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Saturday, January 15, 2011

Mass-protests against Black Laws


लूट,दमन, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने के संवैधानिक अधिकार को छीनने वाले पंजाब सरकार के दो नए काले कानूनों के खिलाफ साझे संघर्ष में शामिल हों!

20 जनवरी 2011, दिन वीरवार, सुबह 11 बजे डी. सी. कार्यालय, लुधियाना पर

विरोध-प्रदर्शन में पहुँचो!

इंसाफपसंद मज़दूर-मेहनतकश लोगो!

पंजाब विधानसभा ने दो ऐसे खतरनाक काले कानून पास किए हैं जिनके बारे में सुनकर हर इंसाफपसंद व्यक्ति चौंक उठता है, उसका मन रोष और गुस्से से भर उठता है। पंजाब सार्वजनिक और निजी जायदाद नुकसान (रोकथाम) कानून-2010 और पंजाब विशेष सुरक्षा कानून-2010 -- दो ऐसे काले कानून हैं जिनके जरिए लूट, शोषण, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनता के संवैधानिक अधिकारों को पंजाब सरकार छीनने के लिए कदम उठा चुकी है। ये कानून कहते हैं कि लोग सरकारी तंत्र से बिना आज्ञा अपने हक में एकजुट होकर गले से आवाज तक नहीं निकाल सकते! अगर आज्ञा नहीं ली गई तो कठोर सजा थोपी जाएगी। यहाँ तक कि इन कानूनों के जरिए हक, सच, इंसाफ के लिए संघर्ष करने वालों को देश-विरोधी, देश-द्रोही तक करार दिया जा सकता है।

मजदूरों-मेहनतकशों को बिना एकजुट संघर्ष के कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। आज के अंधेरे समय का यह नंगा सच है कि मजदूरों-मेहनतकशों की विशाल गरीब आबादी मुट्ठीभर पूँजीपति शक्तिशाली लोगों द्वारा भयंकर लूट-शोषण-अन्याय का शिकार है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों की दिन-रात सेवा में लगी सरकारों की घोर जनविरोधी नई आर्थिक नीतियाँ जनता को गरीबी-बदहाली के महासागर में डुबो रही हैं। ठेके, पीस रेट, दिहाड़ी पर कारखानों, खेतों-खलियानों, खदानों, निर्माण आदि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को गुलामों की तरह खटना पड़ रहा है। उनके पास कोई अधिकार नहीं है। सब कुछ पूँजीपतियों की मर्जी पर निर्भर हो गया है। मजदूरों पर बेहद कम वेतन पर कमरतोड़ मेहनत और भयंकर कंगाली-बदहाली का जीवन थोप दिया गया है। छोटे किसान, छोटे दुकानदार तथा अन्य सभी गरीब लोग, सब के सब भयंकर कंगाली का शिकार हैं। सारी धन-दौलत मुट्ठीभर पूँजीपतियों के पास जमा हो रही है। जनता में रोष लगातार बढ़ता जा रहा है और वह जुझारू आन्दोलनों की राह अपना रही है। उत्तर भारत की ही बात करें तो लुधियाना, गुड़गांव, दिल्ली, गोरखपुर आदि जगहों के औद्योगिक मजदूरों के आन्दोलन इस बात का सबूत हैं। पंजाब में मजदूरों तथा गरीबों-मेहनतकशों के आन्दोलनों में एक नया उभार पैदा हुआ है। पूँजीपति वर्ग व उनकी सरकार हुक्मरान अच्छी तरह जानते हैं कि यह सिलसिला अब थमने वाला नहीं है। वे आने वाले दिनों में फैलने वाले व्यापक जनाक्रोश व जनान्दोलनों से इतना भयभीत हैं कि जनता के संगठित होने व संघर्ष करने के संविधान में दर्ज नाकाफी से जनवादी अधिकार भी छीनने की तैयारी में हैं। हुक्मरान काले कानूनों व ताकत से जनान्दोलनों का दमन करना चाहते हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसे काले कानूनों से, जेल-लाठी-गोली की धमकियों से जनता की भावनाओं को, हक-सच-इंसाफ के लिए उनकी एकजुट, संगठित इच्छाशक्ति को हरगिज दबाया नहीं जा सकता। इतिहास मजदूरों-मेहनतकशों के गौरवशाली महान जनान्दोलनों के उदाहरणों से भरा पड़ा है। जनता ने ही राजा-महाराजाओं-सामन्तों के बर्बर से बर्बर राजतंत्रों को मिट्टी में मिलाया। आठ घण्टे का कार्यदिवस लागू करवाने के मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़े गए संघर्ष को दबाने के लिए दुनिया के पूँजीपतियों ने क्या-क्या हथकण्डे नहीं अपनाए थे। अंग्रेजी साम्राज्‍यवाद को न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में जनता ने ही मुँह के बल गिराया था। शायद हुक्मरानों ने इतिहास से कुछ भी सबक नहीं लिया!

साथियो, आओ अब जरा विस्तार में जानें कि पंजाब विधानसभा द्वारा पास किए ये काले कानून क्या कहते हैं। पंजाब सार्वजनिक और निजी जायदाद नुकसान (रोकथाम) कानून-2010, कहता है कि किसी जनसंगठन, यूनियन आदि ने कोई प्रदर्शन, मार्च, या जुलूस आयोजित करना है तो पहले सरकारी तंत्र से पूछना होगा। पुलिस कमिशनर या डी.एम. की आज्ञा के बिना लोग एकजुट होकर शांतिपूर्ण ढंग से भी अपने गले से आवाज तक नहीं निकाल सकते। उनसे आज्ञा न मिलने पर आप दस दिनों के भीतर पंजाब सरकार के पास अर्जी दे सकते हैं लेकिन सरकार जवाब दे या न दे उसकी मर्जी। सरकार कहती है कि बिना अनुमति के शांतिपूर्ण जुलूस निकालने पर भी 5 वर्ष की सजा और 30,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। अगर आज्ञा मिल भी जाती है तो भी जुलूस किस रास्ते से गुजरेगा, नारे क्या लगेंगे, भाषण क्या होंगे, बैनरों पर क्या लिखा होगा आदि बातें पुलिस ही तय करेगी। झण्डों में डाले गए डण्डों को हथियार का नाम देकर प्रदर्शन-जुलूस में लेकर जाने पर पाबंदी होगी। लिखित आज्ञा के बावजूद अगर जुलूस में बाहर से घुस आए शरारती लोगों, गुण्डों या खुद पुलिस द्वारा भी कोई गड़बड़ होती है और निजी या सरकारी चीजों का कोई नुकसान होता है तो सारा दोष संघर्ष करने वालों का ही निकाला जाएगा और नुकसान के भुगतान सहित तीन वर्ष की कैद और बीस हजार रुपए जुर्माने की सजाएँ थोपी जा सकती हैं।

दूसरा कानून, पंजाब विशेष सुरक्षा कानून ग्रुप-2010, के तहत देश-विरोधियों को काबू करने के नाम पर हक-सच-इंसाफ के लिए संघर्षशील लोगों को कुचलने के लिए एक विशेष हथियारबंद ग्रुप बन रहा है। यह फौज जैसे अधिकारों वाली पुलिस होगी। यह कानून कहता है कि कोई भी गैरकानूनी काम करने वाला व्यक्ति देश-विरोधी है। इसका अर्थ है कि किसी भी तरह के गैरकानूनी काम का इलजाम लगाकर देश-विरोधी करार देकर संघर्षशील इंसाफपसंद लोगों का दमन होगा। सरकार के ये विशेष हथियारबंद व्यक्ति उन अमीरों को, जिन्हें बहुत खतरा है, को विशेष सुरक्षा देंगे। सुरक्षा के दौरान अगर ये विशेष हथियारबंद व्यक्ति किसी को गोली भी मार देते हैं तो उनपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। अगर किसी संगठन का कोई भी सदस्य व्यक्तिगत तौर पर किसी भी तरह के, चाहे कोई मामूली या गम्भीर जुर्म करता है तो उस पूरे संगठन को देश-विरोधी करार देकर पाबंदी लगाई जा सकती है। दोनों कानूनों को जरा जोड़कर देखिए। उदाहरण के लिए अगर लोग सरकार से बिना आज्ञा लिए वेतन बढ़ाने या महँगाई के मुद्दे पर या किसी पूँजीपति, नेता, अफसर या पुलिस द्वारा हुए अन्याय के खिलाफ, या ऐसे ही अन्य किसी मुद्दे पर एकजुट होकर प्रदर्शन करना चाहते हैं तो उन्हें सरकारी तंत्र से पहले आज्ञा लेनी होगी! अगर बिना लिखित आज्ञा लिए ऐसा किया जाएगा तो लोगों को देश-विरोधी तक करार दिया जा सकेगा!

पहले ही पुलिस कानूनी और उससे भी अधिक गैरकानूनी ढंग से जनता पर जो कहर बरपा करती रही है क्या वो कम था? पूंजीपतियों और पुलिस का गठबन्धन जगजाहिर है। मामूली से मामूली मसले से लेकर बड़ी से बड़ी समस्या तक के लिए लोगों को पुलिस से अन्याय ही सहना पड़ता है। लुधियाना के साइकिल, ऑटोपार्ट्स, वूलन सहित अन्य कारखानों के मजदूर अच्छी तरह जानते हैं कि उनके संघर्षों को कुचलने के लिए पुलिस मालिकों के गुण्डों के साथ मिलकर किस प्रकार मजदूरों का दमन करती रही है। इस कानून के इस्तेमाल से पूँजीपति पुलिस के रूप में भी कानूनी तौर पर गुण्डों को रख सकते हैं। ये कानून मजदूरों-मेहनतकशों पर हो रहे अत्याचारों, जोर-जुल्म, दमन को कानूनी जामा पहनाने के सिवा कुछ नहीं है।

पंजाब की जनता अपने लूट, शोषण, अन्याय के खिलाफ एकजुट आवाज बुलन्द करने के अपने अधिकार पर उपरोक्त कानूनों के जरिए बोले गए हमले को भी हरगिज बर्दाशत नहीं करने वाली। मजदूर साथियो, पंजाब के औद्योगिक, खेतिहर, निर्माण आदि क्षेत्र के मजदूरों के संगठनों सहित किसानों, बिजली व रोडवेज कर्मचारियों, स्कूल अध्यापकों आदि तबकों के तीन दर्जन से भी अधिक जनसंगठनों द्वारा पंजाब सरकार के इन काले कानूनों को रद्द करवाने के लिए साझा जुझारू संघर्ष छेड़ दिया गया है। यह संघर्ष इन काले कानूनों को रद्द करवाए बिना रुकने वाला नहीं। लुधियाना के मजदूरों-मेहनतकशों ने पहले भी अपने शानदार संघर्षों के जरिए बड़ी जीतें हासिल की हैं। हाल ही में पिछले वर्ष अगस्त-सितम्बर में चला टेक्सटाइल मजदूरों का शानदार संघर्ष, पूरे एक साल पहले ढण्डारी काण्ड के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए चले विजयी संघर्ष इसके दो बड़े उदाहरण हैं। अगर लुधियाना के मजदूर-मेहनतकश पूरे पंजाब की जनता के साथ एकजुट होकर जुझारू संघर्ष लड़ते हैं तो सरकार को मजबूर होना ही पड़ेगा कि वह इन कानूनों को रद्दी की टोकरी में फेंक दे। साझे संघर्ष के पहले बड़े कदम के तौर पर 20 जनवरी को पंजाब के सभी जिला हैडक्वाटरों पर विशाल विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। हमें पूरा भरोसा है कि लुधियाना के मजदूर-मेहनतकश न सिर्फ इस संघर्ष में हिस्सा लेंगे बल्कि अगली कतारों में मौजूद रहकर संघर्ष का झण्डा बुलंद करेंगे।

किसी कारणवश इस साझे संघर्ष में अभी तक शामिल न हुए जनसंगठनों से हमारी पुरजोर अपील है कि वे हुक्मरानों की इस बड़े हमले की नापाक कोशिशों को नाकाम करने के लिए हमारे साथ मिलकर संघर्ष करें।


अपीलकर्ता संगठन :
कारखाना मजदूर यूनियन (लखविन्‍दर - 99880-79240)
टेक्‍सटाइल मजदूर यूनियन (राजविन्‍दर - 98886-55663)
नौजवान भारत सभा (अजेपाल - 80540-567640)
मोल्‍डर एण्‍ड स्‍टील वर्कर्ज यूनियन, रजि. (हरजिन्‍दर सिहं - 94643-60755)
लाल झण्‍डा टेक्‍सटाइल एण्‍ड हौजरी मजदूर यूनियन (राम अवतार - 99158-39906)
लोक एकता संगठन (गल्‍लर चौहान - 98884-26986)
पंजाब निर्माण मजदूर यूनियन (लाल बहादूर - 93169-39703)
मोल्‍डर एण्‍ड स्‍टील वर्कर्ज यूनियन, रजि. (विजय नारायण - 04174-72095)
भारत निर्माण मजदूर यूनियन (हरदेव सिंह सनेत - 98141-51556)
मूल पर्वाह अखिल भारतीय नेपाली एकता समाज (वासुदेव भट्टाराय)

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