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Saturday, December 24, 2011

THE TRAGEDY OF SONI SORI -A TRIBAL TEACHER

"तमाम ज़ख्मों के मुंह खुले हैं, सवाल पूछो जवाब मांगो”

हमें रिमांड में रखकर दंतेवाड़ा पुलिस थाने में एसपी अंकित गर्ग और मानकर ने इतने भयानक तरीक़े से करंट देकर ज़हनी और जिस्मानी तौर पर जो अज़ीयत दी है, और जो अंदरूनी ज़ख़म मुझे लगे हैं वो में चाहकर भी भूल नहीं सकती। अगर मैं गुनाहगार थी तो मुझे पूछताछ के बाद अदालत में पेश करना था...
निसार अहमद खान
sonisori_chhattisgarhसोनी सोरी... आज बस ये सिर्फ एक नाम ही नहीं रह गया है, बल्कि सरकारी दहश्तगर्दी और पुलिस की बरबरीयत और ज़ुलम-ओ-सितम की एक पहचान बन गई है। इंसानों पर किए जाने वाले ज़ुलम-ओ-सितम के बारे में जो कुछ भी आप सोच सकते हैं, शायद इससे कुछ ज़्यादा ही सोनी सोरी भुगत रही है। जो कुछ आज सोनी सोरी के साथ हो रहा है वो उल-मनाक और दर्दनाक तो है ही, मगर साथ ही इस सूरत-ए-हाल ने हमारे निज़ाम-ए-अदल, नज़म वनसक़ और हुकूमती तरीक़ अमल से मुताल्लिक़ मुतअद्दिद सवालात भी खड़े कर दिए हैं। जो न सिर्फ तशवीशनाक हैं बल्कि इस बात के मुतक़ाज़ी भी हैं कि उन पर फ़ौरी तवज्जो दी जाए और उनको हल करने के लिए अमली जद्द-ओ-जहद का आग़ाज़ कर दिया जाए।
सोनी सोरी आज एक मुल्ज़िमा है, अदालती हिरासत के तहत जेल में मुक़य्यद है। कई मुक़द्दमात का सामना कर रही हैं। इस पर एक कांग्रेसी लीडर पर हमला करने, एक तहसील पर बम मारने और माओ नवाज़ो (Maoists) को फ़ंड फ़राहम करने में मदद देने के इल्ज़ामात हैं। मुआमला मुल़्क की आला तरीन अदालत में ज़ेर-ए-समाआत है। जो इस बात का तक़ाज़ा करता है कि सोनी सोरी के बारे में इज़हार-ए-ख़्याल के वक़्त अलफ़ाज़ का इंतिख़ाब और उनकी बंदिश पर ख़ुसूसी तवज्जो दी जाये। अदालती हुर्मत और एहतिराम का ख़ास ख़्याल रखा जाय, क्योंकि कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि “उन्हें वो बात बुरी लग जाती है जिसका ज़िक्र सारे फ़साने में नहीं होता।”
सोनी सोरी के बारे में इज़हार राय ज़रूरी है, इज़हार-ए-ख़्याल और बड़े पैमाने पर बेहस वमबाहसा ज़रूरी है, आज भारत और बैन-उल-अक़वामी सतह की हक़ूक़-ए-इंसानी के लिए काम करने वाली बाज तंज़ीमें इंसानी हुक़ूक़ की पामाली का शिकार सोनी सोरी के मुआमले को उजागर करने में लगी हैं। सोनी सोरी के साथ किए गए ज़ालिमाना और इंसानियत को शर्मसार करने वाले वाक़ियात की मुज़म्मत की जा रही है और मुतालिबा किया जा रहा है कि सोनी सोरी को ज़हनी, जिस्मानी और जिन्सी ज़्यादती और इंतिहाई दर्जा की बरबरीयत का निशाना बनाने वाले पुलिस अहलकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाये।
हममें से बहुत से लोग नहीं जानते की हमारे प्यारे देश भारत में इंसानी हुक़ूक़ की पामाली के वाक़ियात कितने बढ़ गए हैं , और उ में दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा ही होता जा रहा है। हुकूमत और हुकूमती इदारों को हासिल ला महिदूद इख़्तयारात और AFSPA जैसे सियाह क़वानीन के बोझ तले इंसानियत कराह रही है, जवाबदेही का कोई तसव्वुर बाक़ी नहीं रहा, पुलिस हिरासत में अम्वात में तशवीशनाक हद तक इज़ाफ़ा हुआ है और झूठे एनकाउंटर के नाम पर क़तल व ग़ारतगरी का बाज़ार गर्म है। सिर्फ एक मिसाल से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सूरत-ए-हाल कितनी भयानक है। दो नवंबर 2000 को इम्फाल वैली के एक गाँव मालूम में Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 (AFSPA) के भयानक नतीजे देखने के बाद मणिपुर की एक 24 साला ख़ातून इरोम शर्मीला ने 4 नवंबर 2000 से ग़ैर मुअय्यना मुद्दत की भूख हड़ताल कर रखी है, जो आज भी जारी है। किसी क़ानून को मंसूख़ किए जाने के मुतालिबा के हवाले से की जाने वाली ये दुनिया की ये सबसे तवील तरीन भूख हड़ताल है, जो हमारे मुल्क में जारी है।
इरोम शर्मीला चुनो ने 4 नवंबर 2000 से न ही खाना खाया है और न ही पानी पिया है। उसे ज़िंदा रखने के लिए नाक में नली के जरिये कुछ ग़िज़ा दी जाती है। भूख हड़ताल के तीसरे दिन ही उसे इंडियन पैनलकोड की दफ़ा 309 के तहत इक़दाम ख़ुदकुशी के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया था। एक साल बाद उसे छोड़ दिया जाता है, मगर बाद में फिर गिरफ़्तार कर लिया जाता है। वर्ष 2000 से हर साल ये सिलसिला जारी है। पाँच सौ हफ़्तों से ज़्यादा भूख हड़ताल पर रहने वाली इरोम शर्मीला चुनो आज भी जेल में क़ैद है। इस सारी भयानक सूरत-ए-हाल के नतीजा में ज़ुलम-ओ-बरबरीयत के शिकार अफ़राद की तादाद बढ़ती ही जा रही है। कितने ही नाम हैं जो गिनाए जा सकते हैं, डाक्टर बिनायक सेन, लिंगाराम कोडोपी, अरूण फ़रेरा और सोनी सोरी वग़ैरह।
सोनी सोरी की कहानी भी बड़ी अजीब, करब अंगेज़ और दिल दहला देने वाली है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा इलाके की 36 साला सोनी सोरी सहाफ़ी लिंगा राम कोडोपी की फूफी ( बोह) हैं। सरकारी मुलाज़िम हैं और जंगलों के बीच वाक़्य एक देही इलाक़ा में स्कूल की टीचर हैं। उनके शौहर भी पहले से ही किसी मुक़द्दमा के तहत जेल में क़ैद हैं (कहा जाता है कि उन्हें भी किसी झूठे मुकदमे में फंसाया गया है )। सोनी सोरी के 6 , 10 और 12 साल के तीन बच्चे हैं जो आजकल किसी दौर के रिश्तेदार के रहमोकरम पर हैं। भतीजा सहाफ़ी लिंगा राम कोडोपी भी जेल में बंद है। उसकी कहानी भी अलग तफ़सील तलब है। पुलिस उन पर माओविस्ट ( MAOISTS) की मदद करने का इल्ज़ाम लगाती हैं। वो इस इल्ज़ाम से इनकार करती रही हैं, इसके पास उसके अपने दलायल हैं। कई सबूत हैं जो इसने अपनी बेगुनाही को साबित करने के लिए अदालत के सामने रखे हैं।
सोनी सोरी यूं तो पिछले 2 सालों से परेशानियों और मुसीबतों का सामना कर रही है, मगर उसकी परेशानियों और करब भरी दास्तान का दूसरा दौर उस वक़्त शुरू हुआ जब 4 अक्तूबर 2011 को सोनी सोरी को दिल्ली पुलिस ने छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ मिलकर दिल्ली में गिरफ़्तार कर लिया। सोनी सोरी छत्तीसगढ़ पुलिस की हिरासानिऊ से बचते-बचाते दिल्ली आई थी , ताकि अपनी बात अदालत के सामने रखकर ख़ुद पर हो रहे ज़ुलम-ओ-सितम से बच सके। वो ज़िंदा और सही सलानत तो दिल्ली पहुंच गई थी, लेकिन इसके सामने ख़दशात थे, उसे अपनी जान का ख़तरा था।
गिरफ़्तारी के बाद इसने अदालत से बार-बार इल्तिजा की कि उसे छत्तीसगढ़ पुलिस के हवाले न किया जाय, क्योंकि वहां उसे छत्तीसगढ़ पुलिस की जानिब से अपनी जान और इज़्ज़त-ओ-अब्रू का ख़तरा है, बेपनाह और जानलेवा तशाद्दुद का ख़तरा है। मगर दिल्ली में अदालत ने इस के इन ख़दशात को नजरअंदाज़ करते हुए उसे छत्तीसगढ़ पुलिस के हवालेकर दिया और छत्तीसगढ़ पुलिस को हिदायत दी कि सोनी सोरी की हिफ़ाज़त से मुताल्लिक़ तमाम इक़दामात किए जाएं और तमाम हिफ़ाज़ती अमोर को यक़ीनी बनाया जाय। लेकिन इसके बावजूद सोनी सोरीके बदतरीन ख़दशात बिलाखेर सच्च साबित हो ही गए। छत्तीसगढ़ पुलिस की जानिब से गिरफ़्तार किए जाने के बाद पुलिस लॉकअप में न जाने क्या हुआ पता नहीं, लेकिन दुनिया ने वो वीडियो क्लिप देखा, जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, अस्पताल के एक टेबल पुर दर्द-ओ-करब से चीख़ती और कराहती हुई सोनी सोरी की वो तस्वीरें अगर आप में हिम्मत है तो आप भी देख सकते हैं http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=a5lO6cEcUeI#!
जब इस वाक़िया के ख़िलाफ़ आवाज़ें उठने लगी, तो पुलिस ने ये बयान दिया कि सोनी सोरी पुलिस लॉकअप के बाथरूम में फिसल कर गिर गई ! या अलहि ये माजरा किया है? यहां डाक्टरों ने दूसरी बातों के अलावा ये भी रिपोर्ट दी कि उसके दोनों हाथों की दरमयानी ऊँगली पर काले निशानाथ हैं। ( सोनी सोरी के वकील और दीगर इंसानी हक़ूक़ के लिए काम करने वालों का कहना है कि ये निशानात पुलिस लॉकअप में अलकटरक शॉक देने की वजह से बने हैं) सोनी सोरी की तशवीशनाक हालत देखकर डाक्टर ने मज़ीद मुआयना के लिए बड़े अस्पताल में ले जाने के लिए कहा। छत्तीसगढ़ पुलिस के जरिये पहले जागदालपोर और बाद में रायपुर के दवाख़ानों में दो मर्तबा मुआयना किया गया, मगर कोई ख़ास बात सामने नहीं आई। इससे क़बल दंतेवाड़ा के अस्पताल के डाक्टरों ने जो रिपोर्ट दी थी, उसकी भी तौसीख नहीं की।
इस सूरत-ए-हाल को देखते हुए सोनी सोरी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक दरख़ास्त दाख़िल की कि सोनी सोरी की ख़राब हालत के पेशेनज़र इसका मेडिकल चैकअप आज़ादाना तौर पर किसी दूसरे मुक़ाम पर क्या जाय। हुकूमत छत्तीसगढ़ ने इस बात से इनकार किया कि सोनी सोरी पर तशद्दुद किया गया, मगर अदालत ने ये दरख़ास्त मंज़ूर कर ली और कलकत्ता में दुबारा मेडिकल चैकअप किया गया ।फिर इंसानियत का सर शर्म से झुका देने वाली वो मेडिकल रिपोर्ट सामने आई जिसे कहने और सुनने के लिए भी दिल गर्दा चाहिए। उसकी शर्मगाह से और पिछले हिस्से ( मक़अद ) से डाक्टरों ने पत्थर बरामद किए। उर्दू में इससे ज़्यादा लिखने की हिम्मत मुझ में नहीं है, इस लिए इस मेडिकल रिपोर्ट से मुताल्लिक़ चंद अलफ़ाज़ अंग्रेज़ी में यहां नक़ल करता हूँ-
The recently received an independent medical examination report of Soni Sori, has revealed that two large stones were planted deep inside her vagina and another stone inside her rectum.
इस सिलसिले में एक और दिलचस्प बात नोट करने के काबिल है कि कलकत्ता के एनआरएस मेडिकल कॉलिज के जरिये स्पीड पोस्ट से रवाना की गई ये रिपोर्ट 13 दिनों तक भी जब सुप्रीम कोर्ट को नहीं पहुंची तो अदालत ने मेडिकल कॉलिज को हिदायत दी कि अदालत को फ़ौरी फ़याकस या ईमेल के जरिये ये रिपोर्ट रवाना की जाय। बहरहाल, जब अदालत को ये रिपोर्ट मिली तो जज साहिबान ने इस रिपोर्ट पर अपने कोफ़त, रंज और तकलीफ़ का इज़हार किया और रियासती हुकूमत को हिदायत दी कि सोनी सोरी को रायपुर की जेल मुंतक़िल कर दिया जाय। साथ ही उन्होंने तक़रीबन डेढ़ माह बाद यानी जनवरी 2012 को आख़िरी समाअत की तारीख़ मुक़र्रर की।
यूं तो सोनी सोरी के मुताल्लिक़ कहने को और बहुत कुछ है, मगर आख़िरी चंद बातें इसके दो ख़ुतूत से, एक जो इसने अपने घरवालों को लिखा है और दूसरा जो इस ने सुप्रीम कोर्ट के जज साहिबान के नाम लिखा है । अपने घरवालों को लिखे गए ख़त में सोनी सोरी ने लिखा है कि मुझे जिस किस्म की अज़ीयतें दी जा रही हैं वो में आपको बयान नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट के जज साहिब के नाम लिखे गए अपने ख़त में सोनी सोरी सवाल कर रही है कि “मैं सुप्रीम कोर्ट से ये जानना चाहती हूँ कि आज मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार कौन है? अदलिया, पुलिस, इंतिज़ामीया या हुकूमत?। हमें रिमांड में रखकर दंतेवाड़ा पुलिस थाने में एसपी अंकित गर्ग और मानकर ने इतने भयानक तरीक़े से करंट देकर ज़हनी और जिस्मानी तौर पर जो अज़ीयत दी है, और जो अंदरूनी ज़ख़म मुझे लगे हैं वो में चाहकर भी भूल नहीं सकती। अगर मैं गुनाहगार थी तो मुझे पूछताछ के बाद अदालत में पेश करना था, अदालत ख़ुद फ़ैसला करती कि सज़ा देना या ना देना।जज साहिब ये कैसा क़ानून है,एक बेगुनाह होते हुए भी मैं सज़ा भगत रही हूँ। मेरा क़सूर किया है ?
क़सूर किसका है ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा। मगर आज सोनी सोरी का हर ज़ख़म खुला है। मरहूम अहसन यूसुफ़ ज़ई का ये शेर इस पर पूरी तरह सादिक़ आता है।
"तमाम ज़ख़मों के मुंह खुले हैं
सवाल पूछो , जवाब मांगो."

Courtsey: JANJWAR 

2 comments:

  1. aise haraamjaade police walo ko lockup me hona chahiye

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  2. It is a very shameful episode of Indian democracy (so called world’s largest democracy!). Police butchers must be hanged.

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