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Wednesday, November 30, 2011

बातचीत की संभावनाओं का एन्काउंटर है ये

बातचीत की संभावनाओं का एन्काउंटर है ये
written by amalendu on November 28th, 2011













सरकारी दावा इसे एन्काउंटर कहता है. सच मगर कुछ और कहता है. सच यह है कि देश में शायद ही कोई व्यक्ति एनकाउंटर में मारा जाता है. एन्काउंटर कोल्ड ब्लडड मर्डर का सरकारी वर्जन है. फिर, किशनजी जैसे माओवादी नेता के बारे में तो यह संदेह और भी गहरा जाता है जब परिजन और समर्थक सच की तस्वीरें सामने रख देते हैं.

 पुलिस का दावा कहता है कि माओवादी नेता कोटेश्वर राव यानी किशनजी गुरुवार को पश्चिम बंगाल में बॉरीशाल के जंगल में एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गए. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि एक गोली 500 मीटर की दूरी से लगी है. शरीर में छह गोलियां लगी हैं जो कि सभी महत्वपूर्ण हिस्सों में लगी हैं. जबड़ा, सिर, सीना गोलियों से छलनी कर दिया गया है.

पर परिवार के सदस्य, उनकी मां और भतीजी से सीधे आरोप लगाए हैं कि यह फ़र्जी मुठभेड़ का मामला है. परिजन और क्रांतिकारी कवि वरवरा राव इसे हत्या करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि किशनजी को पुलिस ने पकड़कर, यातनाएं देकर मारा है. यह मामला पुलिस हिरासत में हत्या का है, न कि एन्काउंटर का. पोस्टमार्टम के दौरान परिजनों ने कुछ तस्वीरें भी खींची हैं जो साफ साफ दर्शाती हैं कि शरीर पर कितने और कैसे ज़ख्म हैं. यह प्रताड़ना और बर्बरता पूर्वक हत्या की चुगली करते हैं.

इस कथित एन्काउंटर को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं जिनका जवाब न तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के पास है और न ही मुठभेड़ में शामिल रहे सुरक्षाकर्मियों के पास.

मसलन, एकाउंटर में ऐसा क्यों होता है कि गोलियां एकदम सटीक निशानों पर पहुंचती है. जिससे बचने की कोई गुंजाइश न रहे. किशन जी को जीवित पकड़ना सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती. क्यों नहीं गोलियां ऐसी जगहों पर लगीं कि उन्हें जीवित किंतु असहाय स्थिति में पकड़ा जा सकता.

500 मीटर की दूरी से लगी गोली किशन जी के शरीर को छूने वाली पहली गोली थी, इस बात की क्या गारंटी है. क्या यह संभव नहीं है कि हत्या के दौरान गोलियां मारने के सिलसिले में एक गोली दूर से मारी गई हो.
गोलियां जिस तरह से शरीर को भेद कर जाती दिखाई दे रही हैं, वो पास से गोली मारे जाने का अंदेशा जाहिर करती हैं. दूर से लगी राइफल की गोली जब शरीर को चीरकर बाहर निकलती है तो मांस का एक बड़ा हिस्सा अपने साथ खींच ले जाती है. तस्वीरों से दिखता है कि गोली पास से मारी गई हैं इसलिए ज़ख्म गहरे हैं पर फैले हुए नहीं.

शरीर पर जगह जगह चोट के निशान हैं. इससे यातनाओं का संदेह पुख्ता होता है. हालांकि सरकार बार-बार मीडिया में ऐसी ख़बरें प्रसारित करवा रही है कि किशनजी के शरीर पर चोट के अतिरिक्त निशान कतई नहीं हैं. कुछ मुख्यधारा के समाचारपत्रों ने इसी बड़ी प्रमुखता से छापा भी है.

एन्काउंटर को लेकर जो संदेह लोगों के मन में हैं, उसका जवाब दे पाने में सरकार असमर्थ दिखाई दे रही है. चिंताजनक यह है कि इससे सरकार को हासिल कम, नुकसान ज़्यादा होगा.

माओवादी नेता चेरुकुरी आज़ाद के एन्काउंटर के मामले को ही याद कीजिए. किशनजी की तरह उनसे भी बातचीत की कोशिशें की जा रही थीं. जब बात बनती नज़र आ रही थी, तभी उनका एन्काउंटर हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है कि सरकार जिससे बात करना चाहती है, वो पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है.

आज़ाद के मामले में तो उनकी मां से हत्या के कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर अपने बेटे यानी आज़ाद के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने का अंदेशा जाहिर किया था. उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि पुलिस उनके बेटे को फर्जी मुठभेड़ में मारने की कोशिश कर रही है. और वही हुआ, आज़ाद और पत्रकार हेमचंद्र की हत्या कर दी गई और उसे मुठभेड़ का नाम दे दिया गया.

संसाधनों की अंधी लूट में लगी सरकार रोज़ कितने ही लोगों के उजड़ने, पलायन करने, पुलिसिया दमन, उनके भूखे मरने और आत्महत्याएं करने का कारण बन रही है. इससे मुंह छिपाने के लिए नक्सलवाद को देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती की प्रेस विज्ञप्ति आए दिन केंद्र सरकार जारी करती रहती है. पर नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार की जो लोकतांत्रिक और जायज कोशिशें होनी चाहिए, उनका गला खुद सरकार घोट रही है.

आज़ाद के बाद अब किशनजी के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने की घटना को सरका भले ही एक बड़ी उपलब्धि बताए पर इससे बातचीत के लिए आगे के रास्तों को सरकार ने खुद ही बंद कर लिया है. प्रतिक्रिया में माओवादियों की ओर से होने वाली हिंसा और सरकार की उनसे निपटने के नाम पर की जाने वाली प्रतिहिंसा से सबसे ज़्यादा आम आदमी प्रभावित होगा.

अफसोस, कि आम आदमी की सुरक्षा के नाम पर हद तक अलोकतांत्रिक हो चली सरकार अपने हाथ आम लोगों के खून से रंगती जा रही है. ताज़ा घटना सुलह और बातचीत की संभावना का एन्काउंटर करने जैसा है.
साभार- प्रतिरोध.कॉम

‎'ਝੂਠੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਦਾ ਵਰਤਾਰਾ ਅਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਹੱਕਾਂ ਦਾ ਸੁਆਲ' ਵਿਸ਼ੇ 'ਤੇ

 ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ ਵੱਲੋਂ ਸੂਬਾਈ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਅਤੇ ਮਾਰਚ: 10 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ

ਜਲੰਧਰ: 29 ਨਵੰਬਰ ਸੰਸਾਰ ਭਰ 'ਚ ਮਨਾਏ ਜਾਂਦੇ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿਵਸ ਮੌਕੇ 10 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ ਦਿਨੇ 11 ਵਜੇ ਨਹਿਰੂ ਪਾਰਕ ਮੋਗਾ ਵਿਖੇ ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ ਵਿਰੋਧੀ ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ (ਪੰਜਾਬ) ਵੱਲੋਂ ''ਝੂਠੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਦਾ ਵਰਤਾਰਾ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰ'' ਵਿਸ਼ੇ ਉਪਰ ਸੂਬਾਈ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਅਤੇ ਰੋਸ ਮਾਰਚ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ।

ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਨਾਟਕਕਾਰ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰਸ਼ਰਨ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਅਤੇ ਕਨਵੀਨਰਸ਼ਿਪ ਹੇਠ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ 2 ਵਰ੍ਹੇ ਪਹਿਲਾਂ ਗਠਿਤ ਹੋਏ 'ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ ਵਿਰੋਧੀ ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ (ਪੰਜਾਬ)' ਦੇ ਕੋ-ਕਨਵੀਨਰ ਡਾ. ਪਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਪ੍ਰੋ.ਏ.ਕੇ. ਮਲੇਰੀ, ਯਸ਼ਪਾਲ ਨੇ ਅੱਜ ਇਥੇ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਲਿਖਤੀ ਪ੍ਰੈਸ ਬਿਆਨ 'ਚ ਇਹ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੰਦਿਆਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ. (ਮਾਓਵਾਦੀ) ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਚੋਟੀ ਦੇ ਆਗੂ ਕਾਮਰੇਡ ਕੋਟੇਸ਼ਵਰ ਰਾਓ ਕਿਸ਼ਨਜੀ ਨੂੰ ਜਿਵੇਂ ਝੂਠੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀ ਥੋਥੀ ਕਹਾਣੀ ਘੜਕੇ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਉਡਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ਇਹ ਫਾਸ਼ੀ ਵਰਤਾਰਾ ਸਾਬਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਵੱਡੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਹੋਣ ਦਾ ਦੰਭ ਕਰਦੀ ਭਾਰਤੀ ਸਟੇਟ ਅਸਲ 'ਚ ਲੋਕ ਹੱਕਾਂ ਅਤੇ ਲੋਕ-ਮੁਕਤੀ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅੱਗੇ ਖੜ੍ਹਨ ਦਾ ਦਮ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ। ਇਸ ਲਈ ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ, ਨਿੱਜੀ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਸੈਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਭਾੜੇ ਦੇ ਸੂਹੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਕਰਾਂਤੀਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਸਿਆਸੀ ਕਤਲ ਕਰਨ ਦੇ ਗਿਣੇ ਮਿਥੇ ਏਜੰਡੇ ਨੂੰ ਸਰ-ਅੰਜਾਮ ਦੇਣ ਦਾ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨ 'ਤੇ ਉਤਰ ਆਈ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਤੁਰੰਤ ਪੈਰ ਇਸ ਖਿਲਾਫ਼ ਬੁੱਧੀਜੀਵੀਆਂ, ਜਮਹੂਰੀਅਤਪਸੰਦ ਇਨਕਲਾਬੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ, ਲੇਖਕਾਂ, ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ, ਤਰਕਸ਼ੀਲਾਂ, ਇਨਸਾਫ਼ਪਸੰਦ ਹਲਕਿਆਂ ਨੇ ਜਨਤਕ ਪ੍ਰਤੀਰੋਧ ਦੀ ਲਹਿਰ ਨਾ ਖੜ੍ਹੀ ਕੀਤੀ ਤਾਂ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਵੀ ਮੁੜ ਝੂਠੇ ਪੁਲਸ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਦਾ ਮਨਹੂਸ ਦੌਰ ਫੇਰ ਝੱਲਣਾ ਪਵੇਗਾ। ਜਿਸ ਦੀਆਂ ਘਿਨੌਣੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ, ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜਾਗਰੂਕ ਅਤੇ ਮਾਨਵੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੇ ਝੰਡਾਬਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਚੇਤਿਆਂ 'ਚ ਸਦਾ ਖਟਕਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ।

ਕੋ-ਕਨਵੀਨਰਾਂ ਨੇ 10 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ 'ਝੂਠੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਦੇ ਵਰਤਾਰੇ ਅਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਹੱਕਾਂ ਦਾ ਸੁਆਲ' ਮੁੱਦੇ ਉਪਰ ਗੰਭੀਰ ਵਿਚਾਰਾਂ ਕਰਨ ਅਤੇ ਰੋਸ ਮਾਰਚ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਦਰਜ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮੂਹ ਬੁੱਧੀਮਾਨ ਤਬਕਿਆਂ ਅਤੇ ਲੋਕ ਹੱਕਾਂ ਲਈ ਜੂਝ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮੀਆਂ ਨੂੰ ਵੱਧ ਚੜ੍ਹਕੇ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ 'ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦੀ ਪੁਰਜ਼ੋਰ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ ਹੈ।

ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਝੂਠੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਦੇ ਵਰਤਾਰੇ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਝਾਰਖੰਡ ਦੇ ਉੱਘੇ ਲੋਕ ਕਵੀ ਜਤਿਨ ਮਰਾਂਡੀ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਫਾਂਸੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਰੱਦ ਕਰਾਉਣ ਇਰੋਮਾ ਸ਼ਰਮੀਲਾ ਵੱਲੋਂ ਬੀਤੇ 11 ਵਰ੍ਹੇ ਤੋਂ ਭੁੱਖ ਹੜਤਾਲ ਕਰਕੇ 'ਸੁਰੱਖਿਆ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਦਿਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ' ਰੱਦ ਕਰਨ ਦੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਨ ਅਤੇ 10 ਦਸੰਬਰ ਦੇ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮਾਨਵੀ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿਵਸ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਉਭਾਰਨ ਉਪਰ ਵੀ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਆਪਣੀ ਵਿਚਾਰ-ਚਰਚਾ ਨੂੰ ਕੇਂਦਰਤ ਕਰੇਗੀ।

ਜਾਰੀ ਕਰਤਾ:
ਡਾ. ਪਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ,ਕੋ-ਕਨਵੀਨਰ
ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ ਵਿਰੋਧੀ ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ (ਪੰਜਾਬ)
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
ਸੰਪਰਕ: 95010 25030

Sunday, November 27, 2011

PAYING HOMAGE TO M.KOTESHWARA RAO @ KISHANJI

HOMAGE TO A GREAT SON OF THE PEOPLE - KISHANJI

 A deserted street in Peddapalli, the hometown of slain Maoist leader Kishenji on Saturday. Kishenji was cremated in Peddapalli on Sunday. Photo : The Hindu

Poet & Civil Liberties leader Varavara Rao addresses activists in Kolkata. 
The dead body of Kishanji being handed over to his family members & poet Varvara Rao
An ambulance carrying the body of Kishenji's body being sent to Peddpally village in Karimnagar district on Saturday. PHOTO: G RAMAKRISHNA
Balladeer Gaddar pays tributes to slain Maoist leader Kishenji in Peddapalli, Karimnagar district on Sunday. Photo: Thakur Ajay Pal Singh
Police & para-military forces Jangal Mahal area after the alleged encounter killing of Kishanji
Kishanji's mother  Madhuramma in grief after her son Kishenji's death, in Peddapalli town of Karimnagar district on Friday. 

Mallojula Koteswara Rao alias Kishenji, the senior Maoist leader was cremated at his native Peddapalli, some 35 km from Karimnagar. His elder brother Anjaneyulu lit the funeral pyre. Abhay, the spokesperson of the Maoist Central Committee released a letter which was read out by the revolutionary writer Varavara Rao, in which it was alleged that Kishenji was murdered in a fake encounter. The Communist Party of India (Maoist) called for a two-day Bharat bandh on December 4 and 5, 2011 in protest of the encounter.

Earlier many villagers, political leaders, including ballad Singer Gaddar, Civil Liberties Committee leaders Mr. Varavara Rao, Kalyan Rao, Telangana Rashtra Samithi MLAs Etela Rajender, Koppula Eeshwar, MLC N. Laxman Rao were among those participated in the funeral procession.
Kishenji’s body was brought to Peddapalli from Kolkata in the wee hours of Sunday and kept at his residence after the local police denied permission to his family members to keep the body for public viewing at the Junior College ground. While large number of activists from different peoples' organizations assembled at the airport to receive the body, the police deployed several teams at the arrival lounge to prevent them.

The moment poet Vara Vara Rao and Padma Kumari of Martyrs United Forum, who came along with the body from Kolkata, entered the arrival lounge; the police rounded up them and seized their mobile phones. They did not allow anyone, including the media persons, to come even close to the arrival lounge. Balladeer Gaddar entered into an argument with the policemen as he was not allowed to go inside. “If some Congress leader dies, his body is taken to Gandhi Bhavan. We want to take the body to Tank Bund to pay homage. How can you deny this?” he said.
Earlier Varavara Rao on Sunday dubbed Maoist leader Kishenji’s encounter as a “political murder”, saying, “Kishenji’s encounter is part of operation green hunt and the government should stop combing in the name of the operation. His (Kishenji’s) encounter was a political murder,”
Mr. Rao's suspicion was that Kishenji had been taken into police custody on Wednesday itself, tortured and later killed in a fake encounter. First media reports suggested that Kishenji and his comrades had been encircled by a thousand paramilitary forces, but it was announced that he had managed to escape.
“If he had managed to escape to Jharkhand, how did the West Bengal government kill him? How did the joint security forces kill him in Paschim Medinipur district,” Mr. Rao asked.

He also alleged that signs of torture were visible on Kishenji's body and said that he suspected that Kishenji was “severely tortured” in police custody.
In a press statement issued by the Co-ordination of Democratic Rights Organizations (CDRO), representing 27 Democratic Rights Organizations, it has been stated that:

“We strongly condemn the killing of Mallojula Koteswara Rao alias Kishenji, politbureau member of the CPI(Maoist) at Burisole forest near Jhargram in West Bengal on 24th November 2011. It is being claimed by the West Bengal police and the CRPF authorities that Kishenji has been killed in a “30 minute gunbattle” near Khushboni village in Burisole forests of West Midnapur district, while some other members of the Maoist squad escaped. However, this version of the police is riddled with contradictions, and also accounts from villagers in nearby villages strongly suggest that Kishenji has been killed in a fake encounter. According to local reports, Kishenji was captured during an operation by the joint forces in the area on 23rd November, and killed in cold blood on 24th November during a staged gun battle.”

B D Sharma (Former National Commissioner for Scheduled Castes and Tribes) and G N Saibaba (Deputy Secretary, Revolutionary Democratic Front), said in a Press statement:

“We strongly condemn the cold-blooded murder and planned assassination of Kishanji alias Mallojula Koteswara Rao, Politburo Member of CPI (Maoist) in Burishol forest area, Paschim Midnapore District, Jangalmahal, West Bengal on 24 November 2011. At the time of this murder Kishanji was dealing with the process of peace talks through the interlocutors appointed by the Chief Minister of West Bengal Ms. Mamata Banerjee. Such a heinous crime should be condemned by all justice loving people.” 

An other human rights organization MASUM, CPI leader Gurudas Dasgupta & Swami Agnivesh has also condemned the killing of Kishenji in a fake encounter and demanded a proper inquiry. 

C. P. I. (Maoist) Polit Bureau member Koteshwara Rao, more famous as Kishenji, was leading the peoples struggle in the forests of Jangal Mahal region, but was equally adept as the spokesperson for the cause. He will perhaps be best remembered since the occasion he released Atindranath Dutta, officer in charge of the Sankrail police station, who was abducted in an audacious attack in October 2009, in exchange for bail for 14 tribal women.
Kishenji, born Oct 10, 1953, in a village in Andhra Pradesh, was among the founders of the People's War Group there in 1980. It was in 1974 that he joined the Radical Students Union. Four years later, he went into hiding. His organizational skills and devotion to the peoples cause impressed People's War Group (PWG) founder Kondapalli Seetaramayya and he was chosen to be PWG state secretary.  He was a prime target of joint-security operations against Maoists.

Gloom descended on his home town. Since morning on Friday, hordes of supporters and relatives have arrived at his ancestral house in the narrow Brahmanaveedhi, a small street, to console the bereaved family members, including mother Madhuramma and elder brother Anjaneyulu.
Madhuramma, in her 80s, was in a state of shock over the death of her son ‘Koti.' Initially, family members decided against breaking the news to her. But when people and journalists started coming in droves, they had no alternative except informing her. She collapsed on hearing the news but controlled her emotions. “I thought you would wipe away the tears from the eyes of several mothers by staying away from us. But this is a big shock to me, as I have not seen him for the last 33 years after he left home,” said Madhuramma. The family had not seen him for over three decades.
Madhuramma’s. younger son, Mallujola Venugopal Rao, has also gone underground for the past three decades. He is now a Central Committee member of the CPI (Maoist).

N.K.JEET
Advisor, Lok Morcha Punjab

Wednesday, November 16, 2011

ਹਿੰਦ ਵਾਸੀਓ ਰੱਖਣਾ ਯਾਦ ਸਾਨੂੰ,

ਹਿੰਦ ਵਾਸੀਓ ਰੱਖਣਾ ਯਾਦ ਸਾਨੂੰ,
ਕਿਤੇ ਦਿਲਾਂ'ਚੋਂ ਨਾ ਭੁਲਾ ਜਾਣਾ ‌‌‌॥

ਖਾਤਰ ਵਤਨ ਦੀ ਲੱਗੇ ਹਾਂ ਚੜਨ ਫਾਂਸੀ,
ਸਾਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਾ ਘਬਰਾ ਜਾਣਾ ॥

ਸਾਡੀ ਮੌਤ ਨੇ ਵਤਨ ਦੇ ਵਾਸੀਆਂ ਦੇ,
ਦਿਲੀਂ ਵਤਨ ਦਾ ਇਸ਼ਕ ਜਗਾ ਜਾਣਾ ॥

ਹਿੰਦ ਵਾਸੀਓ ਚਮਕਣਾ ਚੰਦ ਵਾਂਗੂ,
ਕਿਤੇ ਬੱਦਲਾਂ ਹੇਠ ਨਾ ਆ ਜਾਣਾ ॥

ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਨਾਲ ਧਰੋ ਯਾਰੋ,
ਦਾਗ਼ ਕੋਮ ਦੇ ਮੱਥੇ ਨਾ ਲਾ ਜਾਣਾ ॥

ਮੂਲਾ ਸਿੰਘ ਕਿਰਪਾਲ ਨਵਾਬ ਵਾਂਗੂ,
ਅਮਰ ਸਿੰਘ ਨਾ ਕਿਸੇ ਕਹਾ ਜਾਣਾ ॥

ਜੇਲਾਂ ਹੋਣ ਕਾਲਜ ਵਤਨ ਸੇਵਕਾਂ ਦੇ,
ਦਾਖਲ ਹੋ ਕਿ ਡਿਗਰੀਆਂ ਪਾ ਜਾਣਾ॥

ਹੁੰਦੇ ਫੇਲ ਬਹੁਤੇ ਅਤੇ ਪਾਸ ਥੋੜੇ,
ਵਤਨ ਵਾਸੀਓ ਦਿਲ ਨਾ ਢਾਹ ਜਾਣਾ ॥

ਪਿਆਰੇ ਵੀਰਨੋ ਚੱਲੇ ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਜਿੱਥੇ,
ਉਸੇ ਰਾਸਤੇ ਤੁਸੀ ਵੀ ਆ ਜਾਣਾ ॥

ਹਿੰਦ ਵਾਸੀਓ ਰੱਖਣਾ ਯਾਦ ਸਾਨੂੰ,
ਕਿਤੇ ਦਿਲਾਂ'ਚੋਂ ਨਾ ਭੁਲਾ ਜਾਣਾ ‌‌‌॥ 

Tuesday, November 15, 2011

ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਅਤੇ ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮ ਦੇ ਸੰਦਰਭ 'ਚ

ਬੁੱਧੀਜੀਵੀ ਅਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਹਲਕਿਆਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਦਾ ਮਹੱਤਵ
—ਅਮੋਲਕ ਸਿੰਘ (94170-76735)
ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਿੱਲਾਂ ਦੇ ਕਾਮਿਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰਨਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨਅਤੀ ਕਾਮਿਆਂ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ, ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ, ਨੌਜਵਾਨਾਂ, ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ, ਕਿਸਾਨਾਂ, ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਪਸੰਦ ਤਬਕਿਆਂ, ਸਾਹਿਤ, ਕਲਾ ਅਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦੇ ਖੇਤਰ 'ਚ ਸਰਗਰਮ ਕਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਘੜੀ, ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਦੇ ਹੱਕ 'ਚ ਹਾਅ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਮਾਰਨ ਲਈ ਅੱਗੇ ਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।

ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਨਅਤੀ ਕੇਂਦਰ ਲੁਧਿਆਣਾ ਅੰਦਰ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨਾਲ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਹੋਕੇ, ਲਹੂ-ਪਸੀਨਾ ਇੱਕ ਕਰਨ ਵਾਲੇ 20 ਲੱਖ ਕਾਮਿਆਂ ਦੇ ਅਰਮਾਨ ਮਿੱਲਾਂ ਦੀਆਂ ਚਿਮਨੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਧੂੰਆਂ ਬਣਕੇ ਉਡ ਰਹੇ ਹਨ।

ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜਿਸਮ, ਭੱਠੀਆਂ 'ਚ ਬਲਦੇ ਹਨ ਉਹ ਜਾਣਦੇ ਨੇ ਕਿ ਜਦੋਂ ਲੋਹਾ ਪਿਘਲਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਭਾਫ਼ ਨਹੀਂ ਉੱਠਦੀ ਪਰ ਜਦੋਂ ਕਾਮਿਆਂ ਦੇ ਪਿੰਡਿਆਂ 'ਚੋਂ ਭਾਫ਼ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਲੋਹਾ ਪਿਘਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਇਹ 'ਵਿਕਾਸ' ਦੀ ਕੇਹੀ ਭਾਸ਼ਾ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਸ਼ੋਰ ਹੇਠ ਕਿਰਤੀਆਂ ਦੀ ਹੱਕੀ ਆਵਾਜ਼ ਅਣਸੁਣੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮੇ 22 ਸਤੰਬਰ ਤੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਕੀ ਮੰਗਾਂ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਨਅਤੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੀਆਂ 150 ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਿੱਲਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹੜਤਾਲ ਦੇ ਕਲਾਵੇ 'ਚ ਲੈ ਰਹੇ ਹਨ।

ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਨੇ ਨਾ ਕੋਈ ਖੇਤ ਮੰਗਿਆ ਹੈ ਨਾ ਕੋਈ ਦੇਸ਼। ਨਾ ਮਿੱਲਾਂ 'ਚ ਹਿੱਸੇਦਾਰੀ ਮੰਗੀ ਹੈ ਨਾ ਰਾਜ ਭਾਗ ਦੀ ਕੁਰਸੀ। ਕਾਮਿਆਂ ਨੇ ਓਹੀ ਕੁਝ ਮੰਗਿਆ ਹੈ ਜੋ ਕੁਝ ਦੇਣ ਦੇ ਕੌਲ-ਕਰਾਰ 'ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ' ਕਰਦਾ ਹੈ। ਓਹੀ ਮੰਗਿਆ ਹੈ ਜੋ ਮਜ਼ਬੂਰੀਆਂ ਦੇ ਪੁੜਾਂ ਹੇਠ ਪਿਸਦੇ ਕਾਮਿਆਂ ਤੋਂ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕ ਚਤੁਰਾਈ ਅਤੇ ਜ਼ੋਰ-ਜ਼ਬਰੀ ਨਾਲ ਨੱਪੀ ਬੈਠੇ ਹਨ। ਹਕੀਕਤਾਂ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ 'ਚ ਦੇਖਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕ, ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਨਜ਼ਰ 'ਚ ਮੁਜ਼ਰਿਮ ਬਣਦੇ ਹਨ। ਜਿਹੜੇ ਇਸ ਮੁਲਕ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੇ ਮੌਲਿਕ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਉਪਰ ਛਾਪਾ ਮਾਰ ਕੇ ਕਾਨੂੰਨੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਅਪਰਾਧ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਕਿਸੇ ਕੋਨੇ ਤੋਂ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਣ ਜਾਂ ਉਠਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਹੱਕ ਅਤੇ ਸੱਚ ਦੀ ਮੂੰਹ ਜ਼ੋਰ ਮੰਗ ਤਾਂ ਇਹੀ ਹੈ ਕਿ ਲੱਖਾਂ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਕਮਾਈ ਅਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਹੱਕਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਸਰਕਾਰੀ ਤੰਤਰ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀ ਬਾਂਹ ਫੜਦਾ। ਹੋਇਆ ਇਸਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਉਲਟ ਹੈ। ਕਿਰਤੀਆਂ ਦੀ ਬਾਂਹ ਫੜਨ ਦੀ ਵਜਾਏ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੰਘੀ ਫੜੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ।

ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਲੰਮੀ ਹੜਤਾਲ 'ਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਨੌਬਤ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਉਣੀ ਜੇ ਸਰਕਾਰ ਕਿਰਤ-ਵਿਭਾਗ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਆਦਿ ਦਾ ਤਾਣਾ-ਬਾਣਾ, ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਾਲਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕੇਲ ਪਾਉਣ ਲਈ ਅੱਗੇ ਆਉਂਦਾ। ਪਰ ਇੱਥੇ ਤਾਂ ਡਾਢਿਆਂ ਦਾ ਸੱਤੀਂ ਵੀਹਵੀਂ ਸੌ ਹੈ। ਵਿਚਾਰ-ਚਰਚਾਵਾਂ, ਗੇਟ ਮੀਟਿੰਗਾਂ, ਰੈਲੀਆਂ, ਵਿਖਾਵਿਆਂ, ਧਰਨਿਆਂ ਆਦਿ ਦੇ ਦੌਰਾਂ ਵਿਚੀਂ ਗੁਜ਼ਰਦੇ ਕਾਮੇ ਆਪਣੇ ਹੱਡੀਂ ਹੰਢਾਏ ਤਜ਼ਰਬਿਆਂ ਤੋਂ ਮੂੰਹੋਂ ਮੂੰਹ ਕਹਿਣ ਲੱਗ ਪਏ ਹਨ ਕਿ ਇੱਥੇ ਕਾਇਦੇ-ਕਾਨੂੰਨ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਹੋਰ ਅਤੇ ਜੋਕਾਂ ਲਈ ਹੋਰ ਹਨ। ਕਾਮਿਆਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ, ਅਸੀਂ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕਾਂ ਤੋਂ ਕਿਹੜਾ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼ ਮੰਗ ਲਿਐ, ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਮੁੱਲ ਮੰਗਿਐ ਜਾਂ ਉਹ ਸਹੂਲਤਾਂ ਮੰਗੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਬਾਰੇ ਅਕਸਰ ਹੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਕਾਮਿਆਂ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੀ ਹੈ? ਫਿਰ ਇਹ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸਾਨੂੰ, ਸਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲੰਮੀ ਪੜਤਾਲ ਦੇ ਮੂੰਹ ਧੱਕ ਕੇ, ਸਾਨੂੰ ਭੁੱਖੇ ਮਾਰਨ ਅਤੇ ਦਮੋਂ ਕੱਢਕੇ ਆਪਣੇ ਚਰਨੀਂ ਲਾਉਣ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰ ਕਰਨ ਦੀ ਇਹ ਸਾਜਸ਼ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਹੋਰ ਕੀ ਹੈ? ਕਾਮਿਆਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਬੇ-ਗੈਰਤ ਹੋ ਕੇ ਜੀਣ ਨਾਲੋਂ ਮੌਤ ਹਜ਼ਾਰ ਦਰਜ਼ੇ ਚੰਗੀ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਲੈ ਕੇ ਰਹਾਂਗੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਮਿੱਲਾਂ 'ਚ ਕੰਮ ਠੱਪ ਰਹੇਗਾ।

ਉਦਾਸ ਹੋਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਕਾਮੇ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ 'ਚ ਨੇ। ਉਹ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕਾਂ ਦੀਆਂ ਸਭ ਚਾਲਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਖਣ-ਪਰਖਣ ਲੱਗੇ ਹਨ। ਉਹ ਬਹੁਤ ਹੀ ਠਰੰਮੇ ਅਤੇ ਸੂਝ-ਸਿਆਣਪ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਜੱਦੋਜਹਿਦ ਨੂੰ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ਨਾਲ ਚਲਾ ਰਹੇ ਹਨ।

ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਿੱਲਾਂ ਦੇ ਕਾਮਿਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰਨਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨਅਤੀ ਕਾਮਿਆਂ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ, ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ, ਨੌਜਵਾਨਾਂ, ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ, ਕਿਸਾਨਾਂ, ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਪਸੰਦ ਤਬਕਿਆਂ, ਸਾਹਿਤ, ਕਲਾ ਅਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦੇ ਖੇਤਰ 'ਚ ਸਰਗਰਮ ਕਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਘੜੀ, ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਦੇ ਹੱਕ 'ਚ ਹਾਅ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਮਾਰਨ ਲਈ ਅੱਗੇ ਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।
ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਬਿਲਕੁਲ ਹੱਕੀ ਅਤੇ ਜਾਇਜ਼ ਹਨ। ਉਹ ਮੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਪੱਕਿਆਂ ਕਰੋ। ਹਾਜ਼ਰੀ ਰਜਿਸਟਰ ਲਗਾਓ। ਪਹਿਚਾਣ-ਪੱਤਰ ਅਤੇ ਹਾਜ਼ਰੀ ਕਾਰਡ ਦਿਓ। ਈ.ਐਸ.ਆਈ., ਬੋਨਸ, ਪੀ.ਐਫ., ਹਫ਼ਤਾਵਾਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਣਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ। ਕਿਰਤ-ਕਾਨੂੰਨ ਲਾਗੂ ਕੀਤੇ ਜਾਣ। ਅੰਬਰ ਛੋਹ ਰਹੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਕਾਰਨ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ 'ਚ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਤੱਥ ਮੂੰਹੋਂ ਬੋਲਦੇ ਹਨ ਕਿ ਪਿਛਲੇ 20 ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਤੋਂ ਲਗਭਗ ਓਹੀ ਰੇਟ/ਤਨਖਾਹਾਂ ਚੱਲੀਆਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਜਦੋਂ ਕਿ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੇ ਕਮਿਆਂ ਦਾ ਕਚੁੰਮਰ ਕੱਢ ਰੱਖਿਆ ਹੈ।

ਆਰਥਕ ਤੰਗੀਆਂ ਦੇ ਭੰਨੇ ਕਾਮੇਂ 14-14 ਘੰਟੇ ਲਟਾ-ਪੀਂਘ ਹੋ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਕੇ ਵੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਭੱਠ ਝੋਕ ਰਹੇ ਹਨ। ਦੂਜੇ ਬੰਨੇ ਵਿਹਲੜ ਜਿਹੜੇ ਡੱਕਾ ਤੋੜ ਕੇ ਦੂਹਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਉਹ ਮੌਜ਼ਾਂ ਮਾਣਦੇ ਹਨ। ਜੇ ਕਿਤੇ ਸਾਡਾ ਏਕਾ ਲੋਹੇ ਵਰਗਾ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਕਾਮੇ ਚੇਤੰਨ ਹੋ ਜਾਣ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਤਕਦੀਰ ਦੇ ਆਪ ਮਾਲਕ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਾਂ। ਅਜੇ ਤਾਂ 20 ਲੱਖ ਕਾਮਿਆਂ 'ਚੋਂ ਕਰੀਬ 2600 ਹੀ ਕਾਮਾ ਹੈ ਜਿਸਨੇ ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਿੱਲਾਂ ਅੰਦਰ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਦਾ ਰੰਗ ਵਿਖਾਇਆ ਹੈ। ਐਨੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮਾਲਕਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਦੇ ਭਾਂਡੇ ਸੁੱਟੇ ਪਏ ਹਨ। ਇਸ ਤਰੰਗ ਨੂੰ ਥਾਏਂ ਨੱਪਣ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਪਾਪੜ ਵੇਲੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ।

ਸਚਾਈ ਕਦੇ ਜਬਰ ਦੇ ਜ਼ੋਰ ਨਹੀਂ ਦਬਦੀ। ਨਾ ਹੀ ਝੂਠ ਦੇ ਪੁਲੰਦਿਆਂ ਦੇ ਭਾਰ ਹੇਠ ਨੱਪੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਦਾ ਹੱਕੀ ਘੋਲ ਇਹੋ ਸਚਾਈ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਬਿਆਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕਾਮਿਆਂ ਦਾ ਸੈਲਾਬ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੀਆਂ ਸੜਕਾਂ 'ਤੇ ਨਿਕਲ ਤੁਰਿਆ ਹੈ। ਹੁਣ ਮਿੱਲਾਂ ਦੇ ਗੇਟ 'ਤੇ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਅਤੇ ਬੰਦ ਹੋਣ ਦੇ ਘੁੱਗੂ ਖ਼ਾਮੋਸ਼ ਨੇ। ਗੇਟਾਂ 'ਤੇ ਗੂੰਜ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਨਾਅਰਿਆਂ ਦੀ। ਕਿਰਤ-ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰ ਅੱਗੇ ਧਮਕ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਰੋਹਲੇ ਮਾਰਚਾਂ ਦੀ। ਮਿੱਲ ਮਾਲਕਾਂ ਦੀ ਰਾਤਾਂ ਦੀ ਨੀਂਦ ਉਡ ਗਈ। ਉਹ ਬੁਖ਼ਲਾਏ ਹੋਏ ਜੋ ਮੂੰਹ ਆਇਆ ਉਹ ਮਾਇਆ ਦੇ ਜ਼ੋਰ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ 'ਚ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਛਪਾਉਣ ਭੱਜ ਤੁਰੇ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਭਰਮ ਹੈ ਕਿ ਸ਼ਾਇਦ ਅਸੀਂ ਕੂੜ ਦਾ ਅੰਬਾਰ ਖੜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ਸੱਚ ਦਾ ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ ਤੋਂ ਡੱਕ ਲਵਾਂਗੇ। ਮਿੱਲ ਮਾਲਕਾਂ ਨੇ ਕੁਝ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ 'ਚ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਲਗਵਾਇਆ ਹੈ ਕਿ :

''ਸਤਿਕਾਰਤ ਅਤੇ ਪਰਮ ਪਿਆਰੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਸਾਹਿਬਾਨ ਜੀਓ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਸ਼ਹਿਰ ਉਪਰ ਦਹਿਸ਼ਤਵਾਦ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਮੰਡਰਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਇਸ ਕਰਕੇ ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਉਪਰ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ।''

ਇਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ 'ਉਲਟਾ ਚੋਰ ਕੋਤਵਾਲ ਕੋ ਡਾਂਟੇ'। ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮੇ, ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਹੋਰ ਸਨਅਤੀ ਕਾਮੇ, ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਵਰਗ ਅਤੇ ਜਮਹੂਰੀਅਤ/ਇਨਸਾਫ ਪਸੰਦ ਲੋਕ-ਹਿੱਸੇ ਜਾਣਦੇ ਨੇ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਹੱਕ, ਸੱਚ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਦਬਾਉਣ ਲਈ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕ 'ਹਾਕੀ ਬਰਗੇਡ' ਬਣਾ ਕੇ ਅਤੇ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦ ਗਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਥਾਪੜਾ ਦੇ ਕੇ ਕਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਦਹਿਸ਼ਤਜ਼ਦਾ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਜਾੜਨ ਲਈ ਨਾਦਰਸ਼ਾਹੀ ਹੱਲੇ ਬੋਲਦੇ ਰਹੇ ਹਨ।

ਹੁਣ ਫੇਰ 'ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ' ਦਾ ਝੂਠਾ ਡਰ ਖੜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ਅਸਲ 'ਚ ਹੱਕੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਲੜਦੇ ਕਾਮਿਆਂ ਉਪਰ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਦੇ ਝੱਖੜ ਝੁਲਾਉਣ ਲਈ ਜ਼ਮੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਕਦੇ ਕਿਹਾ ਜਾ ਰਿਹੈ ਕਿ ਬਾਹਰੋਂ ਆਏ ਕੁਝ ਲੋਕ ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਭੜਕਾਅ ਰਹੇ ਹਨ। ਹੈ ਨੀ ਕਮਾਲ ਦੀ ਚਤੁਰਾਈ! ਆਪਣੇ ਮੁੜ੍ਹਕੇ ਦਾ ਮੁੱਲ ਮੰਗਣਾ, ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਹੱਕਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕਰਨਾ, ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਹੈ ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਾਮਿਆਂ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਉੱਪਰ ਝਪਟਾ ਮਾਰਨਾ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਪੁੰਜ ਹੋਣਾ ਅਤੇ ਸ਼ਰੀਫ਼ ਨਾਗਰਿਕ ਹੋਣਾ ਹੈ! ਹੁਣ ਇਸ ਦੰਭ ਦੇ ਲੰਗਾਰ ਵਗਾਹ ਮਾਰੇ ਹਨ। ਕਾਮਿਆਂ ਨੇ ਅੱਖ ਖੋਲ੍ਹੀ ਹੈ। ਆਪਣੇ-ਪਰਾਏ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਇਹ ਪਹਿਚਾਣ ਕਿਤੇ ਗੂਹੜੀ ਅਤੇ ਪੱਕੀ ਨਾ ਹੋ ਜਾਏ। ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੰਗ ਆਵਾਜ਼ ਮਿਲਾਉਣ ਲਈ ਹੋਰ ਸਨਅਤੀ ਕਾਮੇ ਜੋਟੀਆਂ ਪਾ ਕੇ ਸੜਕਾਂ 'ਤੇ ਨਿੱਤਰ ਨਾ ਪੈਣ ਇਸ ਡਰੋਂ ਮਿੱਲ ਮਾਲਕਾਂ ਦੇ ਕਲੇਜੇ ਹੌਲ ਪੈ ਰਹੇ ਹਨ।

ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਉਪਰ ਇਸ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਿਰੋਧੀ ਅਤੇ ਲੋਕ-ਵਿਰੋਧੀ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਗੈਰ ਜਮਹੂਰੀ, ਗੈਰ-ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਅਤੇ ਗੈਰ ਇਖਲਾਕੀ ਭਰੀ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਅਤੇ ਧੱਕੇ ਸ਼ਾਹੀ ਖਿਲਾਫ ਸਾਂਝੀ ਆਵਾਜ਼ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਅੱਜ 12 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ ਭਵਨ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿਖੇ ਅਤੇ 13 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਪਿੰਡ ਭੈਣੀ ਬਾਘਾ (ਮਾਨਸਾ ਲਾਗੇ) ਅਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ ਵਿਰੋਧੀ ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ, ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਅਗਵਾਈ 'ਚ ਸਮੂਹ ਜਮਹੂਰੀ ਹਲਕੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨਾਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਸ ਸੁਲੱਖਣੇ ਵਰਤਾਰੇ ਨੂੰ ਹੁੰਗਾਰਾ ਭਰਨ ਲਈ ਹੋਰ ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਤਬਕੇ ਵੀ ਸਿਰ ਜੋੜ ਕੇ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨਾਂ 'ਚ ਪੁੱਜ ਰਹੇ ਹਨ। ਟੈਕਸਟਾਈਲ ਕਾਮਿਆਂ ਉਪਰ ਦਬਾਅ ਪਾਉਣ, ਹੱਕ ਖੋਹਣ ਅਤੇ ਕੁੱਟਣ ਦੇ ਮੌਕੇ ਤਲਾਸ਼ਣ 'ਚ ਲੱਗੇ ਮਾਲਕਾਂ ਅਤੇ ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਦੇ ਹੱਕੀ ਸੰਗਰਾਮ 'ਚ ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ੁਲਮ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣਾਉਣ 'ਤੇ ਤੁਲੇ ਹਾਕਮਾਂ ਖਿਲਾਫ ਇਹ ਜਮਹੂਰੀ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨਾਂ, ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਗਰੀਨ ਹੰਟ ਦੇ ਮੁਲਕ-ਵਿਆਪੀ ਵਰਤਾਰੇ ਦੇ ਪ੍ਰਸੰਗ 'ਚ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਉਪਰ ਰੌਸ਼ਨੀ ਪਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਹ ਕਾਰਪੋਰੇਸ਼ਨ ਉੱਘੇ ਰੰਗ ਕਰਮੀ ਜਤਿਨ ਮਰਾਂਡੀ ਨੂੰ ਫਾਂਸੀ ਦੀ ਸੁਣਾਈ ਸਜ਼ਾ ਅਤੇ ਸੋਨੀ ਸੋਰੀ ਉਪਰ ਮੜ੍ਹੇ ਝੂਠੇ ਕੇਸ ਵਾਪਸ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਆਵਾਜ਼ ਲਾਮਬੰਦ ਕਰਨ ਦੀ ਵੀ ਲਲਕਾਰ ਬਣੇਗੀ।

Monday, November 14, 2011

ਮੋਰਚਾ ਫਤਿਹ

ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਦੀ ਅਕਵਾਇਰ ਕੀਤੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚੋਂ 186 ਏਕੜ ਜਮੀਨ ਛੱਡਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ
17 ਕਿਸਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਘੋਲ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ
22 ਨਵੰਬਰ ਦਾ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਮੋਰਚਾ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਇਮ
12 ਨਵੰਬਰ ਦੇਰ ਰਾਤ ਤੱਕ ਸਰਕਟ ਹਾਊਸ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ - ਤਿੰਨ ਧਿਰੀ ਗੱਲਬਾਤ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਅਕਵਾਇਰ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਗੋਬਿੰਦਪੁਰੇ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚੋਂ 186 ਏਕੜ ਜ਼ਮੀਨ ਸਮੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਪੰਜ ਘਰ ਛੱਡਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਕੱਤਰ ਦਰਬਾਰਾ ਸਿੰਘ ਗੁਰੂ, ਖੁਫੀਆ ਪੁਲਸ ਦੇ ਮੁਖੀ ਸੁਰੇਸ਼ ਅਰੋੜਾ, ਆਈ. ਜੀ ਬਠਿੰਡਾ ਨ.ਸ ਢਿਲੋਂ, ਡੀ.ਸੀ ਮਾਨਸਾ ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਐਸ.ਐਸ.ਪੀ ਹਰਦਿਆਲ ਸਿੰਘ ਮਾਨ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਿਸਾਨ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਕੋਕਰੀ ਕਲਾਂ, ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਜੇਠੂਕੇ, ਬੂਟਾ ਸਿੰਘ ਬੁਰਜਗਿੱਲ, ਮਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਧਨੇਰ, ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਪੰਨੂ, ਹਰਦੇਵ ਸਿੰਘ ਸੰਧੂ, ਜੋਰਾ ਸਿੰਘ ਨਸਰਾਲੀ, ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਰਸੂਲਪੁਰ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਦਾਊਦ, ਡਾ. ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਅਜਨਾਲਾ, ਹਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰਵੀ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਭੁੱਲਰ ਸਮੇਤ ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਦੇ 20 ਕਿਸਾਨਾਂ-ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੰਪਨੀ ਦੇ 2 ਨੁਮਾਇੰਦੇ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।

ਮੀਟਿੰਗ ਵਿੱਚ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਕਿ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਉਜਾੜੇ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਏ ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਦੇ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਅਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਲੱਗਭੱਗ 150 ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਿਸਾਨ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੂੰ 3-3 ਲੱਖ ਉਜਾੜਾ ਭੱਤਾ ਸਰਕਾਰ ਦੇਵੇਗੀ ਅਤੇ 1-1 ਜੀਅ ਨੂੰ ਪੱਕੀ ਨੌਕਰੀ ਕੰਪਨੀ ਦੇਵੇਗੀ। ਜਿਹੜੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚ ਸੌਣੀ ਦੀ ਫਸਲ ਨਹੀਂ ਬੀਜਣ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ 18000 ਰੁਪਏ ਪ੍ਰਤੀ ਏਕੜ ਅਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬੀਜੀ ਹੋਈ ਫਸਲ ਤੇ ਘੋੜੇ ਛੱਡ ਕੇ ਉਜਾੜੀ ਗਈ ਜਾਂ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਾਲਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ 10,000 ਰੁਪਏ ਪ੍ਰਤੀ ਏਕੜ ਕੰਪਨੀ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣਗੇ। ਮੌਜੂਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੌਰਾਨ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਏ 2 ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਵਾਰਸਾਂ ਨੂੰ 5-5 ਲੱਖ ਦਾ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ 1-1 ਮੈਂਬਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਨੌਕਰੀ ਸਮੇਤ ਕਰਜਾ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਤੁਰੰਤ ਮੁਕੰਮਲ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਸੰਘਰਸ਼ ਦੌਰਾਨ ਕੋਟਦੁੱਨਾ, ਮਾਨਸਾ ਅਤੇ ਗੋਬਿੰਗਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਪੁਲਸ ਜਬਰ ਦੌਰਾਨ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋਏ 154 ਕਿਸਾਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਗੰਭੀਰ ਜਖਮੀਆਂ ਨੂੰ 50-50 ਹਜ਼ਾਰ ਅਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ 25-25 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਦੇਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। 186 ਏਕੜ ਵਿੱਚੋਂ 135 ਏਕੜ ਤਾਂ ਜੱਦੀ ਮਾਲਕਾਂ ਵਾਲੇ ਥਾਂ 'ਤੇ ਹੀ ਛੱਡੀ ਜਾਵੇਗੀ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਬਾਕੀ ਦੀ ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਲਗਦੀ ਅਕਵਾਇਰ ਹੋਈ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚੋਂ ਛੱਡੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚੋਂ ਰਸਤਾ, ਨਹਿਰੀ ਖਾਲ, ਬੋਰ, ਜ਼ਮੀਨ-ਦੋਜ਼ ਪਾਈਪਾਂ ਅਤੇ ਮੋਟਰ ਕੁਨੈਕਸ਼ਨ ਚਾਲੂ ਕਰਨ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖਰਚਾ ਕੰਪਨੀ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਜ਼ਮੀਨ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪਣ ਦਾ ਕੰਮ 25 ਨਵੰਬਰ ਤੱਕ ਹਰ ਹਾਲ ਨੇਪਰੇ ਚਾੜ੍ਹਿਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਸੰਘਰਸ਼ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸਾਨਾਂ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ 'ਤੇ ਦਰਜ਼ ਕੀਤੇ ਪੁਲਸ ਕੇਸ ਇੱਕ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਅੰਦਰ ਮੁਕੰਮਲ ਤੌਰ 'ਤੇ ਵਾਪਸ ਲਏ ਜਾਣਗੇ।

ਇਹ ਸਾਰੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਭਾਰਤੀ ਕਿਸਾਨ ਯੂਨੀਅਨ ਏਕਤਾ ਦੇ ਜਨਰਲ ਸੱਕਤਰ ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਕੋਕਰੀ ਕਲਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਨੂੰ 17 ਕਿਸਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਦਾਅਵਾ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਸਹਿਮਤੀ ਨਾਲ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਸਰਕਾਰੀ ਨੌਕਰੀ ਅਤੇ ਦੋ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਪ੍ਰਤੀ ਏਕੜ ਵਾਧੂ ਰੇਟ ਦੇਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਇਸ ਸਾਂਝੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦਬਾਅ ਕਾਰਨ ਹੀ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਅਖੌਤੀ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਦਾਅਵੇ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਕਾਲੀ ਲੀਡਰ ਜਾਂ ਕੰਪਨੀ ਦੇ ਏਜੰਟ ਇਹ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਿਖਰਾਂ 'ਤੇ ਪੁੱਜਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਵਾ ਸਕੇ ਸਨ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਉਜਾੜੇ ਭੱਤੇ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਛੇੜੀ ਸੀ।

ਬਣਾਂਵਾਲੀ ਅਤੇ ਰਾਜਪੁਰਾ, ਜਿੱਥੇ ਕਿਸਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਤਿੱਖਾ ਤੇ ਲੰਬਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਨਹੀਂ ਲੜ ਸਕੇ ਸਨ, ਉੱਥੇ ਕਿਸੇ ਕਿਸਾਨ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਜਾਂ ਵੱਧ ਰੇਟ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਅਤੇ ਉਜਾੜਾ ਭੱਤਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲ ਸਕਿਆ। ਇਹ ਮਿਸਾਲੀ ਜਿੱਤਾਂ ਸਾਂਝੇ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਜਨਤਕ ਤਾਕਤ ਦਾ ਹੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਮਾ ਹੈ। ਅੱਗੇ ਤੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਸਹਿਮਤੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਧੱਕੇ ਨਾਲ ਜਮੀਨਾਂ ਅਕਵਾਇਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਮੌਜੂਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਪਹਿਲੀ ਗੱਲਬਾਤ ਸਮੇਂ ਹੀ ਤੌਬਾ ਕਰ ਚੁੱਕੇ ਹਨ, ਇਸਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਕਿਸਾਨਾਂ-ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜਮੀਨ ਅਤੇ ਘਰਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਜਥੇਬੰਦਕ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਹੀ ਟੇਕ ਰੱਖਣੀ ਪਵੇਗੀ। ਮੀਟਿੰਗ ਦੇ ਅੰਤ 'ਤੇ ਜਦੋਂ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਨੁਮਾਇੰਦਿਆਂ ਵਲੋਂ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਜੋਰ ਦੇਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਘਰੇਲੂ ਬਿਲਾਂ ਦੀ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤ ਪੂਰੀ ਮਾਫ਼ੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਭਖਦੇ ਕਿਸਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਮਸਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਲ ਲਈ ਅਗਲੀ ਮੀਟਿੰਗ ਤੁਰੰਤ ਨਿਸ਼ਚਤ ਕਰਨ ਪ੍ਰਤੀ ਹਾਂ-ਪੱਖੀ ਹੁੰਗਾਰਾ ਨਾ ਭਰਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ 22 ਨਵੰਬਰ ਤੋਂ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਮਟਕਾ ਚੌਂਕ ਵਿੱਚ ਫੇਸਲਾਕੁੰਨ ਧਰਨਾ ਪੂਰੇ ਜੋਰ-ਸ਼ੋਰ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਇਹ ਮੰਗਾਂ ਮੰਨੇ ਜਾਣ ਤੱਕ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇਗਾ।

Democratic Front against Operation Green Hunt, Punjab

ਜਬਰ ਵਿਰੋਧੀ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ - ਤਸਵੀਰਾਂ ਦੀ ਜੁਬਾਨੀ

Convention by Democratic Front against Operation Green Hunt against Repression during Agitation against Land Acquisition at Gobindpura.

Convention by Democratic Front against Operation Green Hunt against Repression during Agitation against Land Acquisition at Gobindpura.

Convention by Democratic Front against Operation Green Hunt against Repression during Agitation against Land Acquisition at Gobindpura.

Convention by Democratic Front against Operation Green Hunt against Repression during Agitation against Land Acquisition at Gobindpura.

Convention by Democratic Front against Operation Green Hunt against Repression during Agitation against Land Acquisition at Gobindpura.

ਉਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਗ੍ਰੀਨ ਹੰਟ ਵਿਰੋਧੀ ਜਮਹੂਰੀ ਫਰੰਟ ਵਲੋਂ ਪਿੰਡ ਭੈਣੀ ਬਾਘਾ ਵਿਖੇ, ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਘੋਲ ਦੌਰਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਿਸਾਨ ਸੰਘਰਸ਼ ਅਤੇ ਔਰਤਾਂ ਉਪਰ ਕੀਤੇ ਗਏ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿੱਚ "ਜ਼ਬਰ ਵਿਰੋਧੀ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ" ਕੀਤੀ ਗਈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਹੋਰਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਨੁੱਖੀ ਹੱਕਾਂ ਦੇ ਉੱਘੇ ਕਾਰਕੁੰਨ ਹਿਮਾਂਸ਼ੂ ਕੁਮਾਰ, ਛੱਤੀਸਗੜ੍ਹ ਤੋਂ ਕੋਪਾ ਕੁੰਜਮ, ਉੱਘੇ ਨਾਟਕਕਾਰ ਅਤੇ ਫਰੰਟ ਦੇ ਸੂਬਾ ਕਮੇਟੀ ਮੈਂਬਰ ਅਜਮੇਰ ਔਲਖ, ਪ੍ਰੋ. ਪਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਐਨ.ਕੇ ਜੀਤ,  ਗੋਬਿੰਦਪੁਰਾ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਪੁਲਸ ਜਬਰ ਦਾ ਦਲੇਰੀ ਨਾਲ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਵੀਰਾਂਗਣਾ ਅਮਨਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਮੰਚ ਸੰਚਾਲਨ ਨਰਭਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤਾ। ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਰਿਪੋਰਟ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ।

Sunday, November 13, 2011

PEOPLES VENT ANGER AGAINST NEO-LIBERAL ECONOMIC POLICIES


ਨਵ-ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਉੱਠਿਆ ਲੋਕ-ਰੋਹ

ਪਾਵੇਲ ਕੁੱਸਾ
ਲੰਘੇ 15 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ 82 ਮੁਲਕਾਂ ਦੇ 952 ਸ਼ਹਿਰਾਂ ’ਚ ਲੱਖਾਂ ਲੋਕ ਸੜਕਾਂ ’ਤੇ ਨਿਕਲੇ। ‘ਕਬਜ਼ੇ ਹੇਠ ਲਉ’ ਨਾਂ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਹੇਠ ਰੋਸ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਲਈ ਨਿੱਤਰੇ ਇਹ ਲੋਕ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣਿਆਂ ਤੇ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਮੁਨਾਫ਼ਿਆਂ ਦੀ ਅੰਨ੍ਹੀ ਹਵਸ਼, ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੀ ਛੰਗਾਈ ਤੇ ਇਸ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅਮੀਰ ਗ਼ਰੀਬ ਦੇ ਵਧ ਰਹੇ ਪਾੜੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਆਵਾਜ਼ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪਿਛਲੇ ਕਈ ਮਹੀਨਿਆਂ ਤੋਂ ਵਿਕਸਤ ਦੁਨੀਆਂ ਵਜੋਂ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਫਰਾਂਸ, ਸਪੇਨ, ਇਟਲੀ, ਰੋਮ ਤੇ ਦੂਜੇ ਯੂਰਪੀ ਮੁਲਕ ਗਹਿਰੇ ਆਰਥਿਕ ਸੰਕਟ ’ਚ ਘਿਰੇ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ ਰੋਸ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਾਂ ਦਾ ਸੇਕ ਝੱਲ ਰਹੇ ਹਨ। ਸਾਮਰਾਜੀ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਅਮਰੀਕਾ ਅੰਦਰ ਵੀ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ’ਚ ਲੋਕ 17 ਸਤੰਬਰ ਤੋਂ ਨਿਊਯਾਰਕ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚਲੇ ‘ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ’ ਇਲਾਕੇ ’ਚ ਧਰਨਾ ਲਾ ਕੇ ਬੈਠੇ ਹਨ। ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ ਉਹ ਇਲਾਕਾ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਵੱਡੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ, ਕਾਰਪੋਰੇਟਾਂ ਤੇ ਬੈਂਕਾਂ ਦੇ ਕਈ ਦਫ਼ਤਰ ਹਨ। ਇੱਥੋਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜੇਬਾਂ ਕੱਟਣ ਦੀਆਂ ਵਿਉਤਾਂ ਘੜੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਫ਼ਰਮਾਨ ਸੁਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ‘ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰੋ’ ਮੁਹਿੰਮ ਰਾਹੀਂ ਅਮਰੀਕੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਤਾਕਤਾਂ ਦੀ ਚੌਧਰ ਦਾ ਇਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਨਪੀੜੇ ਜਾ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਮਾਰ ਹੇਠ ਆਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਧਰਨੇ ’ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਂਕੜਿਆਂ ’ਚ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵਧਦੀ ਗਈ। ਲੋਕ ਟੈਂਟ ਤੇ ਬਿਸਤਰੇ ਚੁੱਕ ਕੇ ਧਰਨੇ ’ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਆਉਂਦੇ ਰਹੇ, ਇਹ ਗਿਣਤੀ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਤੋਂ ਟੱਪ ਗਈ। ਕੋਈ ਇੱਕ, ਕੋਈ ਦੋ ਤੇ ਕਈ ਹਫ਼ਤਿਆਂ ਬੱਧੀ ਧਰਨੇ ’ਚ ਬੈਠੇ ਹਨ।

ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਈ-ਜੂਨ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਦੌਰਾਨ ਸਪੇਨ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਮੈਡਰਿਡ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਵੇਖ ਚੁੱਕੀ ਹੈ। ਆਰਥਿਕ ਸੰਕਟ ਕਾਰਨ ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ ’ਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਫੈਲੀ ਹੈ। ਖਾਸ ਕਰਕੇ 25 ਸਾਲ ਤਕ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ’ਚ ਤਾਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੀ ਦਰ 46.17 ਫ਼ੀਸਦੀ ਤਕ ਜਾ ਪਹੁੰਚੀ ਹੈ। ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਰਾਜਧਾਨੀ ਵਿਚਲੇ ਪਿਉਰਟੋ ਡੈਲ ਸੋਲ ਚੌਕ ’ਚ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਧਰਨਾ ਲਾਇਆ ਗਿਆ। ਕਈ ਵਾਰ ਪੁਲੀਸ ਨਾਲ ਝੜਪਾਂ ਹੋਈਆਂ ਪਰ ਧਰਨਾ ਮਹੀਨਾ ਭਰ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ। ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਨਵੰਬਰ-ਦਸੰਬਰ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ’ਚ ਉੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਬਜਟਾਂ ’ਚ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਕਟੌਤੀਆਂ ਤੇ ਵਧਾਈਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਫ਼ੀਸਾਂ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਇੰਗਲੈਂਡ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਰੋਹ ਭਰਪੂਰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਹੋਏ ਸਨ। ਇਸ ਸਾਲ ਅਗਸਤ ’ਚ ਦੁਬਾਰਾ ਫਿਰ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਅਤੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਦੇ ਭਾਂਬੜ ਦੁਨੀਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਆਏ ਹਨ। ਮਈ ਤੋਂ ਜੁਲਾਈ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਦੌਰਾਨ ਯੂਰਪੀ ਮੁਲਕ ਰੋਮ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੈਨਸ਼ਨਾਂ ਖੋਹਣ, ਨੌਕਰੀਆਂ ਛਾਂਗਣ ਤੇ ਟੈਕਸ ਵਾਧਿਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਲਗਾਤਾਰ ਹੜਤਾਲਾਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ। 25 ਮਹਵਸਈ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਾਂ ਦਾ ਸਿਖ਼ਰ 5 ਜੂਨ ਸੀ ਜਦੋਂ 3 ਲੱਖ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮੁਲਕ ਦੀ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਅੱਗੇ ਜਾ ਕੇ ਧਰਨਾ ਮਾਰਿਆ। ਸਤੰਬਰ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਦੌਰਾਨ ਇਟਲੀ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ ਹਾਕਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਬਜਟ ਕਟੌਤੀਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਸੜਕਾਂ ’ਤੇ ਨਿੱਤਰੇ ਹਨ। 15 ਸਤੰਬਰ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਹੜਤਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਤੇ ਵਿਰੋਧ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਲਗਾਤਾਰ ਜਾਰੀ ਹਨ ਅਤੇ ਹੁਣ ਪਿਛਲੇ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਨਿਊਯਾਰਕ ਅਤੇ ਵਾਸ਼ਿੰਗਟਨ ਵਰਗੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ’ਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ’ਚ ਲੋਕ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰੀ ਬੈਠੇ ਹਨ।

ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ’ਚ ਵਧ ਰਹੇ ਇਹ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਯੂਰਪ ਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ’ਚ ਹੋ ਰਹੀ ਉਸ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਦੀ ਲਗਾਤਾਰਤਾ ਹਨ ਜੋ ਪਿਛਲੇ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਜਾਰੀ ਹੈ। ਵਿਕਸਤ ਸਾਮਰਾਜੀ ਮੁਲਕਾਂ ਨੇ ਆਰਥਿਕ ਮੰਦਵਾੜੇ ਦਾ ਭਾਰ ਤੀਜੀ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਪਛੜੇ ਮੁਲਕਾਂ ’ਤੇ ਸੁੱਟਿਆ ਪਰ ਮੰਦਵਾੜਾ ਰੁਕਣ ਦਾ ਨਾਂ ਨਹੀਂ ਲੈ ਰਿਹਾ। ਹੁਣ ਇਸ ਦੇ ਭਾਰ ਹੇਠ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੁਲਕਾਂ ਦੀ ਆਮ ਜਨਤਾ ਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਸੰਕਟ ਦੌਰਾਨ ਵੱਡੀਆਂ ਬੈਂਕਾਂ ਤੇ ਵਿੱਤੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਰਾਹਤ ਪੈਕੇਜ ਦਿੱਤੇ ਗਏ। ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਜਟ ਬੈਂਕਾਂ ਤੇ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨੂੰੂ ਬਚਾਉਣ ਦੇ ਨਾਂ ਹੇਠ ਵਹਾ ਦਿੱਤੇ। ਹੁਣ ਬਜਟਾਂ ਦੇ ਘਾਟੇ ਦੀ ਕੀਮਤ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਨੀ ਪੈ ਰਹੀ ਹੈ। ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ, ਪੈਨਸ਼ਨਾਂ ’ਚ ਭਾਰੀ ਕਟੌਤੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਹੋਰਨਾਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ’ਤੇ ਕੱਟ ਲੱਗ ਰਹੇ ਹਨ, ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੀਸਾਂ ਵਧਾਈਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੁਲਕਾਂ ’ਚ ਵੀ ਲਾਗੂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਮੱਧਵਰਗੀ ਹਿੱਸਿਆਂ ਤਕ ਦਾ ਕਚੰੂਮਰ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ’ਚ ਭਾਰੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਹਾਲਤ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਅੰਦਰ ਭਾਰੀ ਰੋਸ ਤੇ ਬੇਚੈਨੀ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੁਲਕਾਂ ਦੀਆਂ ਹਕੂਮਤਾਂ ਤੇ ਵੱਡੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਲੋਕ ਰੋਹ ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਬਣ ਰਹੇ ਹਨ। 15 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ‘ਕਬਜ਼ਾ ਕਰੋ’ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਹੇਠ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ’ਚ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਹੋਏ ਹਨ। ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਨਿਊਯਾਰਕ ਤੇ ਵਸ਼ਿੰਗਟਨ ’ਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ’ਚ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਟਲੀ ’ਚ ਇੱਕ ਲੱਖ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਰੋਸ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਜ਼ੇ ਹੇਠ ਆਏ ਰੋਮ, ਆਇਰਲੈਂਡ ਤੇ ਪੁਰਤਗਾਲ ਵਰਗੇ ਮੁਲਕਾਂ ’ਚ ਵੱਡੇ ਇਕੱਠ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਕੱਲੇ ਪੁਰਤਗਾਲ ’ਚ ਹੀ 50 ਹਜ਼ਾਰ ਲੋਕਾਂ  ਤੇ ਕੈਨੇਡਾ ’ਚ 10 ਹਜ਼ਾਰ ਦਾ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਹ ਲੜੀ ਅਮਰੀਕਾ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਇੰਗਲੈਂਡ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਲੰਡਨ, ਸਟਾਕਹੋਮ, ਆਸਟਰੇਲੀਆ ਦੇ ਸਿਡਨੀ, ਜਪਾਨ ਦੇ ਟੋਕੀਓ, ਫਿਲਪੀਨਜ਼ ਦੇ ਮਨੀਲਾ ਤੇ ਹਾਂਗਕਾਂਗ ਤਕ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਹੈ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰਿਆਂ ’ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ 99 ਫ਼ੀਸਦੀ ਤੇ ਵੱਡੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਤੇ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਨੂੰ 1 ਫ਼ੀਸਦੀ ਕਿਹਾ ਹੈ। 1 ਫ਼ੀਸਦੀ, 99 ਫ਼ੀਸਦੀ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਚੂੰਡ ਕੇ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਅਮੀਰ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ਤੇ ਵਧ ਰਿਹਾ ਆਰਥਿਕ ਪਾੜਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਭਾਰੀ ਰੋਸ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਦੱਸਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਅਖ਼ਤਿਆਰ ਕੀਤੀਆਂ ਨਵ-ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਤਿੱਖੀ ਆਲੋਚਨਾ ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਹੋਰ ਦੁੱਭਰ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਵੱਡੇ ਕਾਰਪੋਰੇਟਾਂ ਲਈ ਦੌਲਤ ਦੇ ਅੰਬਾਰ ਉੱਸਰ ਰਹੇ ਹਨ ਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਹੋ ਰਹੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਉਜਾੜੇ ਤੇ ਵਧਦੇ ਖਰਚਿਆਂ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ਜੀਵਨ ਨਿਰਬਾਹ ਕਰਨਾ ਵੀ ਔਖਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਵਧ ਰਿਹਾ ਪਾੜਾ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਰੜਕਵਾਂ ਬਣ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਲਈ ਆਰਥਿਕ ਅਸਾਵੇਂਪਣ ’ਚੋਂ ਉਪਜਦੀ ਬੇਇਨਸਾਫ਼ੀ ਦੇ ਖ਼ਾਤਮੇ ਲਈ ਪੂਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ’ਚ ਤਬਦੀਲੀ ਦੀ ਚਰਚਾ ਚੱਲ ਰਹੀ ਹੈ। ‘ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ-ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਹੈ’ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਵੀ ਗੂੰਜਦਾ ਸੁਣਦਾ ਹੈ। ਇਉਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਰੋਹ ਫੁਟਾਰਿਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਲੱਛਣ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਕਿਸੇ ਇੱਕਾ-ਦੁੱਕਾ ਮੰਗ ਤਕ ਸੀਮਤ ਨਹੀਂ ਹਨ ਸਗੋਂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਰੋਹ ਆਰਥਿਕ ਨਾ-ਬਰਾਬਰੀ ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਮੌਜੂਦਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵੱਲ ਸੇਧਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੀ ਤਬਦੀਲੀ ਦੀ ਤਾਂਘ ਤਿੱਖੀ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਅਮੀਰ-ਗ਼ਰੀਬ ਦੇ ਵਧ ਰਹੇ ਪਾੜੇ ਦੇ ਖ਼ਾਤਮੇ ਦੀ ਮੰਗ ਉਠ ਰਹੀ ਹੈ। ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹੀਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਦੇ ਝੰਡਾ ਬਰਦਾਰ ਆਗੂ ਯਾਦ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਬੋਸਨੀਆਂ ਦੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾਕਾਰੀਆਂ ਕੋਲ ਕਿਊਬਾ ਦੇ ਇਨਕਲਾਬ ਦੇ ਨਾਇਕ ਬਣੇ ਚੀ ਗੁਵੇਰਾ ਦੀਆਂ ਚੁੱਕੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ ਇਹੀ ਕਹਿੰਦੀਆਂ ਸਨ।

ਮੀਡੀਆ ’ਚ ਇਹ ਚਰਚਾ ਵੀ ਉੱਘੜਵੇਂ ਰੂਪ ’ਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਮਰਾਜੀ ਮੁਲਕ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਜਨਤਾ ਨੂੰ ਅਰਬ ਮੁਲਕਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ ਜਨਤਕ ਉਭਾਰਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਅਮਰੀਕੀ ਥੈਲੀਸ਼ਾਹਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਕਿਆਸ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੀਆਂ ਸਰਮਾਏਦਾਰ ਸਰਕਾਰਾਂ ਲਈ ਪੇਸ਼ ਹੋ ਰਹੀ ਚੁਣੌਤੀ ’ਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਜਵਾਨੀ ਮੋਹਰੀ ਹੈ। ਸਰਮਾਏਦਾਰਾਂ ਦੇ ਮੁਨਾਫ਼ਿਆਂ ਦੀ ਹਵਸ ਨੇ ਜਵਾਨੀ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਤਬਾਹੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵੱਲ ਤੋਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਆਉਂਦੇ ਸਮੇਂ ’ਚ ਇਹ ਧਰਤੀ ਜਿਊਣ ਲਾਇਕ ਹੀ ਨਾ ਰਹਿਣ ਲਈ ਸਰਾਪੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਹਾਲਤ ’ਚ ਪਹਿਲਾਂ ਸੰਸਾਰ ਨੇ ਅਰਬ ਜਗਤ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀ ਤਾਕਤ ਦੇ ਜਲਵੇ ਵੇਖੇ ਹਨ, ਹੁਣ ਸਾਮਰਾਜੀ ‘ਪ੍ਰਭੂਆਂ’ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੜ੍ਹਾਂ ’ਚ ਨੌਜਵਾਨ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਹਲਚਲ ਦੇ ਝਟਕੇ ਸਹਿਣੇ ਪੈ ਰਹੇ ਹਨ।

ਤੀਜੀ ਦੁਨੀਆਂ ਕਹੇ ਜਾਂਦੇ ਆਰਥਿਕ ਤੌਰ ’ਤੇ ਘੱਟ ਵਿਕਸਤ ਮੁਲਕਾਂ ਦੀ ਜਨਤਾ ਸਾਮਰਾਜੀ ਲੁੱਟ ਅਤੇ ਦਾਬੇ ਨੂੰ ਵੱਡੇ ਜਨਤਕ ਸੰਗਰਾਮਾਂ ਨਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਚੁਣੌਤੀ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੀ ਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਹੁਣ ‘ਅਮੀਰ’ ਮੁਲਕਾਂ ਦੇ ਆਪਣੇ ਵਿਹੜੇ ’ਚੋਂ ਵੀ ਨਾਬਰੀ ਦੀਆਂ ਤਰੰਗਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਹੋਰ ਪਤਲੀ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਨਵ-ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਦਿਨ ਪੁੱਗ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਉੱਠ ਰਹੀ ਸੰਸਾਰ ਵਿਆਪੀ ਵਿਰੋਧ ਲਹਿਰ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕਰਨਾ ਬਣਦਾ ਹੈ।

* ਸੰਪਰਕ:94170-54015
Courtesy: Punjabi Tribune  November 11, 2011

Wednesday, November 2, 2011

GLIMPSE OF THE FESTIVAL OF GADAR VETERNS

Children taking part in a painting competition

Dhadi Jatha (Bald Singers) performing on the stage

Releasing the Souvenir

Preparing for the flag song

A play in progress

March past of the volunteers

Flag hoisting

ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਇਨਕਲਾਬੀ ਯੋਧਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ ਜੁੜਨ ਦਾ ਹੋਕਾ
Punjabi Tribune,November 2, 2011


ਨਿੱਜੀ ਪੱਤਰ ਪ੍ਰੇਰਕ ਜਲੰਧਰ, 1 ਨਵੰਬਰ
ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਇਨਕਲਾਬੀ ਯੋਧਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ ਜੋੜਨ, ਦੇਸ਼ ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਦਗਾਰਾਂ ਸੰਭਾਲਣ ਅਤੇ ਕੱਟੜਵਾਦੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਡਟਵਾਂ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣ ਦਾ ਹੋਕਾ ਦਿੰਦਿਆਂ 20ਵਾਂ ਮੇਲਾ ਗਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦਾ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ।

ਚਾਰ ਦਿਨ ਚੱਲੇ ਇਸ ਮੇਲੇ ਦੇ ਆਖਰੀ ਦਿਨ ਝੰਡੇ ਦੇ ਗੀਤ ਨੇ ਹਰ ਇਕ ਦੇ ਰੌਂਗਟੇ ਖੜ੍ਹੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ। ਨਾਟਕਾਂ ਵਾਲੀ ਰਾਤ ਗੁਰਸ਼ਰਨ ਭਾਅ ਜੀ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਰਹੀ। ਮੇਲੇ ‘ਚ ਦੇਸ਼ ਵਿਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਵੀ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ‘ਚ ਪਰਵਾਸੀ ਪੰਜਾਬੀ ਜੰਗ-ਏ-ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਦੇਣ ਪਹੁੰਚੇ। ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦੇ ਅਖੀਰਲੇ ਦਿਨ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ ਨਗਰ ਦੇ ਵਿਹੜੇ ‘ਚ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦੇ ਵਿੱਲਖਣ ਰੰਗ ਅਮੋਲਕ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਿਖੇ ‘ਝੰਡੇ ਦੇ ਗੀਤ’ ਦੇ ਬੋਲ ਅਜਿਹੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਹਲੂਣ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਮੇਲਾ ਪ੍ਰੇਮੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਰਘੁਬੀਰ ਕੌਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਗ਼ਦਰ ਲਹਿਰ ਦੀ 2013 ਵਿੱਚ ਆ ਰਹੀ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਲਈ ਜਨ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਮੁੱਖ ਨਿਸ਼ਾਨੇ ਵੱਲ ਵਧਿਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਮੇਲੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਬੁਲਾਰੇ ਕਾਮਰੇਡ ਪ੍ਰਗਟ ਸਿੰਘ ਜਾਮਾਰਾਏ ਵੱਲੋਂ ਇਨਕਲਾਬੀ ਨਾਅਰਿਆਂ ਦੀ ਗੜਗੜਾਟ ‘ਚ ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਜਾਮਾਰਾਏ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਗ਼ਦਰ ਲਹਿਰ ਦੇ ਯੋਧਿਆਂ ਦਾ ਮਹਾਨ ਵਿਰਸਾ ਸਾਥੋਂ ਇਹ ਮੰਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਦੇਸ਼ ‘ਚ ਪੈਰ ਪਾਸਾਰ ਰਹੀਆਂ ਫਿਰਕੂ, ਫਾਸ਼ੀਵਾਦੀ ਅਤੇ ਕੱਟੜਵਾਦੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕਰੀਏ ਕਿਉਂਕਿ ਲੋਕ ਵਿਰੋਧੀ ਨੀਤੀਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਜੱਦੋ ਜਹਿਦ ਤੇ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨੇੜਿਓਂ ਹੋ ਕੇ ਜੁੜੀ ਹੋਈ ਹੈ।

ਇਸ ਮੌਕੇ ਬਾਬਾ ਆਇਆ ਸਿੰਘ ਰਿਆੜਕੀ ਕਾਲਜ ਤੁਗਲਵਾਲਾ ਦੀਆਂ ਵਿਦਿਆਰਥਣਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਅਮੋਲਕ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕਲਮ ਨਾਲ ਉੱਕਰੇ ਝੰਡੇ ਦਾ ਗੀਤ ‘ਗੀਤ ਬਗਾਵਤ ਦਾ’ ਨੇ ਪੱਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ ਲਹਿਰ, ਗ਼ਦਰ ਲਹਿਰ, ਬੱਬਰ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ, ਕਿਰਤੀ ਲਹਿਰ, ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ, ਫੌਜੀ ਤੇ ਨੇਵੀ ਬਗਾਵਤਾਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਦਿਲ ਟੁੰਬਵੇਂ ਤੇ ਕਲਾਤਮਿਕ ਅੰਦਾਜ਼ ‘ਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ। ਯਾਦ ਰਹੇ ਕਿ ਝੰਡੇ ਦੀ ਗੀਤ ‘ਚ ਜਲੰਧਰ, ਬਿਲਗਾ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਬਠਿੰਡਾ, ਜਾਮਾਰਾਏ (ਤਰਨਤਾਰਨ) ਤੇ ਬਰਨਾਲਾ, ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਸਾਹਨੇਵਾਲ ਦੇ ਕਰੀਬ 85 ਦੇ ਕਰੀਬ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਨੇ ਭਾਗ ਲਿਆ। ਬੈਂਡ ਰਾਹੀਂ ਸਲਾਮੀ ਐਸ.ਆਰ.ਟੀ. ਡੀ.ਏ.ਵੀ ਪਬਲਿਕ ਸਕੂਲ ਬਿਲਗਾ ਨੇ ਦਿੱਤੀ।

ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਸਟੇਡੀਅਮ ਸਟੇਜ ਤੋਂ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਦਰਬਾਰਾ ਸਿੰਘ ਢਿੱਲੋਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕੁਦਰਤੀ ਸੋਮਿਆਂ ਦੇ ਘਾਣ ਸਮੇਤ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਿਫਤੀ ਰੂਪ ਪਿੰਡਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਥੇ ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨਿਗਲ ਰਹੇ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨੇ ਸਮੁੱਚੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਗੰਭੀਰ ਖਤਰੇ ਖੜ੍ਹੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਸ ਵਰਤਾਰੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਦੋਸ਼ੀ ਨਿਜ਼ਾਮ ਨੂੰ ਬਦਲਣ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ।

ਮੇਲੇ ਦੌਰਾਨ ਬੁੱਕ ਸਟਾਲ ਸਾਹਿਤ ਪ੍ਰੇਮੀਆਂ ਦੇ ਖਿੱਚ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਬਣੇ ਰਹੇ। ਇਸ ਵਾਰ ਫਲਸਫਾ (ਦਰਸ਼ਨ), ਇਤਿਹਾਸ, ´ਾਂਤੀਕਾਰੀ, ਤਰਕਸ਼ੀਲ ਤੇ ਵਾਤਾਵਰਣ ਸਬੰਧੀ ਸਾਹਿਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਫਰੋਲਿਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਡਾ. ਪ੍ਰੇਮ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤਕਰੀਰ ‘ਚ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ‘ਚ ਫੌਜੀ ਬਗਾਵਤਾਂ ਦੀਆਂ ਮਾਣਮੱਤੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ‘ਤੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਇਆ। ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਰ ਕਮੇਟੀ ਵੱਲੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਸੋਵੀਨਰ ਤੇ ‘ਆਜ਼ਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ ‘ਚ ਬਾਗੀ ਫੌਜੀਆਂ ਦੀ ਦੇਣ (ਲੇਖਕ, ਪ੍ਰੋ. ਦਿਲਬੀਰ ਕੌਰ ਤੇ ਡਾ. ਪ੍ਰੇਮ ਸਿੰਘ) ਰਿਲੀਜ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਗ਼ਦਰੀ ਸ਼ਹੀਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਿੰਡ ਸਾਹਿਬਆਣਾ (ਲੁਧਿਆਣਾ) ਤੇ ਮੇਲੇ ‘ਚ ਲੰਗਰ ਦੀ ਸੇਵਾ ‘ਚ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਧਰਦਿਓ, ਠੱਠੀਆਂ ਤੇ ਬੁੱਟਰ ਵਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸਨਮਾਨ ਵੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਕਵੀਸ਼ਰ ਜੋਗਾ ਸਿੰਘ ਜੋਗੀ ਦੇ ਜਥੇ ਨੇ ਸਰੋਤਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀਰ ਰਸ ‘ਚ ਰੰਗ ਦਿੱਤਾ। ਦਿਨ ਭਰ ਚੱਲੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰਕ ਸਮਾਗਮ ‘ਚ ਲੋਕ ਸੰਗੀਤ ਮੰਡਲੀ ਭਦੌੜ (ਮਾਸਟਰ ਰਾਮ ਕੁਮਾਰ) ਨੇ ਗੀਤ ਗਾ ਕੇ ਰੰਗ ਬੰਨਿ੍ਹਆ। ਲੋਕ ਸੰਗੀਤ ਮੰਡਲੀ ਛਾਜਲੀ (ਦੇਸ ਰਾਜ ਛਾਜਲੀ) ਦੇ ਜਥੇ ਨੇ ‘ਗ਼ਦਰ ਦੀਆਂ ਗੂੁੰਜਾਂ’ ਤੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਟਕਕਾਰ ਭਾਅ ਜੀ ਗੁਰਸ਼ਰਨ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਾਰ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਵਿਅੰਗ ਕਰਦੀ ਸਕਿੱਟ ‘ਥ੍ਰੀ ਜੀ ਬਾਬੇ’ ਨੇ ਮੇਲਾ ਪ੍ਰੇਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਖੂਬ ਤਾੜੀਆਂ ਬਟੋਰੀਆਂ। ਬਾਬਾ ਗੋਬਿੰਦ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਸਠਿਆਲਾ (ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਕੋਰੀਓਗ੍ਰਾਫ਼ੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਮੇਲੇ ਦੀ ਸਟੇਜ ਤੋਂ ਰੈਵੋਲੂਸ਼ਨਰੀ ਕਲਚਰਲ ਫਰੰਟ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਇਨਕਲਾਬੀ ਗੀਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ।

ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨਾਟਕ ਕਲਾ ਕੇਂਦਰ, ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਦੇ ਨਾਟਕ ‘ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਮੁੱਲ’ ਨਾਲ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਦਾ ਨਾਟਕਾਂ ਭਰੀ ਰਾਤ ਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਖਤਮ ਹੋਇਆ। ਡਾ. ਸਾਹਿਬ ਸਿੰਘ (ਅਦਾਕਾਰ ਮੰਚ, ਮੋਹਾਲੀ) ਦੀ ਨਿਰਦੇਸ਼ਨਾ ‘ਚ ਨਾਟਕ ‘ਬਾਬਾ ਬੋਲਦਾ ਹੈ’ ਖੇਡਿਆ ਗਿਆ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰੋ. ਅੰਕੁਰ ਸ਼ਰਮਾ (ਯੁਵਾ) ਦੀ ਟੀਮ ਵੱਲੋਂ ‘ਖ਼ਰਾਸ਼ੇਂ, ਅਨੀਤਾ-ਸ਼ਬਦੀਸ਼ (ਸੁਚੇਤਕ ਰੰਗ ਮੰਚ, ਮੋਹਾਲੀ) ਵੱਲੋਂ ਲਾਲ ਕਨੇਰ, ਕੇਵਲ ਧਾਲੀਵਾਲ (ਮੰਚ ਰੰਗ ਮੰਚ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਵੱਲੋਂ ‘ਕਥਾ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ’ ਤੇ ਪ੍ਰੋ. ਅਜਮੇਰ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਦੇ (ਲੋਕ ਕਲਾ ਮੰਚ, ਮਾਨਸਾ) ਵੱਲੋਂ ਨਾਟਕ ‘ਪਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ’ ਖੇਡੇ ਗਏ। ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ 1 ਤੇ 2 ਨਵੰਬਰ ਦੀ ਰਾਤ ਨਾਟਕਾਂ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ।