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Wednesday, January 13, 2010

MIGRANT WORKERS PROTEST AT LUDHIANA

In the Ist week of December the migrant workers of Ludhiana came out on the roads to protest against the brutalities being inflicted upon them by a gang up of factory owners, police,Goondas and the Administration. It was a spontaneous protest action. A section of the ruling classes has tried to portray these events as a struggle between Punjabis & migrants. We are publishing here a leaflet issued by some trade unions & mass organisations to put these events in true perspective:

मालिक-पुलिस-प्रशासन-गु्ण्डा गठबन्धन मुर्दाबाद ! मज़दूर एकता जिन्दाबाद!
लूट-दमन-अन्याय के खिलाफ लुधियाना के
मज़दूरों के जबरदस्त संघर्ष को सलाम !

मज़दूरों को बाँटने की हुक्मरानों की चालों को नाकामयाब करो !
'पंजाबी-प्रवासी' के झगड़े छोडो, सही लडाई से नाता जोडो !


मेहनतकश साथीयो,
ढण्डारी कलां (लुधियाना) में एक बार फिर मज़दूरों के स्वयं:स्फूर्त रोषपूर्ण विरोध प्रदर्शन ने मज़दूर वर्ग की नर्क से भी बदतर परिस्थियों को जगजाहिर कर दिया है । साथ ही इस संघर्ष ने मज़दुरों की जालिमों के खिलाफ आरपार की लडाई लड़ सकने की ताकत का नज़ारा पेश किया है । बिना किसी तैयारी के, बिना किसी अगवाई के और बिना किसी संगठन के ही मज़दूरों ने पुलिस को लोहे के चने चबाने पर मज़बूर कर दिया । पुलिस, प्रशासन, मालिकों, पूंजीवादी राजनितिक पार्टियों और उन के भाड़े के गुण्डों के नापाक मज़दूर विरोधी गठबंधन द्वारा मेहनतकशों को 'भइओं' और 'पंजाबियों' के नाम पर बाँट कर भले ही उनके संघर्ष कि फिलहाल दबा दिया गया हो लेकिन यह भी सच है कि आने वाले समय में मज़दूर क्षेत्रीय भेदभावों को मिटाकर संगठित रूप में और भी जबरदसत ताकत से उठेंगे और इस नापाक मज़दूर विरोधी गठबन्धन को सबक सिखाएँगे ।
3 और 4 दिसम्बर को हुए इन जबरदस्त रोष-प्रदर्शनों और इनके तत्कालीक कारण सभी जानते ही हैं। लेकिन, हमारा मानना है कि मज़दूरों का यह जबरदस्त जनउभार केवल बाईकर्ज गैंग के आतंक, इस पर पुलिस-प्रशासन द्वारा मज़दूरों की सुरक्षा के लिए कोई कदम ना उठाने, पुलिस द्वारा भयंकर निर्दयता की हद तक गिर कर शिकायकर्तायों को ही जलील करने के खिलाफ ही नहीं था बल्कि इसके पीछे मालिकों, पुलिस, प्रशासन, सरकार द्वारा मज़दूरों के साथ लम्बे समय से पल-पल हो रहा लूट, शोषण, अपमान, अन्याय और दमन का सिलसिला था। मज़दूरों के दिलों में लम्बे समय से जमा हो रहे गुस्से के बारूद को बाइकर्ज गैंग के आतंक और पुलिस की बेरुखी ने तो सिर्फ आग ही मुहैया करवाई है।
लुधियाना के गरीब मज़दूर भयंकर लूट दमन का शिकार हैं। मज़दूर दमघोटू और खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं और गंदी बस्तियों में रहते हैं। कारखानों के मालिकों का जंगलराज है। मालिकों द्वारा कारखानों में मज़दूरों के कोई भी हक-कानून लागू नहीं हो रहे हैं। 12-14 घंटे के काम के बाद भी न तो वाजिब वेतन ही मिलता है, और जब देखा तब थप्पड़ मारकर, जलील करकर काम से निकाल दिया जाता है। कारखाने के बाहर तो क्या मज़दूरों की तो कारखाने में भी कोई सुरक्षा नहीं है। खूँखार मालिकों के आदमखोर कारखानों में पता नहीं कितने ही मज़दूरों को काम करते वक्त जान गवाँनी पड़ चुकी है, अपने अंग कटवाने पड़ चुके हैं।मज़दूर बस्तियों और गाँवों को सारी सुविधाओं से वन्चित रखा गया है। गरीबों के हिस्से की सारी सुविधायें सराभा नगर, मॉडल टाउन जैसे इलाकों में रहने वाली अमीर अबादी को पहुँचाई जा रही हैं। सरकार, प्रशासन, पुलिस, श्रम विभाग को कोई शर्म नहीं है। वे खुले रूप में पूंजीपतियों के रक्षकों और दलालों की भूमिका निभा रहे हैं। कमरतोड़ महँगाई ने मज़दूरों का जीना मुश्किल कर रखा है लेकिन सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही। हम पूछते हैं जब चारों ओर से मज़दूर अन्याय ही अन्याय सह रहे हों, जब उनकी सुनवाई करने वाला कोई न हो तो मज़दूर अपना हक लेने के लिए सड़कों पर क्यों न उतरें? वे क्यों शांति बनाय रखें? वे क्यों न उनके जीवन की शांति छीन लेने वाले लुटेरे जालिमों के खिलाफ आग-बबूला बन कर उठें?
साथियो, मज़दूर चाहे पंजाबी पृष्ठभूमि के हों चाहे किसी अन्य राजय की पृष्ठभूमि के - सभी बराबर रूप में लूट-शोषण का शिकार हैं। लुधियाना के पूंजीपतियों, पुलिस, प्रशासन द्वारा उनकी लूट और दमन करते वक्त यह नहीं देखा जाता कि कौन पंजाबी है और कौन प्रवासी। वे सभी को बराबर लूटते और पीटते हैं। सभी मज़दूरों की कहीं सुनवाई नहीं है। लेकिन मज़दूरों के बीच में पंजाब-यू॰पी॰-बिहार के नाम पर बड़े पैमाने पर फैली क्षेत्रीय भावनांए हमारी एकता में बहुत बड़ी रुकावट हैं। इसी कारण हम मालिकों-सरकार-पुलिस-प्रशासन-गुण्डा गठबन्धन से बार बार हार जाते हैं। 4 दिसम्बर को भी इस गठबन्धन ने मज़दूरों के विरोध-प्रदर्शन के दमन के लिए सधारण पंजाबी मेहनतकश आबादी को उनके ही मेहनतकश भाई-बहनों के खिलाफ लड़वाने की चाल चली। पुलिस और भाड़े के गुण्डों द्वारा पंजाबियों को यह झूठ बोलकर भड़काया गया कि 'भइए' 'पंजाबियों' पर हमला करने जा रहे हैं। असल में मज़दूर तो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे। हाँ, प्रदर्शनकारियों के बीच में यू॰पी॰-बिहार की क्षेत्रीय राजनीति करने वाले मज़दूर विरोधी तत्व भी थे जिन्होंने तोड़-फोड़ और अगजनी की कार्रवाईयों को अंजाम दिया। भीतरघातियों की इन कार्रवाईयों ने पुलिस को यह बहाना दे दिया कि वह मज़दूरों का बलपूर्वक दमन करे। इन कार्रवाईयों ने पुलिस और गुण्डों को एक मुद्दा भी दे दिया जिससे वे सधारण पंजाबी मेहनतकशों को भड़का सकें। क्षेत्रीय राजनीति चाहे पंजाब के नाम पर हो या यू॰पी॰-बिहार के नाम पर हमेशा मज़दूर एकता को बाँटने के लक्षय से लुटेरे हुक्मरानों की चाल होती है। 5 दिसम्बर को लुधियाना में ही दो धार्मिक गुटों का हुआ टकराव भी हुक्मरानों की लोगों को बाँटने की चालों को दिखाता है।सारे मज़दूरों को दुश्मन की इन चालों को समझना होगा। क्षेत्रीय राजनीति करने वालों को निकाल बाहर करना होगा और मज़दूर वर्गीय आधार पर एकजुट होकर आरपार की लड़ाई की तैयारी करनी होगी।
हम पहले भी इस बात पर बार बार जोर देते आए हैं कि सरकार से हमें कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए।पंजाब सरकार के मज़दूर विरोधी रुख से हम तो अच्छी तरह परिचित हैं। उसके पास मज़दूरों के लिए लाठी-गोली के सिवा कुछ नहीं। पुलिस और गुण्डों द्वारा मज़दूरों की मारकाट के दौरान मरने और जख्मी होने वाले मज़दूरों के लिए कोई मुआवज़ा घोषित नहीं किया गया। एक भी पुलिस अधकारी के खिलाफ दिखावे के अलावा सख्त कार्रवाई का कोई कदम नहीं उठाया गया। बिहार सरकार का ड्रामा भी हम देख ही चुके हैं। भोले भाले बिहारी मज़दूरों को यह भम्र था कि शायद बिहार सरकार की भेजी जाँच-टीम उनकले हक में कुछ कहेगी और बिहार सरकार केन्द्र और पंजाब सरकारों पर उनके हक में दबाव बनाएगी। लेकिन मज़दूरों के हक में कुछ करना तो दूर इस जांच टीम ने तो मज़दूरों के हक में एक शब्द भी नहीं बोला। अखबारों में सभी ने इस जांच टीम के ब्यान पढ़े हैं और यह टीम मालिकों और पुलिस-प्रशासन की वाह-वाह करके बिहार लौट चुकी है।
मालिकों और पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों के भाड़े के गुण्डों से मिलकर जिस प्रकार मज़दूरों पर डण्डों, तलवारों, बन्दूकों से हमला बोला गया, उन्हें मारा काटा गया, मज़दूर औरतों के कपड़े फाड़े गये और बलातकार हुए, उनके घरों को आग लगाई गई और तोड़फोड की गई, जुल्म का जो नंगा नाच किया गया उससे यह जगजाहिर हो चुका है कि पुलिस मज़दूरों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि मालिकों-पूंजीपतियों और गुण्डों की रक्षा के लिए है। मज़दूरों को अपनी रक्षा के खुद इंतजाम करने होंगे। 6 दिसम्बर को लक्ष्मी नगर के वासियों द्वारा गुण्डों की पिटाई की घटना एक अच्छी उदाहरण है। महत्वपूर्ण बात यह है कि गुण्डों की एकजुट होकर पिटाई करने वाले लोगों में पंजाब और अन्य राज्यों, दोनों पृष्ठभूमि के लोग शामिल थे। इस घटना का एक ही सबक है- पुलिस से उम्मीद न करते हुए प्रवासी-पंजाबी के झगड़ों में न पड़ कर आपसी एकता बनाकर अपनी रक्षा खुद की जाए। हमने लुधियाना के मज़दूरों की ओर से पंजाब, उतर प्रदेश और बिहार प्रांतों के मुख्य मंत्रियों व श्रम मंत्रियों को पत्र भेजकर यह मांगें उठाई हैं कि:

1. लुधियाना की हालत बिगाड़ने वाले दोषी गुण्डा गैंग को पकड़ने के लिए पुख्ता कदम उठाए जाएँ। पुलिस की मिलीभगत के बिना इस गैंग की कार्रवाईयां असम्व हैं। सो, मिलीभगत करने वाले पुलिस अधकारीयों का पता लगा कर उन्हें कड़ी सजा दी जाए।
2. निर्दोष मज़दूरों पर बनाए गए झूठे पुलिस केस रद्द किए जाएं व उन्हें रिहा किया जाए। मारे गए और घायल हुए मज़दूरों को उचित मुआवजा दिया जाए। मज़दूरों के जलाए और तोड़े-फोड़े गए क्वाटरों, घरों, दुकानों व समान के नुकसान के लिए उचित मुआवजा दिया जाए। लोगों के जान-माल व समान की रक्षा की गरण्टी की जाए।
3. कारखानों में मज़दूरों के कानूनी हक अधिकार लागू हों। सरकार और प्रशासन मज़दूरों की रिहायश, अनाज, सेहत, शिक्षा आदि बुनियादी शहरी सुविधाओं की गरण्टी करे।
4. कमरतोड़ महँगाई पर फौरी तौर पर काबू पाया जाए।

मज़दूर साथीयो, खुद को कमज़ोर न समझो। अपने अन्दर छुपी ताकत को पहचानो। 4 दिसम्बर को मज़दूरों ने जिस शानदार ताकत का नज़ारा पेश किया उसने यह तो सिद् कर ही दिया है कि अगर मज़दूर इकजुट होकर आगे आएँ तो वो किसी भी ताकत से टक्कर ले सकते हैं। भले ही हमें फिलहाल दबा दिया गया हो लेकिन एकबार तो मज़दूरों ने पुलिस को भी दाँतों तले उंगलियां दबाने को मज़बूर कर दिया था। अन्दाजा लगाइए अगर हमारे पास एक सही संगठन और नेतृत्व हो, हम लम्बी तैयारी के साथ योजनाबद् रूप में संघर्ष करें तो हम किस ताकत को नहीं झुका सकते? अंत में हम लुधियाना के संघर्षशील मज़दूरों की ओर से दमनकारियों के सामने यह ऐलान करते हैं :
हाँ सच है यही सच है, हार कर कुछ पीछे हटे हैं हम।
संघर्ष में लेकिन डटे हैं, हाँ डटे हैं हम।
सभी मेहनतकशों को इंकलाबी सलाम के साथः

* मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज यूनियन-रजि,

( हरजिन्दर सिंह -94643-60755)

* मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज यूनियन-रजि,

(विजय नारायण-94174-72095)

* लाल झण्डा पंजाब निर्माण मज़दूर यूनियन

(हरदेव सनेत-98141-51556)

* कारखाना मज़दूर यूनियन (राजविन्दर-98886-55663)
* लाल झण्डा टैक्सटाईल एण्ड हौजरी मज़दूर यूनियन

(का. शयाम नारायन यादव 98887-27960)

* हौजरी वर्करज यूनियन (रमेश कुमार)
* पंजाब निर्माण वाटर सप्लाई सीवरेज बोर्ड मज़दूर यूनियन, लुधिः

(का. मोहन लाल)

* लोक ऐकता संगठन (गल्लर चोहान)

प्रकाशन दिनांक : 14 दिसम्बर 2009

1 comment:

  1. at least there are some good signs in punjab................
    the peasants need to organise themselves into a reckoning force, to kneel these imperialist worms........good....

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