਗ 'ਚ ਹੀ ਸਮਝਿਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।

ਜੇਕਰ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ ਨੇ ਅਸਲ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਰਾਹ 'ਤੇ ਅੱਗੇ ਵਧਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਨਿਰਭਰਤਾ ਵਾਲੀ ਸਨਅਤੀ ਨੀਤੀ ਤਿਆਗ ਕੇ ਕੌਮੀ ਵਸੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੁਟਾ ਸਕਣ ਵਾਲੀ ਸਵੈਨਿਰਭਰ ਕੌਮੀ ਸਨਅਤੀ ਨੀਤੀ ਅਪਨਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਸਾਨੂੰ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਕਰਜ਼ੇ 'ਚ ਡੁੱਬਣੋਂ ਤਾਂ ਬਚਾਏਗੀ ਹੀ ਸਗੋਂ ਬੇਅਥਾਹ ਮਨੁੱਖਾ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਵੀ ਮਹੁੱਈਆ ਕਰਵਾਏਗੀ। ਇਸ ਲਈ ਸੰਘਣੀ-ਕਿਰਤ ਵਾਲੀਆਂ ਤੇ ਘੱਟ ਪੂੰਜੀ ਵਾਲੀਆਂ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਕੌਮੀ ਸਨਅਤ ਤੇ ਘਰੇਲੂ ਦਸਤਕਾਰੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਘਰੇਲੂ ਉਪਜ ਦੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ਟੈਕਸਾਂ 'ਚ ਭਾਰੀ ਛੋਟ ਦਿੰਦਿਆਂ, ਇਹਨਾਂ ਸਨਅਤਾਂ ਲਈ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦੀ ਸਸਤੇ ਭਾਅ ਤੇ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਸਪਲਾਈ ਨੂੰ ਯਕੀਨੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਸਨਅਤਾਂ ਦੀਆਂ ਦਰਾਮਦਾਂ ਤੇ ਟੈਕਸਾਂ ਦਾ ਭਾਰ ਘਟਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਸਤੀਆਂ ਦਰਾਂ 'ਤੇ ਲੰਮੀ ਮਿਆਦ ਦੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਤਿਆਰ ਮਾਲ ਦੀ ਵਿਕਰੀ ਨੂੰ ਯਕੀਨੀ ਕਰਦਿਆਂ, ਮੰਡੀ 'ਚ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਮਾਨ ਦੀ ਧੜਾਧੜ ਆਮਦ ਨੂੰ ਕੰਟਰੋਲ ਹੇਠ ਲਿਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਲਈ ਰਾਖਵੇਂ ਬੈਂਕ ਕਰਜ਼ਿਆਂ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਵਧਾਉਦਿਆਂ ਇਹਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਰਾਖਵੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਹੋਰ ਵਧਾਈ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਵੱਡੇ ਕਾਰੋਬਾਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਦਿਖਾਵੇ ਦੀਆਂ ਛੋਟੀਆਂ ਇਕਾਈਆਂ ਲਾ ਕੇ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਲਈ ਰਾਖਵੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਹੜੱਪਣ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਚਲਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਤਾਂ ਹੀ ਰੁੱਕ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜੇਕਰ ਸਨਅਤੀ ਨਿਯਮਾਂ ਤੇ ਨੀਤੀਆਂ 'ਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕਰਦਿਆਂ ਅਜਿਹੇ ਰਾਹ ਬੰਦ ਕੀਤੇ ਜਾਣ। ਬਿਜਲੀ ਪੈਦਾਵਾਰ 'ਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਿਆਂ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਕਮੀ ਪੂਰੀ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਇਹਦੇ ਲਈ ਵੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਤਕਨੀਕ 'ਤੇ ਅਧਾਰਿਤ ਪ੍ਰਮਾਣੂ ਪਲਾਂਟ ਜਾਂ ਥਰਮਲ ਪਲਾਂਟ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਥਾਂ ਏਥੋਂ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਜਿਵੇਂ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ, ਪੌਣ ਊਰਜਾ ਤੇ ਹਾਈਡਲ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟਾਂ ਰਾਹੀਂ ਸਸਤੀ ਬਿਜਲੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਪਹਿੱਲਾਂ ਚੱਲਿਆ ਕਰਦੀਆਂ ਸਹਿਕਾਰੀ ਮਿੱਲਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।

ਉਪਰੋਕਤ ਕਦਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਤਬਾਹ ਹੋ ਰਹੀ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਨੂੰ ਬਚਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇ ਹੋਰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਨਅਤ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਇਕ ਵੱਡਾ ਸਰੋਤ ਹੈ। ਬੇ-ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਫਿਰਦੀ ਜਵਾਨੀ ਏਜੰਟਾਂ ਧੱਕੇ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਰੁਲਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਜਾਂ ਫਿਰ ਏਥੇ ਹਕੂਮਤਾਂ ਸਿਰ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਮਰਨ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚ ਰਹੀ ਹੈ। ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਜਾ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਇਹ ਜਵਾਨੀ ਸਾਡੇ ਮੁਲਕ 'ਚ ਏਸੇ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਦੌਲਤ ਦਾ ਅਥਾਹ ਭੰਡਾਰ ਸਿਰਜ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਮੁਲਕ ਦੀ ਕੁੱਲ ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਲੋਕਾਈ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹਦੇ ਲਈ ਮੁਕਤ ਵਪਾਰ ਤੇ ਸੰਸਾਰੀਕਰਨ, ਵਪਾਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਤਿਆਗਣੀਆਂ ਪੈਣੀਆਂ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਰਹਿੰਦਿਆਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਹੀਂ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਪੂਰੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਛੋਟੀ ਸਨਅਤ ਦਮ ਤੋੜ ਦੇਵੇਗੀ। ਹਾਲਤ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਜਨਤਾ ਦੇ ਚੇਤੰਨ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ।

ਪਾਵੇਲ ਕੁੱਸਾ
(ਪੰਜਾਬੀ ਟ੍ਰਿਬਿਊਨ 'ਚੋਂ ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ)
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